कोरोनावायरस के खतरे के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को राष्ट्र के नाम संबोधन में देशभर में 21 दिन का लॉकडाउन लगाने का ऐलान किया था। पीएम ने लोगों से अपील की थी कि जो जहां है, वह वहीं रहे। हालांकि, दिहाड़ी मजदूरों और अप्रवासियों ने काम बंद होने की वजह से पैदल या अपने-अपने साधनों से ही गृहनगर की तरफ कूच कर दिया। अब तक सैकड़ों की संख्या में लोग अपने शहर-गांवों तक पहुंचने में सफल भी हुए हैं। ऐसी ही कहानी है राजस्थान के जालौर के रहने वाले प्रवीण की, जिसने कर्नाटक के बेंगलुरु से घर पहुंचने के लिए 6 दिन तक पैदल सफर किया।
द टेलिग्राफ की खबर के मुताबिक, 28 साल का प्रवीण कुमार बेंगलुरु में वेल्डर का काम करता है। लॉकडाउन के ऐलान के बाद काम बंद होने की वजह से उसने 26 मार्च की रात को घर के लिए यात्रा शुरू की थी। 6 दिन बाद 1 अप्रैल को वह 1800 किलोमीटर का सफर तय कर जालौर स्थित अपने गांव चितलवाना पहुंचा। प्रवीण ने द टेलिग्राफ को फोन पर अपनी पैदल यात्रा की पूरी जानकारी भी दी। जब प्रवीण से इतनी दूर तक पैदल चलने पर सवाल किया गया, तो उसने बताया कि हम राजस्थानी अपने खेतों में बहुत चलते हैं।
6 दिन में कैसे पूरा किया सफर?
26 मार्च को बेंगलुरु के शिवाजी नगर से पैदल सफर शुरू करने के बाद 27 मार्च की सुबह तक प्रवीण 70 किमी दूर तुमकुर तक पहुंच गया। इसके बाद 27 मार्च को ही रात तक एक एलपीजी कैरियर ट्रक की मदद से वह तुमकुर से 200 किमी दूर चित्रदुर्ग पहुंच गया। 28 मार्च को भी उसे रानेबेन्नूर तक 100 किमी के लिए ट्रक का सहारा मिल गया। रात तक उसने एक दूसरे ट्रक से 200 किमी दूर बेलगाम तक सफर पूरा किया। 29 मार्च को एक दिन आराम करने के बाद उसने ट्रक से ही 350 किमी दूर पुणे तक का सफर पूरा किया।
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1 अप्रैल को ही उसने धनेरा तक 35 किमी पैदल चलर पार किया। 1 अप्रैल की शाम को एक वैन ने उसे 25 किमी आगे गुजरात-राजस्थान बॉर्डर पर स्थित नेनावना छोड़ दिया। इसके बाद पहले राजस्थान के सांचोर तक 18 किमी पैदल चल और फिर अपने गांव चितलवाना तक 23 किमी दोस्त की बाइक में सफर पूरा कर प्रवीण 1 अप्रैल की रात को घर पहुंचा।