बिहार चुनाव से जुड़े ज्यादातर एग्जिट पोल में एनडीए की जीत का अनुमान जताया गया है। एग्जिट पोल का रिकॉर्ड फिफ्टी-फिफ्टी का रहा है इसलिए इसके आधार पर सरकार किसकी बनेगी यह अनुमान लगाना मुश्किल है मगर एक बात तय है कि सरकार किसी की बने भाजपा को बिहार चुनाव में हार ही मिलनी है। वह चाहे सीधे मिले या उल्टे।

अगर राजद-कांग्रेस-भाकपामाले का महागठबंधन चुनाव जीतता है तो भाजपा-जदयू को सीधी हार मिलेगी। यदि एग्जिट पोल के अनुसार जदयू-भाजपा नीत एनडीए को जीत मिलती है तब भाजपा की स्थिति जीतकर हारे हुए जुआड़ी जैसी होगी।

एग्जिट पोल अगर सही साबित हुए तो जदयू की सीटों में भाजपा और राजद के मुकाबले ज्यादा उछाल देखने को मिलेगी। ज्यादा सीटों का मतलब होगा ज्यादा मजबूत नीतीश कुमार।

इसका दूसरा मतलब ये भी होगा कि बिहार में अपना सीएम देखने के लिए भाजपा को अभी और इंतजार करना होगा। बिहार हिन्दी पट्टी का एकमात्र प्रदेश है जहाँ भाजपा आज तक अपना मुख्यमंत्री नहीं बना सकी है।

नीतीश ड्राइवर, भाजपा-राजद स्टेपनी

वर्ष 2005 से लेकर 2025 के बीच दो छोटे अंतरालों (जब जदयू-राजद की सरकार रही) को छोड़ दें तो भाजपा लगातार बिहार की सत्ता में रही है मगर उसकी हालत गाड़ी की स्टेपनी जैसी रही है।

इन दो दशकों में नीतीश कुमार बिहार का ड्राइवर रहे हैं और उनका जब मन किया उन्होंने स्टेपनी बदल ली। भाजपा से थोड़ी समस्या हुई तो राजद की स्टेपनी लगा ली और उससे दिक्कत हुई तो फिर से भाजपा का इस्तेमाल कर लिया।

भाजपा पार्टी ही नहीं बिहार में करीब दो दशक तक बिहार भाजपा का चेहरा रहे सुशील मोदी की भी छवि नीतीश कुमार के स्टेपनी की बन चुकी थी। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के समकालीन रहे सुशील मोदी जब राज्य के डिप्टी सीएम बने तो उनकी इस छवि पर आधिकारिक मुहर लग गयी।

जिस तरह भाजपा के अन्दर अटल-आडवाणी की जोड़ी थी कुछ वैसी ही बिहार के अन्दर नीतीश-सुशील की जोड़ी थी। कई राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जिस नेता के ऊपर डिप्टी का ठप्पा चिपक जाए उसे जनता भी डिप्टी से ऊपर प्रमोट होते नहीं देखना पसन्द करती।

भाजपा 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में नीतीश विहीन एनडीए के रूप में मैदान में थी। जदयू से अलग एनडीए को राज्य की 243 में से महज 53 सीटों पर जीत मिली। उस समय सुशील मोदी बिहार भाजपा के सबसे प्रमुख चेहरा माने जाते थे। कह सकते हैं कि उस बिहार चुनाव में भाजपा की हालत वैसी हुई है जैसी लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में लड़े गये 2009 के लोक सभा चुनाव में हुई थी।

2014 के लोक सभा चुनाव में भाजपा ने नरेंद्र मोदी के रूप में अपना नेता बदला और आम चुनाव में ऐतिहासिक विजय प्राप्त की मगर बिहार में उसकी किस्मत नहीं पलटी।

नरेंद्र मोदी को पीएम फेस बनाने से नाराज नीतीश कुमार ने 2015 के बिहार चुनाव में स्टेपनी बदल दी। नतीजा ये हुआ कि लालू यादव के दो बेटों तेज प्रताप और तेजस्वी ने नीतीश कुमार के दायें-बायें खड़े होकर मंत्री पद की शपथ ली।

तमाम उलट-पलट के बाद नीतीश कुमार भाजपा के साथ बिहार चुनाव में उतरे। जिस दौर में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा बाकी देश में सफलता के नए कीर्तिमान बना रही थी उसी दौर में वह बिहार में नीतीश कुमार के डिप्टी की भूमिका से आगे नहीं बढ़ पा रही थी।

बिहार में भाजपा की बेबसी का आलम ये रहा कि जब उसने जदयू के साथ बराबर-बराबर (101 सीटें) पर चुनाव लड़ने की घोषणा की तो मीडिया के एक धड़े ने इसे जदयू के अपमान की तरह पेश किया। इसे जदयू की बड़े भाई की भूमिका पर दाग की तरह देखा जबकि 2020 के चुनाव में भाजपा को 74 और जदयू को केवल 43 सीटों पर जीत मिली थी।

बिहार में भाजपा की दीर्घकालीन रणनीति

कुछ राजनीतिक जानकार दावा करते हैं कि भाजपा लम्बे दौर की रणनीति पर काम कर रही है। वह नीतीश कुमार के जनाधार को अपने अन्दर समेटने की योजना पर धीरे-धीरे अमल कर रही है।

स्थानीय भाजपा समर्थकों से बात कीजिए तो वह नीतीश कुमार को बिहार के सबसे बेहतर नेता मानते हैं मगर यह शिकायत भी करते हैं कि बिहार भाजपा के पास अपना कोई नेता नहीं है!

जाहिर है कि यहाँ नेता मतलब पार्टी पदाधिकारी और सरकारी मंत्री इत्यादि से नहीं है बल्कि ऐसा नेता जिसके पीछे एक ठोस जनाधार खड़ा हो। जिसे अंग्रेजी में मॉस लीडर कहते हैं।

बिहार भाजपा ने नीतीश कुमार के डिप्टी के तौर पर सुशील मोदी को हटाकर अब तक जिन चार नेताओं का आजमाया है उनमें से कोई भी जनता के बीच भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखा जाता हो, इसके लक्षण नहीं दिखते हैं।

भाजपा की मंच सज्जा को देख लगता है कि सम्राट चौधरी राज्य में पार्टी का चेहरा बनने की तरफ बढ़ाए जा रहे हैं मगर इसी चुनाव में प्रशांत किशोर ने उन पर जिस तरह के आरोप लगाये हैं उन्हें देखकर उनका मुख्यमंत्री फेस बनना मुश्किल लगता है। भाजपा के अन्दर भी उनकी स्वीकार्यता को लेकर सन्देह रहता है क्योंकि वह राजद के संस्थापक सदस्य रहे शकुनी चौधरी के बेटे हैं।

कुल मिलाकर आज भी बिहार भाजपा चेहरा विहीन है, यह बात किसी से छिपी नहीं है।

तेजस्वी को मिला लालू यादव का उत्तराधिकार

लालू यादव के समर्थक तेजस्वी यादव को उनका स्थानापन्न मान चुके हैं और यह हर सर्वे में साफ दिखता है। लालू यादव ने मुलायम सिंह यादव की तरह ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकार सफलतापूर्वक ट्रांसफर कर दिया है। जदयू में नीतीश का उत्तराधिकारी कौन होगा इसका जवाब अभी तक सामने नहीं आया है।

चुनाव दर चुनाव यह साफ हो चुका है कि राजनीतिक दलों के परंपरागत जनाधार के अलावा नेता का निजी आभामण्डल उसे सत्ता दिलाने में अहम भूमिका निभाता है। अगर एग्जिट पोल सही निकले तो यह बात फिर से साबित हो जाएगी।

अगर बिहार चुनाव का परिणाम एग्जिट पोल के अनुसार रहा तो राजद-कांग्रेस को शायद लगे कि उन्होंने नीतीश कुमार को प्रचार के केंद्र में लाकर शायद गलती की।

बिहार चुनाव में रिकॉर्ड मतदान के साथ ही महिला वोटरों का बढ़चढ़कर वोट देना अगर नीतीश के फेवर में गया है तो इसके लिए राजद भी जिम्मेदार है क्योंकि उसने ही भाजपा को मजबूर किया कि वह नीतीश को सीएम फेस घोषित करे।

तेजस्वी यादव और राजद के दूसरे नेता बार-बार इस बात पर जोर देते रहे कि चुनाव बाद भाजपा नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं बनने देगी। भाजपा के चुनावी चाणक्य अमित शाह का बयान इस बहस के केंद्र में आ गया कि मुख्यमंत्री का निर्णय चुनाव बाद विधायक दल करेगा।

महागठबंधन ने चुनाव प्रचार में इस नुक्ते पर इतना जोर दिया कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह ही नहीं 2020 के चुनाव में नीतीश कुमार के खिलाफ चुनाव लड़े चिराग पासवान तक अगला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बताने लगे। पहले चरण के मतदान तक जनता के बीच यह साफ हो गया कि उनके सामने मुख्यमंत्री के रूप में दो दावेदार हैं, तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार। इसके बाद बिहार चुनाव के दूसरे चरण में भी बंपर मतदान हुआ।

जनता ने दोनों सीएम उम्मीदवारों में से किसके चेहरे पर अपनी रजामंदी दी है यह 14 नवंबर को मतगणना के बाद साफ होगा मगर इतना तय है कि देश की सबसे ताकतवर पार्टी भाजपा बिहार में चुनाव जीत भी जाए तो अपना मुख्यमंत्री तत्काल नहीं देखने जा रही है।

बिहार भाजपा के पास आज भी ऐसा कोई नेता नहीं है जिसे वह नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी के रूप में जनता के सामने पेश करे और अवाम उसे स्वीकार कर ले। पर्ची वाला सीएम बनाने के लिए भाजपा को बिहार में अकेले दम पर बहुमत हासिल करना होगा। भाजपा के भाग्य में वह दिन कब आएगा, भगवान जानता है।

इसलिए कह सकते हैं कि एग्जिट पोल सही हो गये तो भी कुछ लोगों की नजर यह जीत भाजपा के लिए हार जैसी होगी क्योंकि बिहार में अपना सीएम देखना का उसका सपना भविष्य के लिए लिए टल जाएगा।

बकौल शाहरुख खान हारकर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं, मगर कोई बिहारी पूछ सकता है कि जीतकर हारने वाले को क्या कहते हैं? भाजपा!