देश के पांच राज्यों में चुनावी महासमर में सभी दलों के नेता तेजी से प्रचार अभियान में जुटे हैं। सभाओं में भारी भीड़ जुट रही है। इसको लेकर चर्चाए भी खूब हो रही हैं। असम में पीएम मोदी की रैली में भारी भीड़ जुटने को जहां पार्टी अपनी उपलब्धि बता रही है, वहीं सोशल मीडिया पर लोग इसको लेकर सरकार से पूछ रहे हैं कि ऐसे में देश कोरोना से मुक्त कैसे होगा। चुनावी सभाओं में सोशल डिस्टेंसिंग गायब है। मास्क भी लोग नहीं लगा रहे हैं। हालांकि सरकार भीड़ को सभी क्षेत्रों में एनडीए के लिए समर्थन के रूप में बता रही है।

सोशल मीडिया पर अंकित कोडाप @AnkitKodap नाम के यूजर ने लिखा है, “इस तरह देश coronavirus से मुक्त होगा, वाह मोदीजी वाह अपने स्वार्थ के लिए जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़।” Sanjeevआंदोलनजीवी नाम के एक अन्य यूजर @sanjeevscion ने भीड़ के सवाल पर लिखा, “असम के लोग लगातार उत्पीड़न से गुजरे हैं। निर्दोष नागरिकों के साथ क्रूर व्यवहार किया गया और उन्हें जबरन CAA के खिलाफ कानून के नाम पर हिरासत केंद्रों में डाल दिया गया। वे जानते हैं कि भ्रष्ट और बेईमान कौन हैं। वे अपने वोट से जवाब देंगे!” इसके जवाब में अमित द्विवेदी नाम के एक यूजर @ amit_dwivedi77 ने लिखा, “वे अवैध बांग्लादेशी अप्रवासी हैं …बदरुद्दीन अजमल के AIUDF ने उन अवैध अप्रवासियों की रक्षा की …असली असमिया बीजेपी समर्थन करता है।”

उधर, असम में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे हिमंत बिस्वा सरमा ने गुरुवार को कहा कि इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पास ‘लाबिंग’ करने से कुछ नहीं मिलने वाला है तथा वह पार्टी के इन दोनों शीर्ष नेताओं के किसी भी फैसले का पालन करेंगे।

हिमंत ने कहा कि विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी के सत्ता में बने रहने पर मौजूदा मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल, वह या किसी तीसरे व्यक्ति को राज्य की बागडोर थमाने के बारे में फैसला मोदी या शाह लेंगे। मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा द्वारा अपना उम्मीदवार घोषित नहीं करने पर हिमंत को इस पद के लिए सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा है।

उन्होंने भगवा पार्टी नीत गठगंधन और कांग्रेस-एआईयूडीएफ गठजोड़ के बीच चुनावी मुकाबले को राज्य में असमिया एवं मियां संस्कृतियों के बीच सभ्यताओं के टकराव का हिस्सा बताया। गौरतलब है कि असम में मियां बांग्ला भाषी मुसलमानों को कहा जाता है, जिनकी राज्य में विधानसभा की 30 से 40 विधानसभा क्षेत्रों में अच्छी खासी उपस्थिति हैं।

हिमंत ने कहा कि शुरुआत में कांग्रेस और तत्कालीन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन तथा असम गण परिषद ने इस अस्मिता की रक्षा करने के लिए लड़ाई लड़ी थी और भाजपा असम की स्थानीय संस्कृति की रक्षा करने के लिए लड़ाई लड़ रही है। उन्होंने पीटीआई-भाषा से एक साक्षात्कार में कहा, “एआईयूडीएफ के प्रमुख बदरूद्दीन अजमल सभ्यताओं के टकराव के प्रतीक हैं। 1930 के दशक में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच संघर्ष के दिनों से यह लड़ाई चल रही है और असम के लोगों को अपने जीवन-यापन की गुंजाइश को बनाए रखना होगा, अन्यथा उनके पास कुछ नहीं बचेगा।”