समाजवादी पार्टी संभल नहीं पा रही है। उत्तर प्रदेश मेंं ही चुनौती बार-बार मिल रही है पार्टी को भाजपा से। पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में झटका मिला। फिर 2017 के विधानसभा चुनाव ने तो सपा का बंटाधार ही कर दिया। जबकि कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था पार्टी ने यह चुनाव। इस तालमेल से सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव रूठ भी गए थे। लेकिन भाजपा की आंधी में यह प्रयोग भी नाकाम रहा। फिर बारी आई 2019 के लोकसभा चुनाव की। तीन उपचुनावों की कामयाबी से सपा और बसपा को समझ आ चुका था कि भाजपा का मुकाबला सपा-बसपा मिलकर ही कर सकते हैं। अखिलेश अपना घर भी नहीं संभाल पा रहे थे। चाचा शिवपाल यादव के कंधे पर अपनी बंदूक चलाई भाजपा ने। पिछड़ों में भी सेंध लगा चुकी भाजपा ने एअर स्ट्राइक और पुलवामा की घटनाओं के दम पर सपा-बसपा के गठबंधन को भी ध्वस्त कर दिया। सपा फिर 2014 की तरह पांच सीट पर सिमट गई।

फायदा अगर हुआ तो बसपा को। शून्य से दस का आंकड़ा तो छू ही लिया। दलित मुसलमान गठजोड़ उसके अनुकूल रहा। फिर भी भाजपा और उसकी सरकारों के दबाव में मायावती ने हार का ठीकरा अखिलेश के सिर फोड़ अपनी राह जुदा करने में देर नहीं लगाई। यह अखिलेश के लिए और भी बड़ा झटका निकला। वैसे भी फिरोजाबाद, बदायूं और कन्नौज के अपने किले भी सपा नहीं बचा पाई थी। हार के सदमे से अखिलेश अभी उबर नहीं पाए हैं। एक तरह से भाजपा के सामने घुटने टेक दिए हैं उन्होंने। तभी तो भाजपा ने सपा के विधायकों-सांसदों को भी भगवा रंग में रंग देने की मुहिम चला रखी है। पहले विधान परिषद के उसके कई सदस्यों से इस्तीफे दिला उन खाली सीटों पर अपने मुख्यमंत्री और मंत्रियों को चुनवाया। फिर इस्तीफा देने वाले सभी दल बदलुओं को पूरी मियाद यानी छह साल के लिए परिषद में भेजकर वादा पूरा कर दिया।

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अब राज्यसभा में भी वही मुहिम चालू है। शुरुआत चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर के इस्तीफे से हुई। फिर सुरेंद्र नागर भागे। अब संजय सेठ भी चलते बने। जबकि वे एक तरफ तो पार्टी के कोषाध्यक्ष थे और दूसरी तरफ अखिलेश यादव के बेहद भरोसेमंद। उन्हें एमएलसी नामित कराने के लिए कौन सी कवायद नहीं की थी अखिलेश ने अपने मुख्यमंत्री काल में। पर राज्यपाल राम नाईक ने वीटो लगाया था। सो नाराज अखिलेश ने उन्हें अवसर मिलते ही राज्यसभा भेजा था। अखिलेश पछता रहे होंगे कि किस पर भरोसा करें और किस पर नहीं। पाठकों को बता दें कि राज्यसभा हो या विधान परिषद, उप चुनाव में जीत सूबे की सत्ताधारी पार्टी की ही होती है। यानी खाली हुई तीनों सीटों पर उप चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार जीतकर राज्यसभा आएंगे। वे नीरज शेखर, सुरेंद्र नागर और संजय सेठ भी हो सकते हैं।