विपक्षी दलों का यह आरोप निराधार नहीं है कि जो भाजपा में शामिल हो जाता है वह गंगा नहा जाता है। सनातन धर्म में ऐसी आस्था है कि गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं। मुलायम सिंह यादव के छोटे पुत्र प्रतीक यादव की गतिविधियों और आर्थिक हैसियत पर कितनी उंगली उठाते थे भाजपाई 2014 में जब सूबे में अखिलेश यादव की सरकार थी। लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव भाजपा में शामिल हुई तो जैसे साधना गुप्ता और उनका परिवार गंगा नहा गया। अब शिवपाल यादव को लेकर अटकलें लग रही हैं। विधानसभा चुनाव में चाचा-भतीजे थे तो साथ ही पर शिवपाल यादव ने सपा के पक्ष में कहीं भी प्रचार नहीं किया।
उनकी अपनी पार्टी का सपा में विलय तो नहीं हुआ पर शिवपाल ने जसवंत नगर सीट से विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के चुनाव निशान पर ही लड़ा और जीत भी गए। सपा अगर सत्ता में आती तो मंत्री भी जरूर बन जाते। भतीजे के सामने एक तरह से समर्पण कर दिया था। पर लगता है कि भतीजे ने 2016 में चाचा को लेकर मन में जो गांठ बांधी थी वह अभी तक खुली नहीं है। तभी तो सपा विधायक दल की बैठक की सूचना तक नहीं दी चाचा को। चाचा का आहत होना स्वाभाविक ठहरा। दर्द जुबां पर आ भी गया। पर भतीजे ने दलील दे डाली कि बैठक सपा विधायक दल की थी, सहयोगी दलों के विधायकों की नहीं।
उधर, चाचा ने एक तरफ तो दिल्ली जाकर बड़े भाई मुलायम से अपना दुखड़ा रोया दूसरी तरफ विधानसभा की सदस्यता की शपथ लेने के बाद लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ देर तक गुफ्तगू की। इसी से चर्चा तेज हो गई है कि अपर्णा के बाद भाजपा यादव परिवार के एक और कद्दावर सदस्य पर डोरे डाल रही है। उन्हें भाजपा में लेकर सूबे के यादवों में पैठ बनाने की कोशिश होगी। शिवपाल को भी खुद से ज्यादा चिंता अपने बेटे आदित्य की है। बड़े भाई मुलायम ने तो बेटे को सियासत में स्थापित कर दिया, वे भी तो ऐसा करने के लिए बेचैन हैं। मुलायम और अखिलेश की सरकारों में जब शिवपाल मंत्री थे तो भाजपाई उन पर जंगलराज चलाने के आरोप लगाते अघाते नहीं थे।
अबके बरस न जाओ
पंजाब में जब से आम आदमी पार्टी ने सत्ता संभाली तब से भाजपा और कांग्रेस के लिए अपने नेताओं को संभालना मुश्किल हो गया है। यही नहीं, दोनों दलों के आलाकमान भी परेशान हैं कि यह चुनावी साल है और अगर पार्टी के ही नेता खिसक लिए तो वे कहीं के नहीं रहेंगे। उधर मीडिया है कि रोजाना कोई न कोई शिगूफा छेड़ देता है।
पिछले दिनों सुर्खियों में आया कि जयराम सरकार का एक मंत्री और एक विधायक आम आदमी पार्टी के संपर्क में है। मंडी भाजपा के विधायक अनिल शर्मा को लेकर भी अटकलें जारी है कि वे आम आदमी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। छह अप्रैल को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान मंडी में एक रोड शो करने जा रहे हैं। इसी दिन आम आदमी पार्टी को अपनी ताकत भी दिखानी है और कई बड़े नेताओं को पार्टी में शामिल भी कराना है।
इसके लिए दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन हिमाचल के दौरे पर हैं। अब भाजपा व कांग्रेस के नेता अपने नेतृत्व को सरेआम धमका रहे हैं कि उनकी फलां बात मान लो नहीं तो वे आम आदमी पार्टी में चले जाएंगे। छोट पदाधिकारी भी हर बात पर पार्टी छोड़ने की धमकी दे रहे हैं। दोनों दलों के नेतृत्व के पास एक काम बढ़ गया है कि उसे इन आम आदमी पार्टी में चला जाऊंगा कहने वाले नेताओं, पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की खूब मनुहार करनी पड़ रही है कि अब के बरस न जाओ। अब का बरस चुनाव का बरस है। ये मनुहारें कितना काम कर पाएंगी यह तो आगामी दिनों में पता चलेगा। लेकिन स्थिति दोनों दलों में दिलचस्प बनी हुई है। देखते हैं पालाबदल की भगदड़ कब मचती है।
अबूझ पहेली
समय सचमुच ही बलवान होता है। महारानी के बदले तेवर से इसे बखूबी समझ सकते हैं। महारानी यानी राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे। अचानक पार्टी की सियासत में सक्रिय हो गई हैं। अगले साल सूबे में विधानसभा चुनाव जो होंगे। 2018 में विधानसभा चुनाव की हार के बाद विपक्ष का नेता बनने की उनकी हसरत को भाजपा आलाकमान ने पूरा नहीं होने दिया था। पार्टी के राष्टÑीय उपाध्यक्ष का पद उन्होंने स्वीकार तो जरूर किया पर सक्रिय कभी नहीं हुई। आलाकमान से नाराजगी का एक कारण सांसद बेटे को 2014 में केंद्र सरकार में मंत्री-पद नहीं मिलना था। वे इस कदर चिढ़ गई थीं कि नरेंद्र मोदी के शपथ समारोह से पहले दिन विदेश चली गई। मुख्यमंत्री रहते तो आलाकमान को अपने इशारों पर नाचने को मजबूर कर दिया था।
हां, 2018 के बाद उनके बुरे दिन शुरू हो गए। उनके विरोधी विधायक सतीश पूनिया को आलाकमान ने पार्टी का सूबेदार बना दिया। लोकसभा उम्मीदवारों के चयन में भी उनकी नहीं चली। लेकिन चार राज्यों में हाल में पार्टी फिर सत्ता में आई तो वसुंधरा के तेवर ढीले पड़ गए। लखनऊ और देहरादून में योगी और धामी के शपथ समारोह में तो गई ही दिल्ली आकर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और जेपी नड्डा के दरबार में मत्था टेका। आलाकमान मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की उनकी तमन्ना पूरी करेगा या नहीं यह तो अभी अबूझ पहेली है।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)