जयंतीलाल भंडारी
खासकर एक ऐसे समय में जब डालर की तुलना में रुपया लुढ़कता दिखाई दे रहा है और देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आ रही है। ऐसे में हम रणनीतिक रूप से आगे बढ़ कर चीन से बढ़ते आयात और व्यापार घाटे के परिदृश्य को बहुत कुछ बदल सकते हैं।
चीन से आयात घटाने और व्यापार असंतुलन कम करने के लिए सरकार की तरफ से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, मगर अब तक कोई उल्लेखनीय परिणाम नहीं मिल पाया है। हाल ही में चीन के सीमा शुल्क विभाग की ओर से प्रकाशित भारत-चीन के द्विपक्षीय व्यापार संबंधी आंकड़ों के मुताबिक दोनों देशों के बीच पिछले नौ महीनों के दौरान द्विपक्षीय कारोबार 103.63 अरब डालर का हुआ है। इसमें चीन से भारत के लिए निर्यात 89.66 अरब डालर का हुआ, जिसमें इकतीस फीसद की बढ़ोतरी हुई है। वहीं, इस अवधि में भारत से चीन के लिए केवल 13.97 अरब डालर का निर्यात हुआ और इसमें 36.4 फीसद की गिरावट आई है। ऐसे में भारत का व्यापार घाटा बढ़ कर 75.69 अरब डालर हो गया।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष दोनों देशों के बीच पूरे वर्ष में 125 अरब डालर का द्विपक्षीय कारोबार हुआ था। उसमें चीन का भारत के लिए निर्यात 46.2 फीसद बढ़ कर 97.52 अरब डालर था, जबकि भारत से चीन के लिए निर्यात 34.2 फीसद बढ़ कर 28.14 अरब डालर था। इस अवधि में भारत का व्यापार घाटा 69.38 अरब डालर हुआ था। ऐसे में स्पष्ट है कि इस वर्ष चीन से व्यापार घाटा और व्यापार असंतुलन और बढ़ेगा।
उल्लेखनीय है कि चीन से भारत आने वाले सामान में विभिन्न उद्योगों के उत्पादन में काम आने वाले कच्चे माल, रसायन, दवाइयां, इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रानिक जैसे सामान की अधिकता है। चीन से भारत द्वारा किए जाने वाले कुल आयात का एक बड़ा हिस्सा पशु या वनस्पति वसा, अयस्क, लावा और राख, खनिज र्इंधन, अकार्बनिक रसायन, कार्बनिक रसायन, उर्वरक, रंगाई के अर्क, विविध रासायनिक उत्पाद, प्लास्टिक, कागज और पेपरबोर्ड, कपास, कपड़े, जूते, कांच और कांच के बने पदार्थ, लोहा और इस्पात, तांबा, परमाणु रिएक्टर, बायलर, मशीनरी और यांत्रिक उपकरण विद्युत मशीनरी और फर्नीचर से संबंधित है। इन वस्तुओं का चीन से आयात लगातार बढ़ा है।
इतना ही नहीं, चीन से त्योहारी उत्पादों का भी भारत में आयात बढ़ा है। पिछले दो-तीन महीनों में देश के त्योहारी बाजारों में चीन का प्रभुत्व दिखाई दिया। हालांकि पिछले दिनों दीपावली के समय देश के कोने-कोने में बाजार स्थानीय स्वदेशी उत्पादों से सजे दिखाई दे रहे थे, लेकिन फिर भी चीन के वर्चस्व को तोड़ने की चुनौती बनी रही। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार इस साल अगस्त 2022 में चीन से एलईडी लाइट और लैंप का 72 लाख डालर मूल्य का आयात किया गया, जबकि पिछले साल अगस्त 2021 में इनका आयात मूल्य करीब बयालीस लाख डालर था। इस वर्ष अगस्त 2022 में चीन से 19.7 लाख डालर मूल्य की उपहार सामग्री का आयात किया गया, जबकि पिछले वर्ष अगस्त 2021 में इक्यासी हजार डालर मूल्य की उपहार सामग्री मंगाई गई थी।
गौरतलब है कि रक्षा बंधन, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, नवदुर्गा, दशहरा और दीपावली पर इस्तेमाल होने वाली वस्तुएं मुख्य रूप से अप्रैल से अगस्त माह में आयात कर ली जाती हैं। ऐसे में इस वर्ष त्योहारी बाजार में पिछले वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले करीब 28 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। साथ ही अगस्त 2022 में चीन से होने वाले आयात में पैंतालीस फीसद वृद्धि हुई है। कारोबारियों के मुताबिक अधिक कीमत चुकाने में सक्षम मध्यवर्ग के लोग खरीदारी में स्थानीय स्वदेशी वस्तुओं को प्राथमिकता दे रहे थे, जबकि निम्न आयवर्ग के लोग सस्ती चीनी वस्तुओं को।
निस्संदेह चीन से बढ़ता व्यापार घाटा देश के लिए बड़ी आर्थिक चुनौती है। खासकर एक ऐसे समय में जब डालर की तुलना में रुपया लुढ़कता दिखाई दे रहा है और देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आ रही है। ऐसे में हम रणनीतिक रूप से आगे बढ़ कर चीन से बढ़ते आयात और व्यापार घाटे के परिदृश्य को बहुत कुछ बदल सकते हैं। देश में अब भी दवाई उद्योग, मोबाइल उद्योग, चिकित्सा उपकरण उद्योग, वाहन उद्योग तथा विद्युत जैसे कई उद्योग बहुत कुछ चीन से आयातित माल पर आधारित हैं।
हालांकि चीन के कच्चे माल का विकल्प तैयार करने के लिए पिछले दो वर्षों में सरकार ने ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव’ (पीएलआइ) स्कीम के तहत चौदह उद्योगों को करीब दो लाख करोड़ रुपए का प्रोत्साहन दिया है। देश के कई उत्पादक चीन के कच्चे माल का विकल्प बनाने में सफल भी हुए हैं। इस डगर पर तेजी से आगे बढ़ना जरूरी है।
उल्लेखनीय है कि अब विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) संबंधी नई अवधारणा और नई भंडारण नीति सितंबर 2022 के प्रावधानों के उपयुक्त क्रियान्वयन से सेज में उपलब्ध संसाधनों का पूरा उपयोग कर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों के लिए कम लागत पर गुणवत्तापूर्ण विनिर्माण किया जा सकेगा और चीन से आयात भी कम किए जा सकेंगे। दरअसल, अब सेज की नई अवधारणा के तहत अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय बाजार के लिए विनिर्माण करने वाले उत्पादकों को विशेष सुविधाएं दी जाएंगी। सेज में खाली जमीन और निर्माण क्षेत्र का इस्तेमाल घरेलू तथा निर्यात विनिर्माण के लिए हो सकेगा।
सेज में पूर्णकालिक पोर्टल के माध्यम से सीमा शुल्क भुगतान की सुविधा होगी तथा विनिर्माण शुरू करने के लिए जरूरी सभी प्रकार की मंजूरी भी वहीं दी जाएंगी। राज्यों को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा। भंडारण की सुविधा बढ़ने से उत्पादन लागत कम होगी और भारतीय वस्तुएं अंतरराष्ट्रीय बाजार में आसानी से मुकाबला कर सकेंगीं। रेल, सड़क, बंदरगाह जैसी सुविधाओं के बड़े संजाल से भारतीय लागत वैश्विक स्तर की हो जाएगी और भारत को निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी।
निश्चित रूप से स्थानीय बाजारों में चीनी उत्पादों को टक्कर देने के लिए हमें उद्योग-कारोबार क्षेत्र की कमजोरियों को दूर करना होगा।
‘मेक इन इंडिया’ अभियान को आगे बढ़ा कर ‘लोकल’ उत्पाद को ‘ग्लोबल’ बना सकते हैं। स्वदेशी उत्पादों को चीनी उत्पादों से प्रतिस्पर्धी बनाने वाले सूक्ष्म आर्थिक सुधारों को लागू करना होगा। इसमें शोध और नवाचार पर अधिक ध्यान देना होगा। चीनी उत्पादों की जगह यथासंभव स्थानीय स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को जीवन का मूलमंत्र बना होगा।
गौरतलब है कि वर्ष 2019-20 में चीन से तनाव के कारण जैसे-जैसे चीन की भारत के प्रति आक्रामकता और विस्तारवादी नीति सामने आई, वैसे-वैसे प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों के माध्यम से स्थानीय उत्पादों के उपयोग की लहर देश में बढ़ती दिखाई दी थी। देश भर में चीनी सामान का जोरदार बहिष्कार और सरकार द्वारा विभिन्न चीनी ऐपों पर प्रतिबंध, चीनी सामान के आयात पर नियंत्रण आदि से चीनी वस्तुओं की त्योहारी बाजार में मांग कुछ कम हो गई थी।
ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि बाजार में चीन के बढ़ते वर्चस्व को तोड़ने के लिए पूरे देश में और अधिक उद्यमी और कारोबारी शोध और नवाचार, नए विचार और सृजनात्मक तरीके तथा कौशल प्रशिक्षण को अपनाते हुए चीन से आयातित वस्तुओं के स्थानीय विकल्प प्रस्तुत करेंगे। साथ ही सरकार की तरफ से लागू की गई ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव’ (पीएलआइ) के कारगर क्रियान्वयन से चीन से आयात का प्रभुत्व कम किया जा सकेगा।
उम्मीद की जा सकती है कि चीन से आयात घटाने तथा व्यापार असंतुलन कम करने के विभिन्न प्रयासों के सार्थक परिणाम आएंगे और देश में बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भी बचाई जा सकेगी। स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहन दिए जाने से देश में कुटीर और लघु उद्योगों को पुनर्जीवित करके बड़ी संख्या में रोजगार और स्वरोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकेंगे। साथ ही, स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहन मिलने के साथ देश आत्मनिर्भरता की डगर पर तेजी से आगे बढ़ सकेगा।