जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा शासन…। लोकतंत्र की सबसे लोकप्रिय परिभाषा यही है। पिछले कुछ समय से केंद्रीय चुनाव आयोग पर विपक्ष सवाल उठा रहा है। आयोग संतोषजनक जवाब देने के बजाए विपक्ष पर जिस तरह हमालवर हो जाता है, वह खासा चिंताजनक है। विपक्ष शब्द जनता के संदर्भ में है, कि वह किसे, किस भूमिका में चुनती है। किसी संवैधानिक संस्था को यह अख्तियार नहीं है कि वह चुनावी प्रक्रिया में शामिल किसी राजनीतिक दल को विपक्ष की तरह देखे। संवैधानिक संस्थाओं के लिए पक्ष-विपक्ष बराबर होने चाहिए। विपक्ष ने आयोग पर ‘वोट चोरी’ का इल्जाम लगाया। ऐसे आरोप-प्रत्यारोप नई बात नहीं है। नया है, जिम्मेदार संस्था का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार। गंभीर आरोपों पर तब क्यों नहीं बोले, जैसे जवाब देना संवैधानिक संस्था की गरिमा के खिलाफ है। एक प्रवृत्ति बनती जा रही है कि आरोप लगाने वाले को ही दोषी बता कर कहा जाए कि अब खुद को दोषमुक्त साबित करो। बिहार में जब गली-गली चुनाव का शोर है, तो असल में किसका शोर है? सुनने की कोशिश करता बेबाक बोल।
अब जब बजरिए विपक्ष देश में ब्राजील की चर्चा हो रही है, फिर यह राजनीतिक स्तंभ इस ‘विदेशी तत्त्व’ से अछूता कैसे रह सकता है? वैसे भी सत्ता पक्ष के लिए विदेश के दो रूप हैं। जब उनका चेहरा विदेश जाए तो वसुधैव कुटुंबकम,और जब विदेश और विपक्ष की बात हो तो देश के दुश्मन। चुनाव आयोग मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के दौरान बिहार में घुसपैठियों की पहचान कर रहा था। पर, विपक्ष के ‘हरियाणा फाइल’ ने कहीं और घुसपैठिया ढूंढ़ लिया। विवेक अग्निहोत्री ने सोचा भी नहीं होगा कि ‘द कश्मीर फाइल्स’, ‘द बंगाल फाइल्स’ जैसी त्रयी परियोजना के समांतर‘हरियाणा फाइल’ इस तरह से आ जाएगी। वैसे भी अब राजनीति और सिनेमा में फर्क रह कहां गया है?
अभी तक तो घुसपैठिया शब्द सुनते ही बांग्लादेश का नाम दिमाग में आता था। वैसे, सत्ता पक्ष को शाब्दिक तुकबंदी बहुत पसंद है। ठेठ दिल्ली वालों की जुुबान में कहें तो-कोई न…ब से बांग्लादेश, ब से ब्राजील। अगला निशाना ब से बंगाल भी हो सकता है।
बिहार में चुनाव है। बिहार के तिहरे इंजन वाला सत्तारूढ़ दल पूरे आत्मविश्वास में है कि उसे कहीं कोई खतरा नहीं है। चुनाव प्रक्रिया की शुरुआत के साथ ही सत्ता पक्ष अपनी जीत की ‘व्यवस्था’ के बारे में वैसे ही एलान कर रहा, जैसे ‘हरियाणा फाइल’ के कथित किरदार अपनी पार्टी की जीत की आश्वस्ति में कहते हैं, ‘हमारे पास पूरी व्यवस्था है’।
कथित ‘व्यवस्था’ में सत्ता पक्ष को बड़ी बढ़त मिलती है, इसमें कोई दो राय नहीं है। सत्ता पक्ष जनता के आयकर से बना हुआ पूरा खजाना उस जनता के लिए खोल देता है, जिसके पास मुकम्मल आय नहीं है। बिहार की महिलाएं खुश हैं कि उनके खाते में दस हजार आ गए। वैसे, जनता के आयकर की कथित बर्बादी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की सस्ती पढ़ाई से शुरू होकर, वहीं खत्म हो जाती है। जेएनयू की कथित ‘लाल रेखा’ से निकलते ही वह तिहरे इंजन का निजी खजाना हो जाता है। ऐन चुनाव के बीचदो लाख और देने का वादा कर दिया जाता है। पैसों की तिहरे इंजन बांट सुशासन के दावे के साथ की जा रही है।
वहीं, जब पूरी व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त है तो बिहार के उपमुख्यमंत्री ने किसकी सरकार को खुलेआम धिक्कार भेजा है? ये किसकी सरकार का अधिकारी है जो अकर्मण्य व कमजोर है? सत्तारूढ़ दल के उपमुख्यमंत्री धिक्कार रहे हैं तो कौतुहल होता है, जानने का कि किसकी सरकार है? क्या ये ब्राजील की सरकार है?
इस चुनाव को दो बातों के लिए याद किया जाएगा। पहला, तुम्हारा जंगलराज, बनाम मेरा मंगलराज। अभी तो हम बाहुबली नेता के वीडियो से ही दिग्भ्रमित थे, जब वे पत्रकार को बोल रहे थे-अभी आपको मार देंगे तो सरकार क्या कर लेगी? उसके बाद हत्या के एक आरोपी के लिए केंद्रीय मंत्री का हर-हर अनंत, हर घर अनंत जैसा आह्वान होता है। कथित मंगलराज में जब तिहरे इंजन के प्रतिनिधि हर किसी को एक आपराधिक छवि के नेता बनने का आह्वान कर रहे थे, तभी उनकी कथित ‘तोहफे’ की दरियादिली सामने आ जाती है। फिर विपक्ष के लोगों को मतदान के लिए रोकने की कथित हुंकार। इतने मंगलमय कार्यों को देखते हुए शायद एलन मस्क हीन भावना के शिकार हो गए होंगे कि ‘मंगल ग्रह’ तो तिहरे इंजन वाले सुशासित बिहार में पहले ही बस चुका है।
दूसरी बात, बिहार के इन परिदृश्यों के लिए जिम्मेदार संस्था की। वैसे बिहार के ‘तेजस्वी’ बच्चे पूछ सकते हैं कि चुनाव करवाने के लिए जिम्मेदार चुनाव आयोग कितना जिम्मेदार है-बताओ इसमें कौन सा अलंकार है? वैसे, कुछ शरारती तत्त्व केंद्रीय चुनाव आयोग को संक्षिप्त रूप में ‘केंचुआ’ कहते हैं। लेकिन, हम इस गंभीर स्तंभ में ऐसा कुछ नहीं लिखेंगे। हमारी गंभीर कोशिश के बीच वोट चोरी के इल्जामों पर जवाब मिलता है-क्या हमारी मां-बहनों के वीडियो को इस तरह देना चाहिए? फिर उत्सुक तत्त्व पूछ बैठते हैं-क्या ब्राजील की मां-बहन की फोटो हरियाणा की मतदाता सूची में लगानी चाहिए?
भारत का केंद्रीय चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है। आयोग पर लंबे समय से लग रहे आरोपों के बादअब स्वायत्तता का अर्थ सत्ता से संबद्धता समझ आने लगा है। संबद्धता इस तरह कि, आरोप चुनाव आयोग पर लगते हैं, और जवाब देने के लिए सत्ताधारी दल के मंत्री आ जाते हैं। ब्राजील की माडल की फोटो लगने की जिम्मेदारी विपक्ष के नेता पर मढ़ देते हैं जो बार-बार विदेश चले जाते हैं। चुनाव आयोग पर सवाल के जवाब में मंत्री जी आपत्ति जताते हैं कि विपक्ष के नेता कोलंबिया क्यों गए थे?
चुनाव आयोग को लेकर गंभीर सवाल पर ऐसे जवाब के बाद तो कथित गोदी मीडिया वाले भी मचल कर थोड़ी देर के लिए गोदी से उतर कर अपने पांव पर खड़े होकर सवाल पूछने लगते हैं। थोड़ी देर के लिए ही सही, आपको अपनी सूनी गोद देख कर झटका लगता है, और आप विपक्ष के नेता पर हमलावर होते हैं। जबकि आपकी पार्टी का पितृ-पक्ष आपको सलाह दे चुका है कि उसे प्रतिपक्ष की तरह लीजिए, विपक्ष की तरह नहीं।
आजकल अभिभावकों की बात कौन सुनता है? सत्ता तो छोड़िए चुनाव आयोग ही अपने ऊपर सवाल उठाने वालों को अपना विपक्ष मानता हुआ दिख जाता है। भारतीय न्याय संहिता में धनशोधन के मामले में जो कानून है, उसके तहत एक बार आरोप लगने के बाद आरोपी को ही साबित करना पड़ता है कि वह निर्दोष है।
उसी तरह अगर चुनाव आयोग के कामकाज पर कोई सवाल उठता है तो वह कैलेंडर से लेकर घड़ी तक लेकर बैठ जाता है। क्या आपके पास बूथ स्तर के कार्यकर्ता नहीं थे? तब आपने शिकायत क्यों नहीं की? चुनाव आयोग के इस जवाब पर विपक्ष के नेताओं ने पूरे दस्तावेज पेश कर आयोग पर आरोप लगाया कि हमारी शिकायतों पर कार्रवाई नहीं हुई। आप आरोप पर एक पंक्ति लिख देते हैं-दम नहीं है।
अब सवाल है कि क्या सत्तारूढ़ पार्टी के उपमुख्यमंत्री की शिकायत में दम दिखेगा? क्या उन्हें भी कहा जाएगा कि शिकायत की है, तो हलफनामा दीजिए। आप तो तिहरे इंजन में केंद्र के प्रतिनिधि हैं। सूबे से मुख्यमंत्री की गैर मौजूदगी में उनके सारे अधिकार आपके हैं। और, अब तो उपमुख्यमंत्री पद की हैसियत इतनी बढ़ चुकी है कि चुनावों के पहले उसके उम्मीदवार चेहरे का एलान होता है।
पिछली बार लगे आरोपों के जवाब में चुनाव आयोग का मां-बहन का वीडियो से लेकर गृह संख्या-शून्य तक चर्चा में आ गया। आयोग के अगुआ ने विपक्ष के नेता के लिए कहा था-एक हफ्ते में हलफनामा देना होगा, अन्यथा पूरे देश से माफी मांगनी होगी। माफी के बजाय आरोपों का नया पुलिंदा आ गया।
विपक्ष बनाम आयोग की यह मुठभेड़ लोकतांत्रिक छवि के लिए खतरनाक है। हमारे देश में सबसे लोकप्रिय जुमला है-जनता सबक सिखाएगी। ऐसे आरोपों के बाद सबसे भयभीत देश की जनता है कि क्या उसके हाथों में सबक सिखाने की शक्ति बची रहेगी? जनता को यह शक्ति चुनाव आयोग से मिलती है। जब चुनाव आयोग ही शक्तिहीन दिखेगा तो जनता खुद को कैसे शक्तिशाली मानेगी?
