मानव जीवन का सबसे बड़ा रहस्य बाहर की परिस्थितियों में नहीं, बल्कि हमारे भीतर छिपा होता है। इस रहस्य का नाम है संयम। यह ऐसा गुण है जो साधारण व्यक्ति को भी असाधारण बना देता है। संयम केवल इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं, बल्कि मन, वाणी और कर्मों को सही दिशा देने की कला है। अगर विश्वास जीवन का आधार है, तो संयम उसकी दिशा है। मनुष्य के भीतर अपार ऊर्जा होती है। यही ऊर्जा कभी सृजन का साधन बनती है और कभी विनाश का कारण। जैसे नदी जब अपने किनारों में बहती है, तो जीवनदायिनी बनती है, लेकिन बाढ़ बनकर बहती है तो सब कुछ उजाड़ देती है।

यही स्थिति मनुष्य की प्रवृत्तियों की भी है। अगर वे संयमित हों, तो सुख, शांति और सफलता लाती हैं और असंयमित हों तो दुख और अशांति। संयम का अर्थ इच्छाओं को दबाना नहीं है। यह आत्मसंयम की वह प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने भीतर उठने वाले विचारों और भावनाओं को उचित दिशा देता है। मसलन, क्रोध हर इंसान को आता है। अगर वह अनियंत्रित हो तो संबंध बिगाड़ देता है, लेकिन संयमित होकर अन्याय के विरुद्ध खड़े होने की शक्ति बन जाता है। इसी तरह वाणी पर संयम रखने वाला व्यक्ति कटुता के बजाय संवाद और समाधान का मार्ग प्रशस्त करता है।

मनुष्य को आकर्षित करती हैं भोग-विलास की प्रवृत्तियां

आज की तेज-तर्रार दुनिया में संयम की आवश्यकता और बढ़ गई है। सोशल मीडिया के युग में लोग बिना सोचे-समझे प्रतिक्रिया दे बैठते हैं। इससे संबंधों में कड़वाहट और समाज में तनाव फैलता है। अगर व्यक्ति बोलने से पहले ठहर जाए और सोच ले कि उसके शब्द किसी को चोट तो नहीं देंगे तो अनेक विवाद जन्म ही नहीं लेंगे। यह संयम की छोटी-सी आदत बड़े परिणाम ला सकती है। संयम का दूसरा आयाम है इंद्रिय संयम। भोग-विलास की प्रवृत्तियां मनुष्य को आकर्षित करती हैं। खाने-पीने में अति, मनोरंजन में अति या धन की लालसा जीवन का संतुलन बिगाड़ देती है। जो व्यक्ति मितव्ययी होकर जीना सीख लेता है और संसाधनों का संतुलित उपयोग करता है, वह दीर्घकालिक सुख और स्वास्थ्य पाता है। प्राचीन भारतीय संस्कृति में इसी कारण संयम को तपस्या कहा गया है।

रिश्तों को संभालने के लिए केवल भावनाओं से नहीं समझदारी भी है आवश्यक

संयम का एक रूप समय प्रबंधन में भी झलकता है। असंयमी व्यक्ति समय को गंवा देता है और पछताता है, जबकि संयमी व्यक्ति समय का महत्त्व समझकर हर पल का सदुपयोग करता है। इसलिए संयम को सफलता का मूल मंत्र माना गया है। मानव संबंधों में भी संयम अनिवार्य है। परिवार, मित्रता या दांपत्य जीवन- ये सब धैर्य और संयम पर टिके होते हैं। अगर व्यक्ति अपने स्वार्थ और क्रोध को संयमित न करे, तो रिश्ते टूट जाते हैं, लेकिन जब वह अहंकार पर नियंत्रण करता है तो रिश्ते मधुर बने रहते हैं। यहां संयम त्याग और समझदारी का दूसरा नाम है। संयम का जादू यह है कि यह धीरे-धीरे स्वभाव का हिस्सा बन जाता है। शुरूआत में यह अभ्यास जैसा लगता है, जैसे बोलने से पहले सोचना, गुस्से में प्रतिक्रिया न देना, खाने में मितव्ययिता या समय का नियमित उपयोग करना, लेकिन धीरे-धीरे यह सहज आदत बन जाता है। तब व्यक्ति की वाणी मधुर हो जाती है, विचार सकारात्मक और कर्म सृजनशील। यही परिवर्तन उसे भीतर से सशक्त करता है।

धार्मिक और दार्शनिक दृष्टि से संयम आध्यात्मिक यात्रा का प्रथम चरण है

संयम व्यक्तिगत ही नहीं, सामाजिक जीवन में भी आवश्यक है। छोटी घटनाओं पर हिंसा और विवाद इसी असंयम का परिणाम है। जबकि संयमित समाज में सहयोग, सहिष्णुता और सामंजस्य बढ़ता है। इसलिए संयम को सामाजिक मूल्य भी माना गया है। धार्मिक और दार्शनिक दृष्टि से संयम आध्यात्मिक यात्रा का प्रथम चरण है। योगशास्त्र में इसे विशेष महत्त्व दिया गया है। योगसूत्रों में संयम का उल्लेख यम और नियम के अंतर्गत है। संयम साधक को भीतर की शांति और आत्मज्ञान की ओर ले जाता है। ऋषि-मुनियों ने इसे आत्मा की शक्ति कहा है। इसे संभाल न पाने और टूट जाने के परिणाम हर जगह दिखते हैं। आवेश में लिए निर्णय जीवन भर का पछतावा दे जाते हैं। असंयमित जीवनशैली स्वास्थ्य बिगाड़ देती है। अनियंत्रित वाणी रिश्ते तोड़ देती है। जबकि संयमी व्यक्ति कठिनाइयों को अवसर में बदल देता है और दूसरों के लिए प्रेरणा बनता है।

उपवास और विश्वास की शक्ति, इस अनमोल खजाने की सुरक्षा बहुत ही ध्यानपूर्वक जरूरी

यह भी सत्य है कि संयम का मार्ग आसान नहीं है। मन चंचल है, इंद्रियां आकर्षित करती हैं और परिस्थितियां उकसाती हैं, लेकिन यही चुनौती इसे मूल्यवान बनाती है। संयम धैर्य, अभ्यास और आत्म-जागरूकता से आता है। जब व्यक्ति यह समझ लेता है कि क्षणिक सुख के पीछे भागना आखिर दुख देगा, तब वह संयम अपनाता है। धीरे-धीरे यह उसकी स्थायी शक्ति बन जाता है। संयम का अर्थ जीवन को सीमाओं में बांधना नहीं, बल्कि उसे सशक्त और उद्देश्यपूर्ण बनाना है। जिस प्रकार वाद्ययंत्र की तारें ढीली हों तो उससे धुन नहीं निकलता और अत्यधिक कसी हों तो टूट जाती हैं, उसी प्रकार जीवन भी बिना संयम के या तो सुस्त हो जाता है या तनाव में टूट जाता है। यही वह संतुलन है जो मनुष्य को अपनी शक्ति से परिचित कराता है और उसे जीवन की सच्ची ऊंचाइयों तक ले जाता है। जो स्वयं पर विजय पा लेता है, वही संसार में सच्चा विजेता कहलाता है।

कहा जा सकता है कि संयम उपदेश का नहीं, अनुभव का विषय है। इसे शब्दों से नहीं, अभ्यास से समझा जा सकता है। संयमित जीवन जीना कठिन अवश्य है, पर असंभव नहीं। बोलने से पहले ठहरना, क्रोध पर काबू पाना और समय का सदुपयोग करना जैसी छोटी शुरूआत बड़े परिवर्तन लाती है। यही परिवर्तन जीवन को सशक्त, संतुलित और सार्थक बनाते हैं। संयम ही वह जादू है, जो साधारण मनुष्य को असाधारण बना देता है और स्वयं पर विजय दिलाता है, क्योंकि सबसे बड़ी जीत दूसरों पर नहीं, स्वयं पर होती है।