जयंतीलाल भंडारी

कोरोना महामारी से निपटने वाले टीके आ जाने के बाद यह उम्मीद बंधी है कि आने वाले दिनों में इस संकट से मुक्ति मिलने लगेगी और वैश्विक अर्थव्यवस्था फिर से सामान्य होने की दिशा में बढ़ने लगेगी। हालांकि कई देशों में अभी भी महामारी का कहर जारी है और इसका सीधा असर उन देशों की अर्थव्यवस्था पर स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है।

भारत भी दुनिया के उन चंद देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने कोरोना का स्वदेशी टीका विकसित कर लिया है और देश में तेजी से टीकाकरण का अभियान चला रहे हैं। भारत दुनिया के कई देशों को टीकों की आपूर्ति भी कर रहा है।

इन सबका सकारात्मक पक्ष यह है कि अब विकास को रफ्तार देने और अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए शोध और नवाचार (रिसर्च एंड इनोवेशन) पर ध्यान केंद्रित हो रहा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्ष 2021-22 के बजट में शोध और नवोन्मेष को आगे बढ़ाने के लक्ष्यों का एलान करते हुए इस क्षेत्र पर पचास हजार करोड़ रुपए खर्च करने की बात कही है। इसके साथ ही नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) के गठन का एलान भी किया गया है, जो इसी साल से काम शुरू कर देगा।

भारत के शोध एवं नवाचार की अहमियत को दुनिया में स्वीकार किया जा रहा है। हाल में बिल गेट्स भी कोरोना टीके के निर्माण में भारतीय वैज्ञानिकों की शोध और नवाचार की भूमिका और भारतीय नेतृत्व की पहल की सराहना कर चुके हैं। दरअसल कोरोना का स्वदेशी टीका विकसित हो जाने के पीछे वैज्ञानिक अनुसंधान, नवाचार और नई तकनीकों की अहम भूमिका रही है।

ऐसे में अब ब्रांड इंडिया और मेड इन इंडिया की वैश्विक मांग और वैश्विक स्वीकार्यता सुनिश्चित करने के लिए शोध एवं नवाचार को मजबूत बनाना होगा। शोध एवं नवाचार से संबंधित वैश्विक रिपोर्टों में भारत का स्थान लगातार बढ़ रहा है। विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआइपीओ) द्वारा जारी वैश्विक नवाचार सूचकांक (ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स- जीआइआइ) 2020 में भारत चार पायदान ऊपर चढ़ कर अड़तालीसवें स्थान पर पहुंच गया है और भारत ने शीर्ष पचास में अपनी जगह बना ली है।

भारत वर्ष 2019 में इस सूचकांक में बावनवें और 2015 में इक्यासीवें स्थान पर था। पिछले वर्ष ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में भी दुनिया के एक सौ पैंतीस देशों की अर्थव्यवस्थाओं को नवाचार के आधार पर जिन पाँच समूह में विभाजित किया गया है, उनके तहत भारत को तीसरे समूह के देशों में शामिल किया गया है। ग्लोबल इनोवेशन रैंकिंग का यह वर्णीकरण संस्थाओं की गुणवत्ता, आइटी इंफ्रास्ट्रक्चर, कारोबारी माहौल और मानव संसाधन के आधार पर किया गया है।

भारत एक दशक से लगातार वैश्विक नवाचार क्षेत्र में उपलब्धि हासिल करने वाला देश है। नए वैश्विक सूचकांक के तहत भारत में कारोबारी विशेषज्ञता, रचनात्मकता, राजनीतिक और संचालन से जुड़ी स्थिरता, सरकार की प्रभावशीलता और दिवालियापन की समस्या को हल करने में आसानी जैसे संकेतकों में अच्छे सुधार किए हैं।

साथ ही, भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था, घरेलू कारोबार में सरलता, नए छोटे कारोबार (स्टार्टअप), विदेशी निवेश जैसे मानकों में भी बड़ा सुधार दिखाई दिया है। कोविड-19 के बीच स्वास्थ्य सामग्रियों एवं दवाइयों के निर्माण में हेल्थ रिसर्च ने प्रभावी भूमिका निभाई है। कोरोना काल में पीपीई किट, जीवनरक्षक उपकरण, मास्क और सैनेटाइजर जैसी बेहद जरूरी चीजों का बड़े पैमाने पर देश में ही उत्पादन किया गया और साथ ही इन्हें दूसरे देशों को भी भेजा गया।

भारत जिस वैश्विक नवाचार सूचकांक में आगे बढ़ा है, उस पर पूरी दुनिया के उद्योग-कारोबार की निगाहें हैं। जीआइआइ के कारण विभिन्न देशों को सार्वजनिक नीति बनाने से लेकर उत्पादकता में सुधार और नौकरियों में वृद्धि में सहायता मिलती है।

भारत में नवाचार बढ़ने से अमेरिका, यूरोप और एशियाई देशों की बड़ी-बड़ी कंपनियां नई प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय आइटी प्रतिभाओं को प्रमुखता दे रही हैं और साथ ही भारत में अपने शोध और नवोन्मेष को बढ़ावा देने के लिए भारत में अपने केंद्र बना रही हैं। इंटरनेट आॅफ थिंग्स, कृत्रिम बौद्धिकता (एआइ) )और डाटा एनालिटिक्स जैसे क्षेत्रों में शोध और विकास को बढ़ावा देने के लिए लागत और प्रतिभा के अलावा नई प्रोद्यौगिकी के इजाद के लिए नए छोटे उद्यमियों को भी मौका दिया जा रहा है।

कंसलटेंसी फर्म केपीएमजी ग्लोबल टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री इनोवेशन सर्वे के मुताबिक कृत्रिम बौद्धिकता (एआइ), मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन, इंटरनेट आॅफ थिंग्स जैसे क्षेत्रों में नई खोजों और अनुसंधान के मामले में भारत दुनिया में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है। वस्तुत: एआइ के क्षेत्र में भारत में नई क्रांति की इबारत लिखी जा रही है।

सरकार देश को एआइ का वैश्विक केंद्र बनाने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही है। सर्वे में कहा गया है कि हम देश में सिर्फ ऐसी मशीनों, तकनीकियों, सेवाओं और उत्पादों का प्रयोग करने तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि हम उनका निर्माण और विकास दुनिया के लिए करेंगे। इसी परिप्रेक्ष्य में भारत में एआइ को नई शिक्षा प्रणाली के साथ इस तरह जोड़ा गया है कि इसमें बड़ी संख्या में कुशल पेशेवरों को तैयार किया जा सके।

यह बात महत्वपूर्ण है कि कोविड-19 ने सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति के लिए शोध एवं तकनीकी विकास के महत्त्व से अवगत कराया है। पूर्णबंदी के कारण विभिन्न तकनीकी रुझानों में अप्रत्याशित तेजी देखने को मिली। दुनियाभर में उद्योग-कारोबार, शिक्षा, स्वास्थ्य, टेली मेडिसिन और मनोरंजन तक की दुनिया का तेजी से डिजिटलीकरण हो गया।

नए-नए कारोबारी मॉडल सामने आए। इनसे ऐसे कई लक्ष्य प्राप्त किए जा सकेंगे, जो आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए जरूरी हैं। नवाचार में आगे बढ़ने के लिए शोध और विकास (आरएंडडी) के विविध आयामों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। भारत में आरएंडडी पर खर्च की राशि जीडीपी के एक फीसदी से भी कम यानी करीब 0.7 फीसदी के लगभग है।

जबकि आरएंडडी पर खर्च की दृष्टि से इजरायल, दक्षिण कोरिया, अमेरिका, चीन और जापान जैसे देश भारत से बहुत आगे हैं। भारत में आरएंडडी पर जितना खर्च होता है उसमें उद्योग जगत का योगदान काफी कम है, जबकि अमेरिका, इजरायल, चीन सहित विभिन्न देशों में यह काफी अधिक है। इसलिए विकास में शोध एवं नवाचार की भूमिका को प्रभावी बनाने के लिए आरएंडडी पर कुल जीडीपी का दो फीसद खर्च सुनिश्चित करना जरूरी है।

इसके साथ ही इसमें निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी भी बढ़ानी होगी। मौजूदा समय में भारत में शोध और नवाचार के क्षेत्र में निजी क्षेत्र का योगदान सिर्फ सैंतीस फीसद ही है। हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि हमारे देश की प्रतिभाओं के साथ-साथ कोविड-19 के कारण घर लौटी भारतीय प्रतिभाओं की मदद एआई, शोध एवं नवाचार में ली जाए। भारतीय उद्योगों को वैश्विक स्तर पर ऊंचाई देने के लिए सीएसआइआर, डीआरडीओ और इसरो जैसे शीर्ष संस्थानों की भूमिका को महत्त्वपूर्ण बनाना होगा।

कोरोना के स्वदेशी टीकों को तैयार करने में शोध एवं नवाचार की जो प्रभावी भूमिका रही है, वैसे ही शोध व नवाचार की भूमिका स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग कारोबार सहित विभिन्न क्षेत्रों में भी दिखाई देनी चाहिए। तभी पूरी दुनिया में भारत की मेड इन इंडिया और ब्रांड इंडिया की पहचान बनेगी और देश आत्मिनिर्भता के लक्ष्यों को हासिल कर पाएगा। शोध व नवाचार से ही देश में विदेशी निवेश भी बढ़ेगा और भारतीय उद्योग-कारोबार सहित पूरी अर्थव्यवस्था लाभान्वित होगी।