तृणमूल कांग्रेस की छवि पर पार्थ चटर्जी-अर्पिता मुखर्जी गिरफ्तारी प्रकरण से दाग तो लगा है। दीदी से सफाई देते नहीं बन रहा। पश्चिम बंगाल सरकार के कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप में पहले भी कार्रवाई हुई, कई को जेल जाना पड़ा। पर इस तरह की बरामदगी पहले नहीं हुई थी। केंद्रीय एजंसियों के चक्रव्यूह में बेशक ममता बनर्जी के सांसद भतीजे अभिषेक और उनकी पत्नी भी कई साल से उलझे हैं। पर, पुराने सभी मामलों में पार्टी यह कहकर बचाव करती रही कि केंद्र की भाजपा सरकार उसके नेताओं पर कार्रवाई बदले की भावना से कर रही है।
सारदा घोटाला हो या पोंजी योजनाओं से जुड़े घोटाले, तृणमूल कांग्रेस के जो नेता इनमें फंसे थे उनमें से कुछ भाजपा में गए तो दीदी के बदले की भावना से कार्रवाई के आरोप में दम भी दिखा। लेकिन पार्थ चटर्जी के मामले ने दीदी की बोलती बंद कर दी।
पार्थ को पार्टी में दीदी के बाद दूसरे नंबर का नेता माना जाता था। शिक्षक भर्ती घोटाले की सीबीआइ जांच केंद्र के आदेश पर नहीं बल्कि कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश पर शुरू हुई थी। सीबीआइ जांच के निष्कर्ष के आधार पर मामले में प्रवर्तन निदेशालय भी शामिल हो गया।
अर्पिता के ठिकानों से पचास करोड़ रुपए से ज्यादा की नकदी, करोड़ों रुपए के जेवर और करोड़ों रुपए की संपत्ति के दस्तावेजों की बरामदगी के बाद दीदी को अपना रुख बदलना पड़ा। पहले तो पार्टी का नजरिया यही था कि अभी तो पार्थ पर आरोप हैं, आरोप के आधार पर कार्रवाई क्यों। लेकिन गतिविधियों ने तेजी से अजीब मोड़ लिया तो दीदी को आनन-फानन में गुरुवार को पार्थ का मंत्रिपद और पार्टी के भी सभी पद छीनने का फैसला करना पड़ा।
पार्टी का युवा खेमा तो कार्रवाई के लिए दबाव बना ही रहा था। कुणाल घोष ने तो ट्वीट कर दिया था। ऊपर से भाजपा नेता मिथुन चक्रवर्ती ने तृणमूल कांग्रेस के 21 विधायकों से अपने करीबी रिश्तों और 38 विधायकों के भाजपा के संपर्क में होने का बयान दिया तो ममता बनर्जी चौकन्नी हुई।
खुद भी सफाई दी कि उन्होंने हमेशा ईमानदारी से राजनीति की है। मुख्यमंत्री के नाते कभी वेतन भी नहीं लिया सरकार से। लेकिन उन्हीं के मुख्यमंत्री रहते शिक्षक भर्ती में इतना बड़ा घोटाला कैसे हो गया?
नवाबी नेता
चंद राज्यों में सत्ता की सांस ले रही कांग्रेस को उम्मीद है कि वह हिमाचल में भाजपा को हरा कर सरकार बना लेगी। उसके शिमला से लेकर दिल्ली तक के नेताओं के अंदाज ऐसे हैं जैसे वे गद्दी पर बैठ गए हैं।
बीते दिनों पार्टी आलाकमान ने आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर वरिष्ठ पर्यवेक्षक और सह पर्यवेक्षक नियुक्त किए। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को वरिष्ठ पयर्वेक्षक बनाया गया है जबकि सचिन पायलट और प्रताप सिंह बाजवा को सह-पर्यवेक्षक बनाया गया है।
पर्यवेक्षक बनने के बाद बघेल ने पार्टी नेताओं की बैठक बुलाई। यह बैठक राजधानी शिमला या प्रदेश के किसी जिले में नहीं, दिल्ली में बुलाई गई। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह और नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री को दिल्ली ही बुलाया गया। प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला व अन्य नेता भी दिल्ली ही में एकत्रित हुए।
इस बैठक में क्या हुआ यह तो पता नहीं, लेकिन कांग्रेस नेताओं ने संदेश दे दिया कि वे शहंशाहों से कम नहीं व जब चाहेंगे तब किसी को दिल्ली बुला लेंगे। ऐसे में कांग्रेसियों का कहना है कि अगर इसी तरह चंडीगढ़ और दिल्ली में बैठकें होती रहीं तो जमीन पर पार्टी के क्या हालात हैं, यह कभी पता ही नहीं चलेगा।
दूसरी ओर, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सौदान सिंह व बाकी नेता कब से प्रदेश की खाक छान रहे हैं। दिल्ली के नेता ही नहीं प्रदेश के छुटभैये नेता भी समझने लगे हैं कि उनकी सरकार बननी पक्की है। हर कोई टिकट की दावेदारी करने पर उतर गया है। ऐसे में कई समझदार कांग्रेसियों का कहना है कि अगर अभी से ही ऐसी उछल-कूद शुरू हो गई तो फिर आगे क्या होगा।
सनातन भ्रम
बिहार में राजग का गठबंधन भी रोचक ढंग से चल रहा है। आरसीपी सिंह के केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद जनता दल (एकी) की तरफ से उनके विकल्प के रूप में किसी को मंत्री नहीं बनवाना गठबंधन के स्थायित्व पर संदेह तो पैदा करता ही है। ऊपर से दोनों दलों के नेता जब-तब एक-दूसरे को चिढ़ाने वाली बयानबाजी करते रहते हैं।
मसलन, जनता दल (एकी) संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाह के बयान ने भाजपाई खेमे में तिलमिलाहट बढ़ा दी। कुशवाह से एक पत्रकार ने सवाल किया था कि भाजपा के साथ समन्वय कैसा चल रहा है। तो कुशवाह ने भाजपा नेताओं पर यह कहकर तोहमत मढ़ दी कि सरकार तो ठीक चल रही है पर भाजपा नेताओं के बयानों से भ्रम पैदा होता है। उन्हें ऐसे बयानों से परहेज करना चाहिए। लगे हाथ यह भी बोल गए कि कोई गारंटी नहीं दे सकता कि 2024 का लोकसभा और 2025 का विधानसभा चुनाव दोनों दल मिलकर लड़ेंगे।
भाजपा के कई नेताओं ने भी इस पर कुशवाह की लानत-मलानत करने में देर नहीं लगाई। उधर जद (एकी) के दूसरे नेता विजय चौधरी ने विवाद का पटाक्षेप करने के मकसद से बयान दिया कि समन्वय समिति के बिना ही बिहार में बेहतर समन्वय से चल रही है दोनों दलों की गठबंधन (संकलन : मृणाल वल्लरी)