विधानसभा चुनाव में अभी साल भर का फासला है। लेकिन पंजाब में सियासी घमासान अभी से जोर पकड़ रहा है। आम आदमी पार्टी को इस सूबे में अपने लिए अच्छी संभावनाएं नजर आ रही हैं। तभी तो अरविंद केजरीवाल दिल्ली का राजकाज छोड़ पंजाब की जनता की नब्ज टटोलने में ज्यादा वक्त लगा रहे हैं। लोकसभा चुनाव में इसी सूबे ने बचाई थी केजरीवाल की लाज। दिल्ली में तो सूपड़ा साफ हो गया था पर पंजाब में चार सीटें जीत ली थी पार्टी ने। इसी से अकाली दल और कांग्रेस दोनों सहमे हैं। सत्तारूढ़ अकाली दल तो कांग्रेस से ज्यादा विरोध आप पार्टी का शुरू कर दिया है। केजरीवाल जहां भी जा रहे हंै, उन्हें काले झंडे दिखाने में अकाली दल ही नहीं कांग्रेस के कार्यकर्ता भी सक्रियता दिखा रहे हैं। केजरीवाल जलंधर में थे तो पूरा शहर उनके खिलाफ पोस्टरों से पाट दिया गया। किसने की यह हरकत, कोई नहीं जानता। पोस्टर पर किसी जारी करने वाले का नाम जो नहीं था। चूंकि विरोध केजरीवाल का किया गया था तो भला अकाली सरकार के राज में पुलिस क्यों माथा-पच्ची करती? लेकिन केजरीवाल ने इस विरोध को भी अपनी ताकत बता दिया। फरमाया कि अकाली और कांग्रेसी दोनों ही खौफ खा गए हैं। शुरू में तो अकाली कम, कैप्टन अमरिंदर कुछ ज्यादा ही खिल्ली उड़ा रहे थे आम आदमी पार्टी की। लेकिन माघी मेले में दोनों से ज्यादा भीड़ जुटा कर अरविंद केजरीवाल उनकी बेचैनी बढ़ा आए थे।

खट्टर की नाकामी
हरियाणा में जाटों का आरक्षण आंदोलन स्वत:स्फूर्त था या प्रायोजित, यह तो अभी सामने नहीं आ पाया है। पर पुलिस की निष्क्रियता के सबूत जरूर मिल रहे हैं। वजह केवल यही नहीं थी कि पुलिस में जाट आंदोलनकारियों से हमदर्दी रखने वालों की भरमार है। अलबत्ता कहीं न कहीं यह डर भी जरूर रहा होगा कि सख्ती करने पर लेने के देने पड़ सकते हैं। इसीलिए जाट मंत्री कुछ ज्यादा ही रक्षात्मक दिखे। फूंक-फूंक कर बयान दिए। केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि जाटों से सारे राजनीतिक दल भय खाते हैं। खट्टर सरकार ने आंदोलन से निपटने के लिए केंद्रीय सुरक्षा बल भी यही सोचकर बुलाए होंगे कि उपद्रवियों के मरने की सूरत में दोष उनकी सरकार पर नहीं लगेगा। हालांकि गैरजाट व्यापारियों के ठौर-ठिकानों पर हुई लूटपाट और उन्हें जलाने की घटनाओं से खट्टर सरकार की जगहंसाई खूब हुई। अब तो महिलाओं के साथ बेहूदा सलूक की कहानियां भी सामने आ रही हैं। कहीं से भी यह आंदोलन सरकार विरोधी दिखा ही नहीं। साफ तौर पर जातीय हिंसा का नजारा कई दिन दिल्ली से सटे सूबे में रहा। सड़क और रेल मार्ग को इस तरह अस्त-व्यस्त होते शायद ही पहले किसी सूबे में देखा गया हो इस तरह। केंद्रीय बलों और सेना को भी अगर हवाई साधनों से उतारना पड़े तो अनुमान कोई भी लगा सकता है कि राज्य की पुलिस की कहीं कोई हनक थी ही नहीं। अब परतें खुलेंगी तो सामने आ पाएगा साजिशों का सच।

झूठ का पुलिंदा
मध्यप्रदेश के सियासी इतिहास में पिछला हफ्ता कौतुहल और उम्मीदें लेकर आया। 23 फरवरी को विधानसभा का बजट सत्र शांति से शुरू हुआ। 26 को बजट भी पेश हो गया। राज्यपाल राम नरेश यादव अब इतने बुजुर्ग हो चुके हैं कि 47 पेज का अपना अभिभाषण पढ़ ही नहीं पाए। सो, पहले और अंतिम पैरा को पढ़कर ही काम चलाया। मैहर विधानसभा उपचुनाव जीत कर आए भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी की शपथ भी उसी दिन निपट गई। हालांकि वित्तीय स्थिति पुख्ता होने के शिवराज सरकार के दावे की बजट पेश होने से 48 घंटे पहले ही कलई खुल गई। 12 अरब का कर्ज लेना पड़ा सरकार को। 11वीं बार लिया उसने कर्ज। गनीमत है कि रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने अपने बजट में सूबे पर रहम कर दिया। पहली बार नई लाइनें बिछाने और यात्री सुविधाओं के लिए मध्यप्रदेश के हिस्से 43 अरब दे दिए। हालांकि हबीब गंज स्टेशन को माडल स्टेशन बनाने की घोषणा ने जगहंसाई भी कराई। तीसरी बार दिखाया गया यह सपना। 2006 में लालू यादव ने रेलमंत्री की हैसियत से हबीबगंज को विश्वस्तरीय स्टेशन बनाने का संसद में सपना दिखाया था। तीन साल बाद ममता बनर्जी ने भी उसी आश्वासन को दोहरा दिया। यह तो भविष्य ही बताएगा कि हबीबगंज को दिखाया गया सपना पूरा होगा या नहीं। सूबे के वित्त मंत्री जयंत मलैया ने भी खूब चौंकाया। अनुसूचित जाति वर्ग में अंतरजातीय विवाह करने पर अभी तक पचास हजार रुपए का अनुदान दे रही थी मध्यप्रदेश सरकार। मलैया ने इस बजट में इसे चार गुणा बढ़ा दिया। यह बात भी कम रोचक नहीं है कि व्यापारियों की हितैषी होने का दम भरने वाली पार्टी की सरकार ने एक जिले से दूसरे जिले में सामान ले जाने पर ट्रांजिट पास की पाबंदी लगा इंस्पेक्टर राज की वापसी का इरादा भी उजागर कर दिया। केंद्र से मिलने वाली रकम में चालू वित्त वर्ष के दौरान हुई दस हजार करोड़ रुपए की कटौती पर मलैया चुप्पी साध गए। केंद्र में यूपीए की सरकार रही होती तो इसी को बनाते वे बड़ा मुद्दा।

दौर-ए-गर्दिश
वीरभद्र सिंह और आशा कुमारी दोनों ही हिमाचल के कद्दावर कांग्रेसी ठहरे। पर आजकल संकट में हैं। वीरभद्र ने बतौर मुख्यमंत्री तीन साल आरोपों के चक्रव्यूह में रह कर ही बिता दिए। लेकिन अगले कुछ महीने मुश्किल भरे हो सकते हैं। सीबीआइ के तेवर तीखे जो हुए हैं। पच्चीस फरवरी को आय से ज्यादा संपत्ति के दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे मामले में सीबीआइ ने सुनवाई पर जोर दिया था। सीबीआइ का कहना था कि मामला शिमला हाईकोर्ट के स्थगन आदेश से लटका है। दिल्ली हाईकोर्ट को निपटारा जल्द करना चाहिए। इसके बाद चार अप्रैल की तारीफ मुकर्रर होगी। एक तरफ वीरभद्र की सांसें दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर अटकी हैं तो दूसरी तरफ आशा कुमारी को चंबा की सेशन अदालत ने धोखाधड़ी के मामले में एक साल की सजा सुना दी। डलहौजी से विधायक हैं आशा। अगर सजा तीन साल की हुई होती तो विधानसभा की सदस्यता से भी हाथ धोने पड़ते। कहां तो मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देख रही थीं और कहां वीरभद्र ने मंत्री तक नहीं बनाया। ऊपर से अदालत ने अलग झटका दे दिया। लगता है कि सितारे गर्दिश में चल रहे हैं।

बुढ़ापे का दर्द
नारायण दत्त तिवारी एकांत में सोचते जरूर होंगे कि बुढ़ापे में जैसी गत उनकी हुई वैसी भगवान किसी की न कराए। उज्ज्वला शर्मा ने करीबी रिश्तों को अदालत तक पहुंचा कर जगहंसाई कराई थी। जैविक संतान की इबारत देश की अदालत ने पहली बार लिखी। नारायण दत्त तिवारी और उज्ज्वला की जैविक संतान बन गए रोहित शर्मा। जंग हारने के बाद बुजुर्ग तिवारी को न चाहते हुए भी उज्ज्वला के साथ सात फेरे लेने ही पड़ गए। अविभाजित उत्तर प्रदेश के तीन बार और उत्तराखंड के एक बार मुख्यमंत्री रहने के अलावा केंद्र में भी मंत्री रहे तिवारी। आखिर में आंध्र के राज्यपाल थे तो कुछ महिलाओं के साथ अंतरंग क्षणों की सीडी के उजागर होने से बदनामी की शुरुआत हुई। उज्ज्वला-रोहित विवाद से मुश्किलें बढ़ीं। अब परिवार की कैद में बताए जा रहे हैं। यहां तक कि उनके भाई-भतीजे तक उनसे नहीं मिल पा रहे। तिवारी तमाम संस्थाओं से भी जुड़े रहे हैं। वहां भी उज्ज्वला शर्मा की दखलंदाजी तिवारी के वफादारों को भारी पड़ रही है। संजय जोशी, आर्येंद्र शर्मा और भवानी भट्ट जैसे चंपुओं की भी दाल नहीं गल पा रही अब उज्ज्वला और रोहित के चलते।

अपने हुए बेगाने
मध्यप्रदेश विधानसभा में अब भाजपा सरकार को अपने ही विधायकों की नुक्ताचीनी झेलनी पड़ रही है। बजट सत्र में भाजपा विधायक बहादुर सिंह चौहान ने अपने विधानसभा क्षेत्र में अवैध खनन का मुद्दा उठा दिया। जवाब में खनिज मंत्री ने सफाई दी कि अवैध खनन कर रहे दिनेश पर सरकार ने तीस करोड़ का जुर्माना ठोंक दिया है। भाजपा के शंकर लाल तिवारी ने रीवा-सतना इलाके की सीमेंट फैक्टरियों के कारण दस किलोमीटर के दायरे में खेती की जमीन के पथरीली हो जाने का दुखड़ा तो रोया ही, लोगों को टीवी और फेफड़े के संक्रमण जैसी बीमारियां होने के बावजूद अपनी सरकार की चुप्पी पर सवाल भी उठा दिया। गुरुवार को एक घंटे के प्रश्नकाल में सोलह प्रश्न पूछे गए। इनमें ग्यारह भाजपाई सदस्यों के निकले। अपनी ही सरकार की कार्यप्रणाली पर हमला बोलने वाले विधायकों ने नारायण सिंह पंवार, सुदर्शन गुप्ता, भारत सिंह कुशवाहा, ठाकुरदास नागवंशी, कुंवर जी कोठार, बहादुर सिंह चौहान, शंकरलाल तिवारी, विष्णु खत्री, रामेश्वर शर्मा और वीर सिंह पंवार मुखर रहे। नजारा देखने लायक था कि आलोचना भाजपा सदस्य कर रहे थे तो मेजे थपथपा कर कांग्रेसी सदस्य उनकी हौसला आफजाई कर रहे थे। ऊपर से मंत्रियों पर तंज अलग कस रहे थे कि उनकी बात तो वे सुनते नहीं, कम से कम अपने विधायकों की तो सुन लें।

यक्ष प्रश्न
नीकु का परेशान होना अस्वाभाविक नहीं है। नीकु यानी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों अपराध कम नहीं हो पाने से परेशान हैं। अपराधी बाज ही नहीं आ रहे। क्या करें? पुलिस अफसरों की क्लास भी लगा दी। उन्हें साफ हिदायत भी दे दी कि अपराधी को हर हाल में पकड़ना है। बड़े अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई फौरन की जाए। हाथ पैर तो पुलिस भी मार ही रही है। पर उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिल पा रही। यही वजह है कि कोई एक बार अगर नीकु के सामने कानून व्यवस्था का जिक्र छेड़ दे तो वे असहज हो जाते हैं। सफाई देने में देर नहीं करते कि पहले से तो अपराध कम हुआ है। हालांकि उनके चंपू तो ऐसा जिक्र छिड़ते ही आपा खो बैठते हैं। विरोधियों पर झूठा प्रचार करने का आरोप लगाते हैं। वे अतीत को भूल जाते हैं। वह भी नीकु का ही राज था जब पहली बार सत्ता में आए थे तो अपराधियों पर अकुंश लगाने के लिए लोगों की वाहवाही लूटी थी। खुद शान से जिक्र करते ते कि शहर में अब महिलाएं देर रात तक घूमती और शॉपिंग करती नजर आती हैं। लोग बेखौफ होकर कहीं भी आते-जाते हैं। वाहनों में बंदूक की नली झलकाते अपराधी कहीं नजर नहीं आते। तब अपराधियों, नेताओं और भ्रष्ट अफसरों के गठजोड़ पर नीकु ने करारा प्रहार किया था। अपराधी समझ गए थे कि उन्हें कहीं भी संरक्षण नहीं मिलेगा। सो अपराध भी थमे और अपराधी भी भूमिगत हुए थे। लेकिन इस बार न जाने किसकी नजर लग गई नीकु के राज को। नीकु तो अब भी पहले जैसे ही हैं और पुलिस भी वही है। फिर क्यों बढ़ गया अपराधियों का मनोबल? नीकु के लिए यही पहेली यक्ष प्रश्न बन गई है।

दूरंदेशी
लालू यादव सयाने हैं। पैंतरेबाजी में लोमड़ी भी मुकाबले में न टिक पाए। अपनी पार्टी को ताकतवर बनाने में पीछे क्यों रहें? अगर महागठबंधन की उनकी सहयोगी पार्टी जद (एकी) के नेता अपनी पार्टी की ताकत बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं, सदस्यता अभियान चला कर पार्टी का विस्तार कर रहे हैं, विधायकों, सांसदों, मंत्रियों और पदाधिकारियों को पार्टी की मजबूती के लिए अलग-अलग जिम्मेवारी दे रहे हैं। तो फिर लालू ही हाथ पर हाथ धरे कैसे बैठे रह सकते हैं? अपनी पार्टी के नेताओं से कह दिया है कि वे गांव-गांव जाएं। लोगों से जुड़ें। लालू खुद भी अपने स्तर पर हर इलाके में वहां के महत्त्वपूर्ण लोगों से संपर्क करते थे। उनसे जुड़े नेता अब पटना आकर लालू को अपना रिपोर्ट कार्ड दिखाने लगे हैं। लालू बखूबी जानते हैं कि लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का भी समाधान हो जाए तो वे पार्टी से जुड़ जाते हैं। उन्होंने भी अपने विधायकों और मंत्रियों को लोगों की समस्याएं सुलझाने के लिए झोंक दिया है। बिहार की सरकार अब उनके फोकस से बाहर है। निगाह तो अगले लोकसभा चुनाव पर टिकी है। अभी से तैयारी करेंगे तभी तो सफलता मिल पाएगी।

लाचार हैं दीदी
पश्चिम बंगाल की पुलिस ढीठता छोड़ने को तैयार नहीं। अदालत कई मामलों में कड़ी फटकार लगा चुकी है। पर दीदी की तरह खुद को न सुधारने की जैसे कसम खा रखी है उनकी पुलिस ने भी। दीदी यानी बंगाल की शेरनी ममता बनर्जी। कोलकाता हाईकोर्ट भी कई बार हड़का चुका है सूबे की पुलिस को। ताजा मामला मुर्शिदाबाद के कांथी नगरपालिका के एक निर्दलीय पार्षद के अपहरण का है। इस मामले में तो अदालत ने फटकार लगाते हुए पुलिस के बारे में यहां तक कह दिया कि इसका एक तबका रीढ़विहीन हो चुका है। अच्छा होता कि पुलिस अपने दायित्वों के निर्वाह का तौर-तरीका जजों से कुछ तो सीखती। अपहरण के मामले में प्राथमिकी दर्ज करने से लेकर जांच करने तक की पुलिस की पूरी भूमिका को ही लापरवाही का पिटारा बता दिया। प्राथमिकी तो तीन-तीन दर्ज कर ली पर पीड़ित के हस्ताक्षर किसी पर नहीं लिए। सो, मामले के विवेचना अधिकारी को तलब कर लिया हाईकोर्ट ने। कांथी नगरपालिका में वाममोर्चे और तृणमूल कांग्रेस दोनों के आठ-आठ पार्षद ठहरे। तभी तो विश्वासमत के दौरान इकलौते निर्दलीय पार्षद की भूमिका अहम हो गई। वह अपने मत का उपयोग कर पाता, इससे पहले ही उसका अपहरण हो गया। हालांकि रविवार को पार्षद देवज्योति राय को एक कार से बरामद भी कर लिया गया। पर अदालत में तो पुलिस की किरकिरी हो ही गई। आरोप जिन मामलों में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के किसी नेता पर लगे, उनमें तो पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आई ही। हैरानी की बात तो यह है कि दीदी सब कुछ देख सुन कर भी चुप्पी साध रही हैं। वजह भी हर कोई समझ रहा है। विधानसभा चुनाव सिर पर है तो कड़ाई कर अपने निरंकुश काडर को नाराज क्यों करें?

काहिली का अंजाम
पर्वतीय इलाकों को आमतौर पर प्रदूषण मुक्त माना जाता है। शिमला तो वैसे भी पुरानी पर्यटक नगरी ठहरी। लेकिन सूबे की राजधानी में पीलिया ने ऐसा प्रकोप दिखाया कि हिमाचल हाईकोर्ट को चाबुक चलाना पड़ गया। एक दर्जन से ज्यादा मौतें सूबे की राजधानी में हुई हों तो अदालत अनदेखी कर भी कैसे सकती थी। ऊपर से उस सूरत में जब सरकार की नीयत बीमारी से हुई मौतों के आंकड़ों को छिपाने की हो। स्वास्थ्य विभाग की सचिव अनुराधा ठाकुर ने मातहतों को बचाने के फेर में हाईकोर्ट में ही गलत बयानी कर डाली। पर हाईकोर्ट ने अवमानना की धमकी दी तो घिग्घी बंध गई। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दूसरे कई महकमों के अफसरों को तलब कर लिया है अदालत ने। तलाड़ तो मुख्य सचिव को भी लगाई कि जल आपूर्ति के मामले में वे विफल क्यों रहे? विधानसभा के बजट सत्र में इससे भाजपा को बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया। सदन से वाकआउट भी किया उसने। शिमला के भाजपा विधायक सुरेश भारद्वाज ने तो कांग्रेस सरकार की जमकर लानत-मलानत भी कर डाली।