अरविंद केजरीवाल खुद को भले आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो होने की बजाए आम आदमी बताते हों पर सियासी दांवपेच में वे खासे माहिर हैं। सीबीआइ ने दिल्ली के शराब घोटाले में पूछताछ के लिए बुलाया तो दिल्ली के मुख्यमंत्री ने ऐसा माहौल बना दिया मानों उन्हें गिरफ्तार किया जाने वाला हो। यह सही है कि केजरीवाल से सीबीआइ की पूछताछ लंबी चली। पर, एक खास तथ्य को केजरीवाल ने जानबूझकर नजरअंदाज किया। शराब घोटाले की प्राथमिकी में अभी तक केजरीवाल का नाम नहीं है।
जिस सदन में बहुमत है वहां तो कोई भी प्रस्ताव पास हो जाएगा
सीबीआइ ने उन्हें बतौर अभियुक्त बुलाया भी नहीं था। उन्हें समन बतौर गवाह भेजा था। गवाह को गिरफ्तार कभी किया ही नहीं जा सकता। लेकिन केजरीवाल तो केजरीवाल ठहरे। अगले ही दिन दिल्ली विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र बुलाकर केंद्रीय एजंसियों के कथित दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए केंद्र सरकार के खिलाफ प्रस्ताव भी पारित कर दिया। विधानसभा में उनका जिस तरह का बहुमत है, उसे देखते हुए वे जो चाहे प्रस्ताव पारित कर ही सकते हैं। पर प्रस्ताव की आड़ में वे आधे घंटे तक सदन को कहानी सुनाते रहे। इसी कहानी में नाम लिए बिना अपना गुणगान भी खुद ही कर दिया।
भाजपा के विधायकों पर भी तंज कसने से नहीं चूके केजरीवाल
भाजपा के विधायकों पर भी तंज कसने से नहीं चूके। साफ था कि जो कहानी सुना रहे थे, उसके पीछे मकसद भाजपा के शिखर नेता को निशाना बनाना ही था। हालांकि भाजपा विधायकों से उन्होंने हंसते हुए कह दिया कि कहानी उनके नेता के बारे में नहीं है। भाजपा के विधायक सयाने होते तो इस किस्सागोई का हिस्सा बनने के बजाए विरोध करते हुए सदन से वाक-आउट कर जाते। केजरीवाल चालाक हैं। अच्छी तरह जानते हैं कि सदन के भीतर कही जाने वाली उनकी किसी बात पर सदन के बाहर कोई कानूनी संज्ञान नहीं लिया जा सकता। बाहर तो वे संभलकर और सोच समझकर ही करते हैं भाजपा पर हमला।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में उथल-पुथल मची है। माना कि शरद पवार पार्टी के निर्विवाद नेता हैं पर रस्साकसी तो उनकी विरासत को लेकर है। बेटी सुप्रिया सुले और भतीजे अजीत पवार के बीच नेतृत्व को लेकर शह और मात लगातार चलती है। अटकलें लगी कि अजीत पवार भाजपा में जाने की तैयारी में हैं। सारी अटकलें दरअसल सुप्रीम कोर्ट में लंबित शिवसेना के विवाद के फैसले को लेकर लगाई जा रही हैं। अगर अदालती फैसला शिंदे गुट के खिलाफ आया तो फिर मुख्यमंत्री कौन बनेगा? चर्चा गर्म है कि भाजपा ने प्लान ‘ब’ बना रखा है। शिंदे गुट को दरकिनार कर अजीत पवार के साथ तालमेल करेगी पार्टी।
हालांकि, अजीत पवार की गतिविधियों को लेकर चर्चा तेज हुई तो उन्होंने बयान दे दिया कि वे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी नहीं छोड़ेंगे। सियासी गलियारों में किसी से छिपा नहीं है कि पार्टी के विधायकों पर सुप्रिया की तुलना में अजीत पवार की पकड़ कहीं ज्यादा मजबूत है। विधानसभा चुनाव के बाद जब भाजपा और शिवसेना का समझौता टूटा था और उद्धव मुख्यमंत्री पद के लिए अड़ गए थे तो भाजपा ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विधायक दल के नेता अजीत पवार पर डोरे डाले थे। देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने थे तो अजीत पवार उपमुख्यमंत्री। यह बात अलग है कि शरद पवार ने समय रहते भतीजे को समझा-बुझा लिया था और पार्टी के विधायकों को भाजपा के पाले में जाने से रोक लिया था। लेकिन इतना तो साफ हो ही गया था कि नेताओं की किसी बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता। बस अगले कदम पर नजर रखी जा सकती है।
विपक्षी एकता को लेकर चाणक्य शरद पवार ने चिंता में डाला
राजग के खिलाफ गैर राजग दलों की एकता की कवायद दो कदम आगे बढ़ती है तो चार कदम पीछे चली जाती है। नीतीश कुमार के प्रयास से लगा था कि 2024 की चुनौती के लिए गैर राजग दल कुछ गंभीर हो रहे हैं। इस मुहिम का असली चाणक्य शरद पवार को बताया जाता है। पर, खुद पवार ही अपनी गतिविधियों के कारण एकता की मुहिम को कमजोर करते नजर आने लगते हैं। इस हफ्ते दो मुद्दों पर पवार की टिप्पणी से गैर राजग दलों का अंतर्विरोध फिर उभरा।
गौतम अडाणी के स्वामित्व वाले टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में पवार ने हिंडनबर्ग मामले की जेपीसी मांग को बेतुका बता दिया। सुप्रीम कोर्ट की बनाई जांच समिति को बेहतर कहा उन्होंने। जबकि संसद के पिछले सत्र में तो विपक्ष का सारा हंगामा ही जेपीसी की मांग को लेकर हुआ था। इसके बाद उन्होंने गौतम अडाणी से मुलाकात भी कर ली। अडाणी पवार से गुरुवार को उनके घर पर मिले और मुलाकात दो घंटे चली। यह मुलाकात तृणमूल कांग्रेस की जुझारू नेता महुआ मोइत्रा को अखरनी ही थी, जो अडाणी मामले में लगातार मुखर रही हैं। उन्होंने ट्वीट कर दिया कि अडाणी हमाम में तो सारे ही नंगे हैं।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)