ब्रह्मदीप अलूने
नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री विलियम आर्थर लुइस ने कहा है कि प्रवास से पैदा होने वाली राजनीतिक कठिनाइयां वास्तव में आसानी से हल नहीं होतीं, अगर प्रवासी उस देश- समाज में समाहित न होने की ठान लें। दरअसल, भारत में अवैध प्रवासियों की समस्या सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक मुद्दा रहा है। उत्तर-पूर्व इस समस्या से अभिशप्त नजर आता है, वहीं दिल्ली से लेकर बिहार और पश्चिम बंगाल भी अवैध प्रवासियों से प्रभावित और आशंकित हैं। किसी देश की शक्ति और सामर्थ्य में वहां के नागरिकों, संस्कृति और भूगोल का बड़ा योगदान होता है। भारतीय उपमहाद्वीप में बहु-सांस्कृतिक परिवेश और उदार समाज रहा है जिसका भारत ने तो सम्मान किया और उसे आत्मसात भी किया, लेकिन पड़ोसी देशों के संस्कृतिवाद ने इस समूचे क्षेत्र की समस्याओं को बढ़ाया है। भारत की भौगोलिक परिस्थितियों की प्रतिकूलताओं ने भी देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए नित नई चुनौतियां पेश की हैं।
नेपाल और भारत के बीच करीब 1850 किलोमीटर की खुली सीमा है जहां पर मुक्त आवाजाही है। पाकिस्तान की खुफियां एजेंसी ने इसका खूब दुरुपयोग किया है। इस मार्ग से नकली मुद्रा का व्यापार, घुसपैठ और आतंकियों की आवाजाही आज बड़ी चुनौती बन गई है। भारत और नेपाल के प्राचीन और सांस्कृतिक संबंधों के कारण इस इलाके को सील करना संभव नहीं है और इसका खमियाजा हमारी आंतरिक सुरक्षा को भोगना पड़ रहा है। नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता और माओवाद के उभार से भारत के कई राज्य प्रभावित हो रहे हैं। माओवादी इस खुली सीमा से न केवल भारतीय सीमा में घुस जाते हैं, बल्कि रेड कॉरिडोर के जरिए भारतीय सुरक्षा व्यवस्था को भी गंभीर चुनौती पेश कर रहे हैं।
उत्तर-पूर्वी राज्यों में अरुणाचल, नगालैंड, मणिपुर और मिजोरम की सीमाएं म्यांमा से मिलती हैं। अभी भी म्यांमा में पच्चीस लाख भारतीय मूल के लोग निवास करते हैं और नगा जनजातियों के लोग सीमाओं के दोनों ओर स्थित हैं। इनमें नगा और कुकी जनजातियों की बड़ी आबादी है। जनजातियों के आपसी संबंधों के कारण दोनों देशों के बीच सोलह किलोमीटर के क्षेत्र में मुक्त आवागमन का प्रावधान है। यह सीमा रोहिंग्या घुसपैठ के लिए मुफीद मानी जाती है। म्यांमा में बहुसंख्यक बौद्धों और अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों में जातीय संघर्ष जारी है। वहां की सरकार भी रोहिंग्या के प्रति कड़ा रुख अपनाए हुए है, ऐसे में रोहिंग्या वहां से भाग रहे हैं।
भारत की सीमा के आसपास म्यांमा के सुरक्षा बलों की काफी कम तैनाती है, जिससे पूर्वोत्तर के अलगाववादी तत्त्व म्यांमा में आसानी से शिविर बना कर भारत में अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। रोहिंग्या को पाकिस्तान के आतंकी संगठनों का प्रश्रय मिलता रहा है और वे भारत में आतंकी हमलों में संलिप्त भी रहे हैं। म्यांमा में बौद्ध-रोहिंग्या मुसलिम संघर्ष के बीच जेहादी संगठन एकजुट होकर म्यांमा को सबक सिखाने की घोषणा कर चुके हैं। इनमें यमन का अलकायदा समूह और पाकिस्तान के लश्कर-ए -तैयबा शामिल हैं। आइएस जैसी मजहबी मानसिकता को पसंद करने वाले लश्कर-ए-तैयबा ने भारत में कई महत्त्वपूर्ण स्थानों को आतंकी हमलों से दहलाया है। इसके संपर्क में सिमी और इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े आतंकी रहे हैं और स्लीपर सेल अनुकूल समय के इंतजार में हैं।
म्यांमा में सेना के दमन के दौर (1991-92) में करीब ढाई लाख रोहिंग्या बांग्लादेश भाग गए थे। उस दौरान पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी राज्यों की सीमा से घुस कर तकरीबन चालीस हजार रोहिंग्या भारत के विभिन्न स्थलों पर बस गए। भारत में चालीस हजार रोहिंग्या के होने का अनुमान है, जिनमें सोलह हजार संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थियों के तौर पर पंजीकृत हैं। भारत में बसे रोहिंग्या मुसलमान अब पाकिस्तान प्रायोजित आतंक का खतरनाक चेहरा बन कर यहां के बहुसांस्कृतिक समाज को हिंसा में झोंक सकते हैं और इसकी आशंका गहरा गई है। कश्मीर में आतंकी हमलों में रोहिंग्या भी शामिल रहे हैं। साल 2015 में कश्मीर में मारे गए दो विदेशी आतंकियों में से एक की पहचान म्यांमा के नागरिक के रूप में हुई थी।
एक और घटना में जैश-ए-मोहम्मद के कमांडर आदिल पठान के साथ छोटा बर्मी नामक एक रोहिंग्या कश्मीर में सुरक्षा बलों के साथ एक मुठभेड़ में मारा गया था। छोटा बर्मी पाकिस्तान में हाफिज सईद के साथ मंच साझा कर चुका था। इसके पहले साल 2013 में बोधगया में हुए बम धमाकों को भी म्यांमा के धार्मिक संघर्ष से ही जोड़ कर देखा गया था। खुफिया ब्यूरो (आइबी) ने इसके पीछे अलकायदा से जुड़े संगठन जमात-अल-तवाहिद-वल-जिहाद का हाथ होने की संभावना जताई थी।
भारत और बांग्लादेश के बीच करीब चार हजार किलोमीटर से ज्यादा की सीमा है और यह मुख्यत: असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, मेघालय और मिजोरम को छूती है। पूर्वी पाकिस्तान से असम में घुसपैठ का सिलसिला 1947 से लगातार चल रहा है। 1971 में बंगालियों पर पाकिस्तान सेना के अत्याचार से यह समस्या और ज्यादा गंभीर हो गई। इस समय देश से कहीं ज्यादा असम के एक परिवार में औसतन 5.5 सदस्य हैं, जिसके कारण राज्य की बेरोजगारी दर बढ़ कर इकसठ फीसद तक पहुंच गई है। 2001 से 2011 के बीच असम के बरपेटा, बोंगाईगांव, नगांव, ग्वालपाड़ा, कछार, धेमाजी, करीमगंज, हेला कांडी जैसे सीमावर्ती जिलों में अधिकांश इलाकों में जनसंख्या का फीसद तीस तक बढ़ गया है।
बांग्लादेश और भारत की सीमा के बीच पूर्वोत्तर की भौगोलिक परिस्थितियां घुसपैठ के लिए अनुकूल हैं। देश के उत्तर-पूर्व के सबसे बड़े राज्य असम में रहने वाले भारतीय नागरिक अपने भौतिक संसाधनों पर बांग्लादेशियों के कब्जे और रोजगार खत्म होने से बेहद नाराज हैं। यह नाराजगी धीरे-धीरे अलगाव और पृथकतावाद तक पहुंच गई है। असम में घुसपैठ के कारण आदिवासियों के सामने सांस्कृतिक, आर्थिक और जातीय पहचान का संकट उत्पन्न हो गया और इसी कारण वहां अलगाववादी संगठन उल्फा अस्तित्व में आया।
त्रिपुरा जनजातियों का राज्य माना जाता था और यहां अस्सी फीसद जनजातियां निवास करती थीं। अब जनजातीय समूह अल्पमत में आ गए हैं। पूर्वोत्तर के इस जनसांख्यिकी बदलाव से सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान खोने का संकट बढ़ा तो जनजातीय समूहों ने हथियार उठा लिए और अब इन इलाकों में पृथकतावादी और हिंसक आंदोलनों का गहरा प्रभाव देखने में आता है। असम और त्रिपुरा दोनों ऐसे राज्य हैं जो घुसपैठ से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने बांग्लादेश के आतंकी संगठन हूजी से मिल कर असम, मिजोरम, मेघालय और मणिपुर को इस्लामिक कट्टरतावाद से जोड़ने में काफी सफलता हासिल कर ली है।
भारत की सबसे लंबी सीमा रेखा बांग्लादेश के साथ लगती है और इसका फायदा उठा कर पूर्वोत्तर के रास्ते भारत को आतंकवाद आयातित किया जा रहा है। इसमें घुसपैठ, तस्करी, मदरसों का जाल और बड़े पैमाने पर नकली मुद्रा का कारोबार शामिल है। असम में अवैध प्रवासी की समस्या बदस्तूर जारी है और अब यह आंतरिक सुरक्षा के लिए भी चुनौती बन गई है। इससे असम के लोगों की अपनी पहचान खतरे में पड़ गई है और राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी खतरा मंडराने लगा है। असम के पूर्व राज्यपाल ने तो कहा भी था कि वृहत बांग्लादेश के सपने को साकार करने के लिए असम के साथ सड़क मार्गों से शेष देश के हिस्सों को जोड़ने की रणनीति पर अमल किया जा रहा है। इससे समूचे पूर्वोत्तर के देश से अलग होने का खतरा पैदा हो गया है। यदि ऐसा हो गया तो यह रणनीतिक और आर्थिक तबाही मचाने वाला होगा। इसलिए सीमाओं को सुरक्षित कर घुसपैठ पर रोक लगाना देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए बेहद जरूरी है।