प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से चार दिनों के अंतराल में किसी शख्स की एक बार नहीं, बल्कि दो बार सराहना करना असामान्य था, लेकिन उन्होंने ऐसा किया। इस सराहना का केंद्र थे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। विषय था बीस-सूत्रीय ‘शांति योजना’, जिसे ट्रंप ने ‘इजराइल और हमास के बीच युद्ध समाप्त करने’ के लिए प्रस्तावित किया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 सितंबर, 2025 को इसे ‘गाजा संघर्ष को समाप्त करने की एक व्यापक योजना’ बताया। यह फिलिस्तीन और इजराइल के लोगों के साथ-साथ पश्चिम एशियाई क्षेत्र के लिए दीर्घकालिक एवं स्थायी शांति, सुरक्षा तथा विकास का एक व्यवहार्य मार्ग प्रदान करती है। प्रधानमंत्री ने हिंदी के अलावा सात भाषाओं- अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी, स्पेनिश और हिब्रू में बयान जारी करने का असाधारण कदम भी उठाया।
चार अक्तूबर को उन्होंने कहा, ‘गाजा में शांति प्रयासों में निर्णायक प्रगति के लिए हम राष्ट्रपति ट्रंप के नेतृत्व का स्वागत करते हैं।’ जब मैं यह लिख रहा हूं, हमास और इजराइल इस योजना के पहले चरण पर सहमत हो गए हैं। हमास बंधकों को रिहा करेगा और इजराइल युद्धविराम करेगा- यह स्पष्ट नहीं है कि कब, लेकिन जल्द ही होगा। गाजा और इजराइल दोनों जगह लोग जश्न के लिए सड़कों पर उतर आए। हमास ने अभी तक इस योजना के कई पहलुओं, खासकर किसी बाहरी सत्ता को नियंत्रण सौंपने के मामले से जुड़ी शर्तों को स्वीकार नहीं किया है।
अशुभ शुरुआत
स्वाभाविक रूप से यह सवाल उठ रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप की सराहना और उन्हें खुश करने की इतनी ज्यादा तत्परता क्यों दिखाई, जबकि ट्रंप ने 20 जनवरी, 2025 को पदभार ग्रहण करने के बाद से भारत को केवल चोट पहुंचाई है और उपेक्षा की है।
राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल (2017-2021) में ट्रंप ने स्टील पर (25 फीसद) और एल्युमीनियम पर (10 फीसद) शुल्क लगाकर भारत और अन्य देशों को निशाना बनाया तथा भारत को मिलने वाले जीएसपी लाभों को समाप्त कर दिया। वर्ष 2020 में उन्होंने भारतीयों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले विभिन्न श्रेणी के वीजा, खासकर एच-1बी वीजा को निलंबित कर दिया। फिर भी 22 सितंबर, 2019 को टेक्सास के ह्यूस्टन में एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की, ‘अबकी बार, ट्रंप सरकार’।
पीएम मोदी ने की ट्रंप से बात, गाजा शांति समझौते के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति को दी बधाई
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल के नौ महीनों में भारत (और ब्राजील) पर सबसे अधिक शुल्क लगाया है, जिस कारण भारत से अमेरिका में इस्पात, एल्यूमीनियम, कपड़ा, रत्न एवं आभूषण, समुद्री भोजन, दवाएं, जूते, फर्नीचर, कार और खिलौने का निर्यात बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
उन्होंने भारत पर रूस से तेल खरीदकर ‘यूक्रेन के खिलाफ युद्ध को वित्तपोषित करने’ का आरोप लगाया और भारतीय वस्तुओं पर अतिरिक्त पच्चीस फीसद शुल्क लगाया। उनके करीबी सहयोगी एवं सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने भारत से कहा- अगर रूस से तेल खरीदना जारी रखा गया, तो अमेरिका ‘आपको पूरी तरह से बर्बाद कर देगा और आपकी अर्थव्यवस्था को चौपट कर देगा’।
ट्रंप ने भारत को ‘टैरिफ किंग’ कहा और उनके व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने इससे भी बदतर कहा। भारत-रूस संबंधों की आलोचना करते हुए उन्होंने दोनों देशों को ‘बेजान अर्थव्यवस्थाएं’ करार दिया। उन्होंने एच-1बी वीजा के लिए आवेदनों पर 100,000 अमेरिकी डालर का भारी शुल्क भी लगा दिया तथा छात्र एवं जीवनसाथी वीजा जारी करने के नियमों को कड़ा कर दिया। इस वर्ष फरवरी से मई के बीच एक हजार से अधिक भारतीयों, कथित रूप से अवैध अप्रवासियों को हथकड़ी और पैरों में जंजीरें डालकर सैन्य विमान से भारत भेज दिया गया।
पाकिस्तान के पक्ष में ट्रंप
पहलगाम में आतंकी हमले और भारत की आपत्तियों के बावजूद, इस वर्ष मई-जून में पाकिस्तान को अरबों डालर की सहायता मिली, जिसमें आइएमएफ से एक बिलियन अमेरिकी डालर, एडीबी से 800 मिलियन डालर और विश्व बैंक से चालीस बिलियन डालर की मदद शामिल है। इसमें अमेरिका का भी महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा। भारत के इनकार के बावजूद, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध को समाप्त करने के लिए मध्यस्थता की थी। सबसे बड़ा अपमान तब हुआ, जब उन्होंने 18 जून को वाइट हाउस में पाकिस्तान के सेना प्रमुख की अभूतपूर्व तरीके से दोपहर भोज पर मेजबानी की।
25 सितंबर को ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख के साथ एक संयुक्त बैठक की, जहां इन ‘महान नेताओं’ (ट्रंप के शब्दों में) ने महत्त्वपूर्ण दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति की पेशकश की; पाकिस्तानी वस्तुओं पर उन्नीस फीसद शुल्क के साथ एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए; और अरब सागर में एक बंदरगाह बनाने एवं संचालित करने के लिए अमेरिका को आमंत्रित किया। ट्रंप 9/11 का आतंकी हमला, ओसामा बिन लादेन, एबटाबाद और पाकिस्तान को ‘आतंकवादियों की पनाहगाह’ बताना सब भूल गए।
ऐसा लगता है कि पाकिस्तान ने एक ही समय में दो घोड़ों (अमेरिका और चीन) पर सवार होने की कला सीख ली है। जनवरी 2025 के बाद से अमेरिका ने ऐसा एक भी काम नहीं किया है, जिसे भारत के लिए दोस्ताना कहा जा सके। भारत-अमेरिका संबंध एक ऐसी सीढ़ी पर हैं, जिस पर ‘नीचे’ की ओर जाने का संकेत लिखा है। और प्रधानमंत्री मोदी हताशा में नीचे की ओर जाने वाली सीढ़ियों पर ऊपर की ओर चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
एक सपने का खात्मा
बड़ा सवाल यह है कि भारत के प्रधानमंत्री ने इजराइल समर्थित ‘शांति योजना’ के अवसर का इस्तेमाल करते हुए ट्रंप की सराहना क्यों की, जबकि यह योजना फिलिस्तीनियों के लिए निराशा भरी है। इस योजना के बिंदु 19 में कहा गया है:
जब गाजा का पुनर्विकास आगे बढ़ेगा और फिलिस्तीनी प्राधिकरण का सुधार कार्यक्रम ईमानदारी से लागू किया जाएगा, तभी शायद फिलिस्तीन के लोगों के आत्म-निर्णय और राज्यत्व के लिए एक विश्वसनीय मार्ग की स्थितियां तैयार होंगी (इस बात पर मेरा जोर)।
मेरे विचार से युद्ध अंतत: रुक सकता है, बंधकों (या उनके पार्थिव शरीर) को जल्द ही रिहा किया जा सकता है, और मानवीय सहायता गाजा के असहाय निवासियों तक पहुंच सकती है, लेकिन गाजा एक ‘गैर-राजनीतिक समिति’ के अधीन होकर एक तरह से आभासी उपनिवेश बन जाएगा, जिसकी देखरेख डोनाल्ड ट्रंप और टोनी ब्लेयर जैसे नेताओं वाले ‘शांति बोर्ड’ द्वारा की जाएगी। फिलिस्तीनियों का अपना देश का दर्जा पाने का सपना लगभग मर चुका है।
जाहिर है, तमाम व्यर्थ की शेखी बघारने के बावजूद, प्रधानमंत्री को यह एहसास हो गया है कि दुनिया में भारत के कुछ ही दोस्त हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था इतनी सशक्त नहीं है कि अपने आसपास चल रहे तूफानों का सामना कर सके। चापलूसी, कुशल कूटनीति और ठोस व्यापार एवं निवेश नीतियों का विकल्प नहीं है।