जयंतीलाल भंडारी

इन दिनों देश के आर्थिक परिदृश्य पर अमेरिका से आई दो बड़ी आर्थिक चिंताएं उभरती दिखाई दे रही हैं। इनमें से एक चिंता अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर भारी-भरकम शुल्क व्यवस्था (टैरिफ वार) को भारत के दरवाजे पर लाने से संबंधित है और दूसरी चिंता वीजा नियमों में बदलाने संबंधी है। एक नवंबर से अमेरिका ने भारत की पचास वस्तुओं को शुल्क मुक्त यानी ड्यूटी फ्री आयात की सूची से हटा दिया है, यानी इन वस्तुओं के आयात पर अमेरिका में शुल्क लगेगा। इनमें ज्यादातर हथकरघा और कृषि क्षेत्र के उत्पाद हैं, जिन्हें छोटे-मझोले कारोबारी तैयार करते हैं। जीएसपी (जनरलाइज्ड सिस्टम फॉर प्रेफरेंस) के तहत अमेरिका अल्प विकसित और विकासशील देशों की आर्थिकी को बढ़ावा देने के लिए वहां से चुनिंदा वस्तुओं के आयात पर शुल्क नहीं लगाता है। हालांकि शुल्क मुक्त आयात की सीमा तय होती है। अमेरिका ने 129 देशों की करीब 4800 वस्तुओं को जीएसपी में रखा था।

भारत से अमेरिका को करीब 3500 वस्तुओं का शुल्क-मुक्त निर्यात होता है। अब भारत से निर्यात होने वाली अरहर दाल, सुपारी, तारपीन गम, आम, सैंडस्टोन, टिन क्लोराइड, बेरियम क्लोराइड, चमड़ा, सूती धागा, कालीन, सोने की परत चढ़े हार पर शुल्क लगेगा। इसका असर यह होगा कि अब ये वस्तुएं अमेरिकी बाजार में महंगी हो जाएंगी और भारत से इनके निर्यात में कमी आएगी। चूंकि भारत से अमेरिका को पिछले वर्ष 2017-18 में 47.8 अरब डॉलर का निर्यात किया गया और भारत की निर्यात सूची में अमेरिका पहले क्रम पर है, इसलिए अमेरिका में भारत से निर्यात में कमी की आशंका और दुनिया के अधिकांश देशों में विकास दर घटने के कारण केंद्र सरकार के द्वारा चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 में देश से निर्यात का जो 340 अरब डॉलर मूल्य का लक्ष्य रखा गया है, उसके सामने प्रश्नचिन्ह लग गए हैं।

अमेरिका के कारण ही इस समय देश से होने वाले निर्यात के समक्ष बड़ी चुनौती दिखाई दे रही है। इसी साल 20 अगस्त को अमेरिका ने यूरोपीय यूनियन, चीन, जापान, कनाडा, रूस, श्रीलंका, ताइवान, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड के साथ मिल कर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भारत की निर्यात संवर्धन योजनाओं के खिलाफ प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। इससे पहले भी इसी साल मार्च में अमेरिका ने डब्ल्यूटीओ में भारत के द्वारा दी जा रही निर्यात सबसिडी को रोकने के लिए आवाज उठाई थी। भारत की निर्यात संवर्धन योजनाओं के विरोध में डब्ल्यूटीओ में जो आवाज उठाई गई, उसमें कहा गया है कि अब भारत अपने निर्यातकों के लिए सबसिडी योजनाएं लागू नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा करना डब्ल्यूटीओ के समझौते का उल्लंघन है। इसमें कहा गया कि निर्यात के लिए सबसिडी ऐसे देश ही दे सकते हैं, जहां प्रति व्यक्ति आय एक हजार डॉलर सालाना से कम है। भारत में प्रति व्यक्ति आय इसके दोगुने के बराबर है। भारत का कहना है कि उसके पास निर्यात संवर्द्धन योजनाओं को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए आठ वर्षों का समय है।

अमेरिका और अन्य देशों का कहना है कि जिन देशों की प्रति व्यक्ति आय तीन वर्षों से लगातार एक हजार डॉलर से अधिक है, उन देशों पर यह नियम लागू नहीं होता है। ऐसे में इस विवाद के समाधान के लिए अब न्यायसंगत समाधान हेतु डब्ल्यूटीओ ने फिलीपींस के जो एंटानियो बुएनकैमिनो की अध्यक्षता में एक समिति बनाई है, जो आगामी तीन महीनों में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले में भारत कमजोर पड़ सकता है और अगले महीने के अंत तक भारत को विवादित योजनाओं पर निर्यात सबसिडी खत्म करने के मद्देनजर बड़ा फैसला करना पड़ सकता है।

निर्यात के साथ ही अमेरिका ने वीजा नियमों में बदलाव का जो कदम उठाया है, वह भी भारत के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाला है। एक नवंबर, 2018 से अमेरिका के श्रम विभाग ने एच-1बी वीजा के लिए आवेदन की प्रक्रिया को और सख्त कर दिया है। अब अमेरिकी कंपनियों को बताना पड़ेगा कि उनके यहां पहले से कितने विदेशी कर्मचारी हैं। यह इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण है कि वीजा आवेदन पर पहले श्रम मंत्रालय की मंजूरी लेनी पड़ेगी। मंत्रालय इस बात का प्रमाणपत्र देगा कि जिस काम के लिए वीजा लिया जा रहा है उसे करने के लिए अमेरिका में कोई कर्मचारी उपलब्ध नहीं है। इसी तरह अमेरिका के गृह सुरक्षा विभाग (डीएचएस) और अमेरिकी नागरिकता आव्रजन सेवा (यूएससीआइएस) ने संकेत दिया है कि अमेरिका एच-1 बी वीजा नीति में बड़े बदलाव की तैयारी कर रहा है। एच-1 बी वीजा भारतीय आइटी पेशेवरों के बीच खासा लोकप्रिय है। यह एक गैर प्रवासी वीजा है, जो अमेरिकी कंपनियों को कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में विदेशी कर्मचारियों की भर्ती की अनुमति देता है।

एच-1 बी वीजा नीति में बदलाव के संबंध में जनवरी, 2019 तक नया प्रस्ताव लाने की योजना है। इसका मकसद विशेष व्यवसाय की परिभाषा को संशोधित करना है, ताकि एच-1 बी वीजा कार्यक्रम के माध्यम से बेहतर और प्रतिभाशाली विदेशी नागरिकों पर ध्यान केंद्रित किया जा सके। डीएचएस ने कहा कि वह अमेरिकी कामगारों और उनके वेतन-भत्तों के हितों को ध्यान में रखते हुए रोजगार और नियोक्ता-कर्मचारी संबंध की परिभाषा को भी संशोधित करेगा। अमेरिकी प्रशासन ने कहा कि एच-1 बी वीजाधारकों को नियोक्ताओं से उचित वेतन सुनिश्चित करने के लिए गृह सुरक्षा विभाग और भी कदम उठाएगा।

निश्चित रूप से अमेरिका के इस कदम से भारत की आइटी कंपनियों पर बड़े पैमाने पर असर पड़ेगा। भारतीय मूल के अमेरिकियों के स्वामित्व वाली छोटी और मझौली कंपनियां भी इससे प्रभावित होंगी। एच-1 बी वीजा नियमों में बदलाव को अमेरिका में आइटी कंपनियों के संगठन आइटीसर्व अलायंस ने चुनौती दी है। पहले एच-1बी वीजा तीन साल के लिए दिया जाता था, लेकिन अब अमेरिका कम अवधि के भी यह वीजा दे रहा है। इसको लेकर संगठन ने अमेरिकी इमिग्रेशन एजेंसी- यूएससीआइएस के खिलाफ याचिका दायर की है। आइटीसर्व एक हजार से ज्यादा छोटी आइटी कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता है। इनमें ज्यादातर कंपनियां भारतीय मूल के अमेरिकियों की ही हैं।

गौरतलब है कि अमेरिका ने एच-1बी वीजा में बदलाव की तैयारी के नए अभियान के पहले भी 1 अक्टूबर, 2018 से एच-1बी वीजा नियम सख्त किए हैं। जिनके वीजा की मियाद खत्म हो गई है या उनका स्वरूप बदल गया है, उन्हें देश से बाहर निकाला जा सकता है। इसका भारतीयों पर सबसे ज्यादा असर पड़ सकता है। जिन लोगों का वीजा नहीं बढ़ाया गया है, उनमें भारतीय ज्यादा हैं। वीजा देने की यह व्यवस्था 1990 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने शुरू की थी। इसका मकसद अमेरिका में दुनियाभर से प्रतिभावान लोगों को काम के लिए बुलाना था, ताकि देश में उत्पादकता को बढ़ाया जा सके। अमेरिका हर साल पिच्यासी हजार विदेशियों को एच-1बी वीजा जारी करता है। इनमें बीस हजार अमेरिकी यूनिवर्सिटी से मास्टर्स डिग्री कर चुके लोगों के लिए हैं। पिछले साल 67815 भारतीयों को ये वीजा दिया गया था। इनमें से 75.6 फीसद आइटी पेशेवरों को मिले थे। लेकिन अब एच-1बी वीजा स्वीकृति की संख्या घटती जा रही है।

ऐसे में अमेरिका से मिल रही इन दो बड़ी चुनौतियों से निजात पाना आसान नहीं है। सरकार को प्रयास करना होगा कि अमेरिका भारत से निर्यात की जा रही और अधिक मदों को आयात शुल्क के दायरे में न ले। साथ ही, इस समय एच-1बी वीजा में बड़े बदलाव की अमेरिका की योजना को रोकने के लिए भारत को आइटीसर्व अलायंस के अभियान को पूरा समर्थन देना चाहिए। इसके अलावा विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के साथ-साथ अमेरिका के प्रभावशाली प्रवासी भारतीयों और भारत के हित चिंतक प्रबुद्ध वर्ग के माध्यम से भी वीजा प्रतिबंधों का जोरदार विरोध करना होगा।