ब्रह्मदीप अलूने

आर्थिक मोर्चे पर नाकामियों के बाद भी एर्दोआन देश के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में खुद को प्रचारित करने के लिए राजनीतिक और धार्मिक हथकंडे अपना रहे हैं। धार्मिक शिक्षा के प्रसार से समाज विभाजित हो रहा है। एर्दोआन इस्लाम के सहारे चुनाव जीतने में तो लगातार सफल हो रहे हैं, लेकिन तुर्की की अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है।

यूरोप का आधुनिक देश तुर्की अपने शीर्ष नेता रेसेप तैयब एर्दोआन की इस्लामिक राष्ट्रवाद की नीतियों से आर्थिक जंजाल में फंस गया है। यूरोप का एकमात्र इस्लामिक देश होने के बाद भी लंबे समय तक धर्मनिरपेक्षता और उदारवाद के जरिए सामाजिक और आर्थिक रूप से अग्रणी यह देश पिछले दो दशकों से सत्ता में बने रहने की एर्दोआन की सनक का शिकार बन गया है। एर्दोआन दशकों पुरानी धार्मिक नीतियों को तुर्की के समाज पर थोप रहे हैं, ताकि वे बहुसंख्यक मुसलमानों का भरोसा हासिल करके सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रख सकें। लेकिन इसका खमियाजा तुर्की के आम लोगों को भोगना पड़ रहा है। इसका प्रभाव गिरती अर्थव्यवस्था से लेकर सुरक्षा व्यवस्था तक पड़ रहा है।

यूरोप के इस खूबसूरत देश को एर्दोआन की दो दशक की राजनीति ने बदल कर रख दिया है। इस्लामिक बहुल यह देश विविधता के चलते दुनिया में अपना विशिष्ट स्थान रखता था। यहां रूसी, आर्मेनियाई, अल्बेनियाई, कुर्द, यहूदी, ईसाई सहित कई नस्ल और जातीय समूह समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के साथ बढ़िया जीवन जीते थे। इसी कारण इस देश को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की पहचान मिली हुई थी। लेकिन लगभग दो दशक पहले तुर्की में एर्दोआन के सत्ता में आने के बाद सब कुछ बदल गया। एर्दोआन ने देश की सत्ता में बने रहने के लिए इस्लाम को राष्ट्रवाद से जोड़ कर इसे लोकलुभावन बनाने की कोशिश शुरू की और यहीं से इस देश में वैचारिक कट्टरता को बढ़ावा मिलने लगा।

सत्ता में आने के बाद एर्दोआन ने इस्लाम को सर्वोपरि मानने और दिखाने की राजनीतिक और सामाजिक कोशिशें शुरू कर दी थीं। यह कवायद इस विविधता वाले देश में अभूतपूर्व थी और साथ ही समाज को असहज करने वाली भी। पंद्रहवीं सदी के इस्लामिक आटोमन साम्राज्य को आधार बना कर एर्दोआन देश में विभाजनकारी भावनाएं उभार रहे हैं। उनकी इन कुटिल कोशिशों के कारण तुर्की की बहुलतावादी पहचान को बनाए रखना मुश्किल हो गया है।

आधुनिक तुर्की के निर्माता माने जाने वाले कमाल पाशा ने तुर्की को एक आधुनिक यूरोपीय देश के रूप में स्थापित करने के लिए मजहबी अदालतें खत्म कर दी थीं, धार्मिक कट्टरपंथी ताकतों को रोकने के लिए इस्लामिक खलीफाओं को खारिज कर दिया था, अरबी भाषा पर रोमन या अंग्रेजी को तरजीह दी और स्विस नागरिक संहिता लागू कर महिलाओं को मतदान का अधिकार दे दिया था। उनके उदार बदलावों से लंबे समय तक संचालित तुर्की ने एक मजबूत राष्ट्र के रूप में जो पहचान बनाई थी। पर अब वही तुर्की गंभीर संकट में है।

इसका प्रमुख कारण देश की सियासी राजनीति में एर्दोआन की धार्मिक नीतियां बन गई हैं, जो सत्ता हासिल करने का साधन भी बना दी गई हैं। एर्दोआन अपनी रैलियों में तुर्की के राष्ट्रवादी विचारक जिया गोकाई के दिए विचार को बार बार दोहराते हैं कि मस्जिदें हमारी छावनी हैं, गुंबदें हमारे रक्षा कवच, मीनारें हमारी तलवार और इस्लाम के अनुयायी हमारे सैनिक हैं।

एर्दोआन ने अपने चुनावी एजंडे के अनुसार तुर्की के ऐतिहासिक संग्रहालय हागिया सोफिया को मस्जिद में बदल दिया। पहले ये चर्च था। ग्रीस के ईसाइयों और दुनिया भर के मुसलमानों के लिए इसका खास महत्व था। एर्दोआन ने यहां पहली बार नमाज अता करते हुए इसका राष्ट्रीय टीवी पर सीधा प्रसारण भी करवाया। तुर्की के उदार समाज ने उनके इस कृत्य की कड़ी आलोचना की थी। हागिया सोफिया में नमाज पढ़ने या किसी अन्य धार्मिक आयोजन पर अब तक पाबंदी थी। अब एर्दोआन ने इसे तुर्की की धार्मिक अस्मिता से जोड़ कर इसे राष्ट्रवाद और असल पहचान बताया है।

एर्दोआन के इन कट्टर राष्ट्रवादी कदमों का प्रभाव अब देश की आर्थिक स्थिति पर पड़ रहा है। आधुनिक शिक्षा से ज्यादा धार्मिक शिक्षा को तरजीह देने की एर्दोआन की नीतियों के चलते देश में मदरसों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। आधुनिक तुर्की में इस्लाम के उदार रूप को धार्मिक कट्टरता में बदलने की राजनीतिक कोशिशों का असर समाज पर पड़ रहा है। दो दशक पहले सड़क पर बुर्का या धार्मिक पहचान रखने वाले वस्त्र पहने इक्का-दुक्का लोग ही नजर आते थे। पर अब वे बहुतायत में देखे जा सकते हैं। विश्वविद्यालयों में बुर्का प्रतिबंधित रहा है, लेकिन एर्दोआन की पत्नी सार्वजनिक स्थानों पर इसे पहन कर जाती हैं।

एर्दोआन की इन नीतियों से तुर्की आने वाले पर्यटकों की संख्या में खासी कमी आई है। तुर्की के बदलते स्वरूप को लेकर कई मित्र राष्ट्रों से उसके रिश्ते खराब हुए हैं। वैश्विक संस्थाओं में भी तुर्की की छवि खराब हुई है। पर्यटन से अरबों डालर कमाने वाले इस देश का पर्यटन उद्योग खस्ताहाल हो चला है। तुर्की में मुद्रा इतनी अस्थिर हो चुकी है कि उसकी कीमत हर रोज बदल रही है। महंगाई चरम पर है।

तुर्की की राष्ट्रीय मुद्रा लीरा में डालर के मुकाबले गिरावट अपने निम्नतम स्तर पर है। इस व्यापक गिरावट का एक सबसे प्रमुख कारण तुर्की के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए कम ब्याज दर रखने की एर्दोआन की अपरंपरागत आर्थिक नीतियां हैं। इन आर्थिक नीतियों का परिणाम है कि पेट्रोल पंपों और स्थानीय सरकारी कार्यालयों के बाहर सस्ते दामों में रोटी लेने के लिए कतारें लगती हैं। बेरोजगारी चरम पर है। सालाना महंगाई दर 2002 के बाद से सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है। बढ़ती महंगाई के दौरान भी ब्याज दरों में कटौती को जारी रखा गया। इसे एर्दोआन ने इस्लाम के मूल्यों और आदर्शों से जोड़ कर राष्ट्रवादी भावनाओं को उभार देने की कोशिश की।

एर्दोआन मीडिया को सरकारी तंत्र की तरह उपयोग करते हैं। कई पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया है। डिजिटल और मनोरंजक माध्यम को भी एर्दोआन ने अपने राजनीतिक प्रचार का साधन बना लिया है। तुर्की के ऐतिहासिक आटोमन साम्राज्य के गठन पर बनी टीवी धारावाहिक ‘दिरलिस एर्तरुल’ को तुर्की के सरकारी टीवी पर प्रसारित करके धार्मिक उन्माद फैलाने की कोशिशें की गई। इसी प्रकार तुर्की में सुल्तान सुलेमान के जीवन पर ‘द मैग्निफिसेंट सेंचुरी’ नाम से एक टीवी नाटक बना था।

सोलहवीं सदी में सुल्तान सुलेमान के नेतृत्व में आटोमन साम्राज्य शिखर पर था और इस नाटक में इसे ही दिखाया गया है। यह नाटक तुर्की के विविध समाज को बांटने वाला साबित हुआ। इन धारावाहिकों में तुर्की और इस्लाम के लिए धर्म युद्द की तरह प्रचारित किया गया। ऐसे धारावाहिकों से देश में कट्टरता बढ़ रही है और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठन मजबूत हुए हैं।

एर्दोआन पाकिस्तान जैसे देशों से रिश्ते मजबूत करके कट्टरवादी ताकतों को बढ़ावा दे रहे हैं। इस कारण तुर्की पर आतंकी हमलों के खतरे बढ़े हैं। एर्दोआन तुर्की के प्राचीन गौरव को लौटाने की बात कह कर खुद की नीतियों को निर्णायक और बदलावकारी बताने का दावा कर रहे हैं। इस्लामिक दुनिया का नेतृत्व करने की उनकी धुन के चलते कई यूरोपियन देश उनसे खफा हो गए हैं। इसका असर निवेश पर पड़ा है। रोजगार खत्म हो रहे हैं। उत्पादन प्रभावित हुआ है।

बहरहाल आर्थिक मोर्चे पर तमाम नाकामियों के बाद भी एर्दोआन देश के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में खुद को प्रचारित करने के लिए तमाम तरह के राजनीतिक और धार्मिक हथकंडे अपना रहे हैं। धार्मिक शिक्षा के प्रसार से समाज विभाजित हो रहा है। एर्दोआन इस्लाम के सहारे चुनाव जीतने में तो लगातार सफल हो रहे हैं, लेकिन तुर्की की अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है।