कूटनीति का एक प्रमुख दायित्व यह होता है कि वह अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उभरते हुए शक्ति-संतुलन का मूल्यांकन करे और ऐसी रणनीति अपनाए, जिससे किसी भी क्षेत्रीय या वैश्विक शक्ति-प्रतिस्पर्धा में राष्ट्र के हित प्रभावित न हों। भारत की विदेश नीति की असल चुनौती यही है कि उसे अमेरिका की एकपक्षीय व्यापारिक नीतियों से पैदा हुए अविश्वास और वैश्विक अस्थिरता का सामना करते हुए भी रणनीतिक तथा आर्थिक हितों के बीच संतुलन बनाए रखना है। बदलती वैश्विक परिस्थितियों में आर्थिक, रणनीतिक, कूटनीतिक और विचारधारा के स्तर पर देश के दीर्घकालीन हितों की दृष्टि से इस पर समग्रता की जरूरत महसूस की जा रही है।
देश की आर्थिक प्रगति निर्बाध चलती रहे, इसलिए निर्यात और ऊर्जा आपूर्ति की सुचारु व्यवस्था कायम रखनी होगी। अमेरिका-चीन के बीच प्रतिस्पर्धा के भू-राजनीतिक प्रभावों को समझते हुए रणनीतिक हितों को सुरक्षित रखना होगा। बहुपक्षीय मंचों का कूटनीतिक उपयोग करते हुए भी महाशक्तियों की मोर्चाबंदी की कोशिशों से अलग रहना होगा और भारत की समाजवादी लोकतांत्रिक गणराज्य की पहचान बनाए रखने के लिए साझेदारी का चुनाव भी समझदारी से करना होगा।
पुतिन और शी जिनपिंग के नेतृत्व से बढ़ेंगी जटिलताएं
शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में बहुपक्षवाद को मजबूत बनाने के संदेश के बीच दुनिया के शांतिपूर्ण, समावेशी और टिकाऊ भविष्य की संभावनाएं पुतिन और शी जिनपिंग के नेतृत्व में खोजना राजनीतिक जटिलताओं को बढ़ा सकता है। इससे दुनिया की व्यवस्थागत समस्याएं भी बढ़ सकती हैं और भारत इससे अछूता नहीं रह सकता।
दरअसल, भारत की भौगोलिक स्थिति, आर्थिक आकांक्षाएं और सुरक्षा चुनौतियां इतनी जटिल हैं कि वह केवल एक शक्ति पर निर्भर नहीं रह सकता। इसलिए उसकी भू-राजनीतिक जरूरतें उसे अमेरिका, रूस और चीन जैसी महाशक्तियों के साथ अलग-अलग स्तरों पर सहयोग और संतुलन साधने के लिए प्रेरित करती हैं। तीव्र आर्थिक विकास की भारत की महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं में अमेरिका की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है।
भारत न केवल अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना, बल्कि अमेरिकी निवेश और पूंजी प्रवाह ने भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था और सेवा क्षेत्र को अभूतपूर्व ऊर्जा प्रदान की है। लाखों भारतीय पेशेवर अमेरिका में कार्यरत हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों में भारतीयों का नेतृत्व इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। सिलिकान वैली और भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों के बीच घनिष्ठ संबंध पारस्परिक निर्भरता बढ़ाते हैं।
हाल के वर्षों में रक्षा तकनीकी साझेदारी ने भारत की सैन्य क्षमता को कई गुना बढ़ाया है, जिससे वह क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन में अधिक सक्षम बन सका है। रणनीतिक दृष्टि से भी अमेरिका भारत के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। चीन की विस्तारवादी नीति, हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी बढ़ती सक्रियता और पाकिस्तान को मिलने वाला उसका समर्थन भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती है। ऐसी स्थिति में अमेरिका के साथ भारत का सहयोग हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में नई दिल्ली और बेजिंग के बीच संबंध सुधरते दिखाई दिए। जलवायु परिवर्तन, वैश्विक व्यापार और बहुध्रुवीय विश्व-व्यवस्था जैसे मुद्दों पर सहयोग की गुंजाइश दोनों देशों के बीच बनी रहती है। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बावजूद ऐसे मंचों पर संवाद भारत को तनाव कम करने और टकराव को नियंत्रित करने का अवसर देता है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जिनपिंग की मुलाकात से यह उम्मीद बढ़ी है कि व्यापारिक असंतुलन, सीमा पर स्थिरता और ब्रिक्स जैसे मंचों में सहयोग पर बातचीत आगे बढ़ेगी। इससे यह संदेश जाता है कि प्रतिस्पर्धा के बावजूद भारत संवाद का रास्ता बंद नहीं करता।
प्रधानमंत्री मोदी ने शिखर सम्मेलन के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले दोनों पड़ोसी देश डोनाल्ड ट्रंप के मनमाने शुल्क के दबाव में अपने संबंधों को मजबूत करने की कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन दोनों देशों के बीच कई भू-राजनीतिक और रणनीतिक मुद्दे अब भी अनसुलझे हैं।
भारत के लिए चीन सीमा विवाद, पाकिस्तान गठजोड़, आर्थिक निर्भरता, समुद्री विस्तारवाद और वैश्विक मंचों पर विरोध बड़ी चुनौती है। भारत की विदेश नीति चीन को संतुलित करने के लिए कृतसंकल्प रही है और इस वास्तविकता को नजरअंदाज करने का जोखिम भी नहीं लिया जा सकता। इसलिए रूस, अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ भी सहयोग आवश्यक है।
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भारत हमेशा सामरिक स्वायत्तता की नीति पर चलता रहा है। यह नीति कहती है कि वह किसी एक शक्ति पर निर्भर न होकर दूसरी शक्तियों के साथ भी संतुलन बनाए। अमेरिका और चीन की प्रतिस्पर्धा के बीच रूस भारत के लिए एक संतुलनकारी ध्रुव है। भारत की रक्षा संरचना का बड़ा हिस्सा रूसी तकनीक और हथियारों पर आधारित है। लड़ाकू विमानों से लेकर टैंकों और पनडुब्बियों तक, भारत की सैन्य क्षमता की रीढ़ रूसी सहयोग से बनी है।
आज भी ब्रह्मोस मिसाइल, एस-400 रक्षा प्रणाली और टी-90 टैंक भारत की सामरिक शक्ति को परिभाषित करते हैं। पश्चिमी देश अक्सर संवेदनशील तकनीक साझा करने से हिचकते हैं, जबकि रूस ने लंबे समय से भारत को ऐसी रक्षा तकनीक उपलब्ध कराई है जो उसकी आत्मनिर्भरता बढ़ाती है। यही कारण है कि भारत के लिए रूस केवल एक आपूर्तिकर्ता नहीं, बल्कि रक्षा सहयोग का स्थायी साझेदार है।
यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पश्चिम से बहुत दूर हो गया है और चीन पर उसकी निर्भरता काफी हद तक बढ़ गई है। भारत के लिए यह स्थिति सामरिक रूप से अनुकूल नहीं है। रूस की चीन पर निर्भरता से पाकिस्तान और रूस के संबंध मजबूत हो रहे हैं। भारत की सबसे बड़ी सुरक्षा चुनौती चीन है और अगर रूस उस पर अधिक निर्भर होता है, तो भारत के लिए कूटनीतिक दबाव बढ़ता है। रूस भारत का पारंपरिक रक्षा आपूर्तिकर्ता है, लेकिन चीन के साथ रूस की तकनीकी साझेदारी भारत के लिए असहज स्थिति पैदा करती है।
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रूस को पूरी तरह चीन के पाले में जाने से रोकने के लिए भारत को ऊर्जा, रक्षा और निवेश में रूस से रिश्ते बनाए रखने होंगे। वहीं चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत को अमेरिका, जापान, फ्रांस और यूरोपीय देशों से सहयोग बढ़ाना होगा। रूस-चीन मित्रता कुछ मामलों में भारत को राहत दे सकती है। जैसे ट्रंप की नीतियों से निपटने के फिलहाल दबाव बनाया गया है, लेकिन दीर्घकाल में अगर रूस चीन पर अत्यधिक निर्भर हो जाता है, तो यह भारत की सामरिक स्वतंत्रता और सुरक्षा के लिए समस्या भी बन सकता है।
रूस और चीन की तुलना में भारत निश्चित रूप से एक उभरती हुई शक्ति है। यह एक युवा, बड़ी आबादी, तेज आर्थिक विकास, मजबूत लोकतंत्र और हिंद-प्रशांत में रणनीतिक स्थिति से लाभान्वित हो रहा है। जबकि सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के अभाव, चीन की तुलना में कम वैश्विक पहुंच और मध्यम स्तर की सैन्य-तकनीकी आत्मनिर्भरता भारत की प्रमुख समस्याएं हैं।
रूस और चीन के मजबूत रिश्ते भारत के लिए दोधारी तलवार की तरह हैं। एक ओर यह बहुध्रुवीयता और वैश्विक संतुलन को बढ़ावा देकर भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को सुदृढ़ करते हैं, तो दूसरी ओर यह चीन-पाकिस्तान धुरी को और मजबूत बना कर भारत की सुरक्षा और सामरिक स्वतंत्रता के लिए नई चुनौतियां पैदा करते हैं। भारत का हित इसी में हैं कि वह सभी से मित्रता रखे, पर निर्भरता किसी पर न बनाए।