राजस्थान में गुटबाजी खत्म करने के लिए कांग्रेस आलाकमान अब गंभीरता से जुट गया है। 29 मई को हुई बैठक को इस दिशा में पहला कदम माना जा रहा है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के अलावा इसमें पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, केसी वेणुगोपाल और सुखजिंदर सिंह रंधावा भी मौजूद थे। आलाकमान ने यह संदेश देने की कोशिश की कि गहलोत और पायलट के बीच चल रहा झगड़ा सुलझ गया है। इसके उलट सचिन पायलट ने अपने ट्वीटर हैंडल पर जो वीडियो कथा पोस्ट की उसने फिर संदेह खड़ा कर दिया है। इस वीडियो में पायलट आम जनता के साथ नजर आ रहे हैं। पर, न तो कांग्रेस का चुनाव निशान कहीं नजर आता है और न ही पायलट के अलावा पार्टी का कोई दूसरा नेता इसमें है। इससे यह सवाल तो उठ ही रहा है कि क्या पायलट ने अपनी अलग पार्टी बनाने का इरादा छोड़ा नहीं है। पायलट और गहलोत के आपसी विवाद को तो भाजपा भी मुद्दा बनाना चाह रही है।

सचिन से हाथ मिलाने की राह पर हनुमान बेनीवाल

प्रधानमंत्री ने अजमेर की रैली में नाम लिए बिना इसका उल्लेख भी कर दिया। आठ महीने में प्रधानमंत्री की राजस्थान में यह छठी रैली थी। कांग्रेस राजस्थान में यही उम्मीद लगाए है कि भाजपा ने कोई चेहरा न दिया और प्रधानमंत्री के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा तो कर्नाटक का दोहराव दिखेगा राजस्थान में। उधर हनुमान बेनीवाल अपनी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के जरिए समूचे राजस्थान में बेशक न सही पर जाट बहुल नागौर के इलाके में चुनावी मुकाबलों को तिकोना बनाना चाह रहे हैं। पिछले चुनाव में वे भाजपा के साथ थे, पर इस बार अपनी अलग राह पकड़ी है। हां, सचिन पायलट अगर अलग पार्टी बनाएंगे तो जरूर उनसे हाथ मिला लेंगे बेनीवाल। विकल्प उन्होंने बसपा के साथ गठबंधन का भी खुला रखा है। देखें, यहां आगे क्या होता है?

यूपी में कौन बनेगा पुलिस विभाग का अगुआ?

देश का सबसे बड़ा सूबा नियमित पुलिस महानिदेशक की बाट जोह रहा है। उत्तर प्रदेश में पिछले नियमित पुलिस महानिदेशक जून 2021 में मुकुल गोयल बनाए गए थे। नियमित पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति संघ लोक सेवा आयोग की सहमति और केंद्र सरकार के कार्मिक विभाग की स्वीकृति से करने का नियम है। शर्त यह है कि संबंधित अधिकारी एक तो वरिष्ठता क्रम में ऊपर होने चाहिए, दूसरे उसकी नौकरी छह माह से अधिक शेष होनी चाहिए। मुकुल गोयल इन दोनों ही कसौटियों पर खरे थे। वे उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक बनाए जाने से पहले केंद्र सरकार में प्रति नियुक्ति पर थे। केंद्र सरकार की भी उनकी नियुक्ति के पीछे अहम भूमिका थी। साफ सुथरी छवि के अलावा वे वैश्य वर्ग से थे। लेकिन, विधानसभा चुनाव के फौरन बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें पद से हटा दिया।

दरअसल, उस समय के प्रमुख गृह सचिव अवनीश अवस्थी मुख्यमंत्री के खास माने जाते थे। पर, मुकुल गोयल उनकी जी हजूरी करने को तैयार नहीं थे। गोयल के करीबियों का कहना है कि अवस्थी ने मुख्यमंत्री से गोयल के खिलाफ कान भरे और गोयल हटा दिए गए। संघ लोक सेवा आयोग ने हटाने की वजह पूछी तो उत्तर प्रदेश सरकार ने कह दिया कि उनमें योग्यता नहीं थी। वरिष्ठता के साथ क्षमता भी होनी चाहिए। नियमित पुलिस महानिदेशक को कायदे से दो वर्ष के न्यूनतम कार्यकाल को पूरा करने से पहले हटाया नहीं जा सकता। पर, गोयल को 11 महीने में ही हटा दिया गया। मुख्यमंत्री उनसे इस कदर चिढ़े हैं कि वे वापस केंद्र में प्रति नियुक्ति पर जाना चाहते हैं तो उन्हें इसके लिए अनापत्ति नहीं दी जा रही।

उधर, गोयल के बाद योगी ने राजपूत अफसर देवेंद्र सिंह चौहान को पुलिस महानिदेशक नियुक्त किया पर केंद्र ने इस नियुक्ति का अनुमोदन नहीं किया। नतीजतन वे बतौर कार्यवाहक महानिदेशक ही सेवानिवृत्त हो गए। उनके बाद राजकुमार विश्वकर्मा को भी कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक के रूप में ही 31 मई को सेवानिवृत्त कर दिया गया। अब 1988 बैच के दलित आइपीएस विजय कुमार को महानिदेशक का कामकाज सौंपा गया है।

कांग्रेस की दिग्विजय?

मध्य प्रदेश में जीत के लिए कांग्रेस तमाम जतन कर रही है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी बनकर आई थी। पर, ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिर गई थी। कांग्रेस में अब गुटबाजी नहीं दिख रही। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ में रिश्ते मधुर हैं। पार्टी में अब कोई भगदड़ भी नहीं है। भाजपा के हिंदुत्व का मुकाबला कांग्रेस सुंदरकांड, भागवत कथा और रासलीलाओं से करने का इरादा बना चुकी है। इसका बीड़ा उठाया है 32 वर्ष की कथा वाचक रिचा गोस्वामी ने। इंदौर में जन्मी रिचा ने कथा वाचन का कौशल अमर कंटक के आश्रमों से सीखा है। रिचा का कहना है कि सूबे की सभी 230 विधानसभा सीटों में चुनाव से पहले सुंदरकांड और भागवत गीता का पाठ करेंगी। रिचा कहती हैं कि कांग्रेस धर्म में तो भाजपा से ज्यादा विश्वास करती है पर उसका दिखावा नहीं करती। रिचा की कथाएं और प्रवचन उनके यूटयूब चैनल पर भी खूब देखे-सुने जा रहे हैं। कभी भाजपा के पास भी मध्य प्रदेश में उमा भारती जैसी वाकपटु और निपुण साध्वी थीं, पर वे अब हाशिए पर हैं।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)