लेखक की टिप्पणी: मैं यह स्तंभ 2014 से लिख रहा हूं। इससे पहले, मैंने 1999-2004 के दौरान यह स्तंभ लिखा था। हर हफ्ते इसे लिखना एक थका देने वाला काम है, लेकिन मैंने इसका पूरा आनंद लिया है। संपादकों से सलाह-मशविरा करने के बाद मैंने यह स्तंभ लिखना जारी रखने का फैसला किया है, लेकिन बीच-बीच में विराम के साथ। इसे पढ़ने के लिए आप सबका धन्यवाद, क्योंकि यही मेरे लिए सबसे बड़ा इनाम है।

डॉ. सी रंगराजन तिरानबे वर्ष की आयु में (ईश्वर उन्हें स्वस्थ रखे) एक खुली अर्थव्यवस्था और विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन के प्रबल पैरोकार हैं। वे कई वर्षों तक केंद्रीय बैंकर और भारतीय रिजर्व बैंक के उन्नीसवें गवर्नर (1992-97) रहे। 14 अक्तूबर, 2025 को उन्होंने डीके श्रीवास्तव के साथ मिलकर भारत की संभावित विकास दर के अनुमान पर एक लेख लिखा और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि विकास दर 6.5 फीसद प्रति वर्ष है। उन्होंने उदारतापूर्वक कहा कि विकास दर ‘मौजूदा वैश्विक परिवेश में यथोचित रूप से उच्च स्तर’ पर है, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘हालांकि रोजगार में उच्च वृद्धि के लिए हमें अपनी संभावित वृद्धि को और आगे बढ़ाने की जरूरत है।’

मेरा मानना है कि कई वर्षों में 6.5 फीसद प्रति वर्ष की औसत वृद्धि दर बेहद निराशाजनक है। यह दर भारत को ‘निम्न-मध्यम आय’ वाले देशों के समूह में रखती है, जिसे (प्रति व्यक्ति) सकल राष्ट्रीय आय 1,146 अमेरिकी डालर से लेकर 4,515 अमेरिकी डालर (2024-25 में) के बीच परिभाषित किया गया है। भारत की सकल राष्ट्रीय आय 2,650 अमेरिकी डालर (2024 में) है, जो इसे मिस्र, पाकिस्तान, फिलीपींस, वियतनाम और नाइजीरिया जैसे देशों के समूह में रखती है। भारत को निम्न-मध्यम आय वर्ग से बाहर निकालने के लिए प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय को दोगुना करना होगा। अगर भारत की मौजूदा विकास दर बनी रहती है, तो इस लक्ष्य को हासिल करने में नौ वर्ष लगेंगे तथा बेरोजगारी की हालत और ज्यादा खराब हो सकती है।

अनुमानों पर आम सहमति

भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआइ ने 2025-26 के लिए अपने विकास के अनुमान को 6.5 फीसद से बढ़ाकर 6.8 फीसद कर दिया है, लेकिन बेरोजगारी पर उसने बहुत संक्षिप्त राय जाहिर की है (आरबीआइ बुलेटिन, सितंबर 2025, अर्थव्यवस्था की स्थिति) : ‘अगस्त में रोजगार की स्थिति के विभिन्न संकेतकों ने मिश्रित तस्वीर पेश की। अखिल भारतीय बेरोजगारी दर घटकर 5.1 फीसद रह गई..।’ बेरोजगारी पर कम ध्यान इसलिए दिया जा रहा है कि आरबीआइ अधिनियम आरबीआइ को मौद्रिक और मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करने का अधिकार देता है और उसमें रोजगार का कोई उल्लेख नहीं है। वित्त मंत्रालय ने अपनी मासिक आर्थिक समीक्षा के अगस्त अंक में पूर्व अनुमानित वृद्धि दर को 6.3 से 6.8 फीसद के दायरे में ही रखा। इस समीक्षा में बेरोजगारी पर कुछ नहीं कहा गया।

विश्व बैंक ने 2025-26 में भारत की विकास दर 6.5 फीसद रहने का अनुमान लगाया था, लेकिन 2026-27 में इसे घटाकर 6.3 फीसद कर दिया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 2025 के लिए भारत की विकास दर का अनुमान बढ़ाकर 6.6 फीसद कर दिया है, जबकि 2026 के लिए इसके 6.2 फीसद तक गिरने का अनुमान लगाया है। वहीं आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने 2025-26 में भारत की विकास दर 6.7 फीसद और 2026-27 में 6.2 फीसद रहने का अनुमान लगाया है।

जीएफसीएफ, राह का रोड़ा

आम राय यह है कि भारत की विकास दर चालू वर्ष में 6.5 फीसद रहेगी और अगले वर्ष इसमें 20 आधार अंकों की कमी होगी। ये अनुमान मोटे तौर पर रंगराजन के निष्कर्ष की पुष्टि करते हैं। डा रंगराजन ने इस धीमी विकास दर के कारणों की पहचान की है: सकल स्थिर पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) दर, जो पिछले कुछ वर्षों से ठहरी हुई है और इस जीएफसीएफ दर के कारण विकास दर में ठहराव आया है। जीएफसीएफ 2007-08 में सकल घरेलू उत्पाद के 35.8 फीसद से गिरकर 2024-25 में सकल घरेलू उत्पाद के 30.1 फीसद पर आ गया है। पिछले दस वर्षों में यह कमोबेश अट्ठाईस से तीस फीसद के बीच स्थिर रहा है।

कुल जीएफसीएफ के हिस्से के तहत निजी स्थिर पूंजी निर्माण (पीएफसीएफ) 2007-08 में सकल घरेलू उत्पाद के 27.5 फीसद से गिरकर 2022-23 में 23.8 फीसद पर आ गया है (अंतिम उपलब्ध आधिकारिक आंकड़े)। डा रंगराजन ने वृद्धिशील पूंजी उत्पादन अनुपात (आइसीओआर) का भी जिक्र किया, लेकिन मैंने उसे छोड़ दिया, क्योंकि यह एक व्युत्पन्न संख्या है। जैसा कि डा रंगराजन ने निष्कर्ष निकाला, जब तक जीएफसीएफ/ पीएफसीएफ में सुधार नहीं होता या आइसीओआर में गिरावट नहीं आती, तब तक भारत 6.5 फीसद की विकास दर पर अटका रहेगा।

निजी पूंजी भारत में निवेश से क्यों कतरा रही है? इसका सबसे बड़ा कारण भारत सरकार और उद्योग जगत के बीच विश्वास की कमी है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने तरकश के हर तीर का इस्तेमाल किया है, लेकिन भारतीय निवेशकों पर उनकी मिन्नतों, चेतावनियों या धमकियों का कोई असर नहीं है। वे नकदी जमा करना, इंतजार करना, दिवालिया कंपनियों का अधिग्रहण करना या विदेश में निवेश करना ज्यादा पसंद कर रहे हैं।

मनमोहन सिंह जैसे साहस की जरूरत

एक विकासशील देश में गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचा बनाना और गुणवत्ता से लैस रोजगार पैदा करने की क्षमता सरकार की सफलता का पैमाना है। पिछले दशक में एक ओर बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण हुआ है (और उस पर भारी मात्रा में खर्च किया गया है), वहीं दूसरी ओर बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता भयावह रही है- पुराने डिजाइन और तकनीक, गिरते पुल, ढहती इमारतें और नए राजमार्ग, जो पहली मानसूनी बारिश में ही बह गए। जहां तक गुणवत्तापूर्ण नौकरियों का सवाल है, जितना कम कहा जाए, उतना बेहतर है।

‘शिक्षित बेरोजगारों’ के लिए कोई रोजगार नहीं है और इस समूह की बेरोजगारी दर 29.1 फीसद है। ‘युवा बेरोजगारी’ दर 45.4 फीसद है। स्कूली शिक्षा प्राप्त और पढ़ाई छोड़ चुके लोग या तो अनियमित नौकरियां करते हैं या पलायन कर जाते हैं। सितंबर में आधिकारिक बेरोजगारी दर 5.2 फीसद बताया जाना उसी तरह एक मजाक है, जैसे आधिकारिक खुदरा मुद्रास्फीति दर 1.54 फीसद बताई जाए।

6.5 फीसद की जीडीपी वृद्धि दर कोई जश्न का क्षण नहीं है। इसका मतलब है कि भारत निम्न-मध्यम आय वर्ग के भंवर में फंस गया है, जिससे बाहर निकलने के लिए न तो कोई तरकीब है और न ही कोई साहस। अब मनमोहन सिंह की तरह का साहस दिखाने का वक्त आ गया है।

अगला स्तंभ : 2 नवंबर, 2025