पहलगाम हमले के बाद जब सरकार ने कहा कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते तो पूरे देश की जनता इस फैसले के साथ हो गई।देश की जनता ने तो सरकार का इतना साथ दिया कि ‘मैसूर पाक’ जैसी मिठाई से भी पाक का नामोनिशां मिटा दिया, जबकि उस ‘पाक’ का पाकिस्तान से कोई संबंध नहीं है। पहलगाम के शहीदों का बदला लेने के लिए देश की जनता हर कुर्बानी के लिए तैयार हुई। पाकिस्तान से सटे सीमाई इलाकों ने युद्ध जैसे हालात की विभीषिका भी झेली। सरकार हर मंच से कह रही थी कि आपरेशन सिंदूर अभी जारी है। देश की जनता भी मान रही थी कि पाकिस्तान की नापाक हरकतों का इतिहास देखते हुए इसे जारी रखना ही चाहिए। देश की जनता को अपनी आंखों और कानों पर विश्वास नहीं हुआ जब बीसीसीआइ ने दुबई में पाकिस्तान के साथ भारत के मैच को कबूल कर लिया। अचानक से आपने देशभक्ति को कह दिया कि वह कुछ देर चुपचापदर्शक दीर्घा में बैठ कर बीसीसीआइ की कमाई की गिनती करे। भारत-पाक मैच और दर्शक दीर्घा में बैठी देशभक्ति पर बेबाक बोल।
‘उन्हीं के फैज से बाजार-ए-अक्ल रोशन है
जो गाह गाह जुनूं इख्तियार करते रहे’
कुछ समय पहले अखबारों के पहले पन्ने पर एक भगदड़ स्थल की तस्वीर छपी थी। बंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर जो कुछ हुआ, उसी ने क्रिकेट के बाजार पर बड़ा सवाल उठा दिया था। जून 2025 में इंडियन प्रीमियर लीग में रायल चैलेंजर्स बंगलुरु ने 18 साल की कोशिश में पहली बार खिताब अपने नाम किया था।
जीत की खुशी में बंगलुरु में जश्न की योजना मनी। टीम के बंगलुरु लौटने के बाद चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर विजय परेड का आयोजन किया गया। पैंतीस हजार की क्षमता वाले स्टेडियम के बाहर लगभग तीन लाख लोग पहुंच गए। बाहर हालात बेकाबू हुए और भगदड़ मच गई। लोग कुचल कर मरते रहे और अंदर समारोह चलता रहा। हादसे में ग्यारह युवा मारे गए थे। उस वक्त इस हादसे का सारा ठीकरा भीड़ पर फोड़ा गया था। वह भीड़ दोषी थी जो क्रिकेट को धर्म और देशभक्ति के साथ जोड़ बैठी थी।जो क्रिकेट के खिलाड़ियों को अपना नायक मान रही थी।
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एक वो भी दिन था जब एक राज्य के नाम वाली टीम की दूसरे राज्य के नाम वाली टीम पर जीत के जश्न में भीड़ ने अपनी शहादत भी कबूल कर ली थी। एक गुजरा रविवार का भी दिन था जब क्रिकेट की सबसे रोमांचक जोड़ी भारत-पाक के खेल पर भी सन्नाटा सा पसरा था। आयोजकों ने विज्ञापन अधिकार बेच कर पहले ही करोड़ों की कमाई कर ली थी, लेकिन बाजार का इकबाल बिना भीड़ के बुलंद नहीं हो सकता है।
पाकिस्तान पर भारत की जीत की मंगलकामना के लिए न तो सामूहिक हवन-यज्ञ हुआ, न जीत पर क्रिकेट प्रशंसक तिरंगा पीठ पर लहरा कर दौड़ रहे थे। न ही मैच खत्म होने पर भारतीय क्रिकेट प्रेमियों नेआतिशबाजी की। देशभक्ति में ‘भक्ति’ के पहले देश आता है। आपने अपने हर फैसले की‘भक्ति’ को ही देशभक्ति साबित करने की नीति बना रखी है। आम जनता ने आपको चुना था तो आपके पाठ का थोड़ा रट्टा मार लिया।
पहलगाम में भारत के नागरिकों पर हमले के बाद देशभक्ति की परीक्षा में नागरिक पास भी हुए। सत्ता पक्ष की ओर से चाहे कितना भी ‘जात नहीं पूछी धर्म पूछ कर मार डाला’ का हंगामा मचाया गया, लेकिन कश्मीर से लेकर पूरे देश ने इसे धार्मिक उन्माद के नाम पर भारत को अस्थिर करने की पाकिस्तान की नापाक हरकत ही माना। पति का शोक सह रही हिमांशी नरवाल ने कहा कि मेरे पति की मौत का इस्तेमाल सांप्रदायिक नफरत फैलाने के लिए नहीं कीजिए तो सत्ता पक्ष से जुड़े समर्थकों ने उनकी तरफ नफरत की तोप ही चला दी।
पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद लोगों ने युद्ध जैसे हालात को मंजूर किया। सीमाई इलाकों में तबाही को झेला। खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते के आपके नारे को पूरा देश अपने कंठ से चीख-चीख कर निकालने लगा। दिलजीत दोसांझ राष्ट्रीय अपराधी जैसे घोषित हो गए थे जिन्होंने पहलगाम पर आतंकवादी हमले के पहले पाकिस्तानी कलाकार के साथ फिल्म की थी। पहलगाम हमले के बाद देशभक्ति की ऐसी बयार बही कि विपक्ष के सांसद आपकी कूटनीति के प्रतिनिधिमंडल के रूप में विदेशों में जाने के लिए तैयार हो गए।
तभी पाकिस्तान के खिलाफ खड़ी अवाम को आप थोड़ा आराम करने की सलाह दे देते हैं। देशभक्ति को कहते हैं जरा रुक जाओ, थोड़ा थम जाओ। जाकर दर्शक दीर्घा में बैठ जाओ। हमने पूरे देश को देशभक्ति का पाठ पढ़ा दिया है पर हमारे देश का क्रिकेट क्लब विशेषाधिकार लेकर बैठा है। उसे खून, पानी नहीं धन का कारोबार चलता रहे से मतलब है।
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हां वही क्लब जहां परिवारवाद को लेकर उठे सारे प्रश्न आत्मसमर्पण कर देते हैं। अभी नेपाल में जेन जी ‘नेपो किड’ पर सवाल उठा रही थी। आम फहम हिंदी में वंशवाद को भाई-भतीजावाद कहते हैं। यानी यह पिता-पुत्र से आगे वंशावली विस्तार का मामला है। कांग्रेस से भाजपा में आए एक वंशवादी नेता के पुत्र के मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष बनने के बाद गर्व से बताया जा रहा था कि दादा, पिता के बाद अब वे यह पद पाकर कैसा महसूस कर रहे हैं।
बीसीसीआइ जैसी संस्था के पैसे की भूख कभी खत्म नहीं होती। इस संस्था के पूर्व अध्यक्ष अभी देश से तड़ीपार हैं। एक समय था जब वे धर्मशाला के क्रिकेट स्टेडियम के लिए वहां हवाई जहाज से पहुंचे। हवाई अड्डे से स्टेडियम तक उन्हें ले जाने के लिए दिल्ली से ‘मर्सडीज’ का पूरा कारवां भेजा गया। अध्यक्ष महोदय को दुबारा हवाई अड्डे तक भेज कर मर्सिडीज का कारवां दिल्ली लौट आया। इस संस्था ने हमेशा ही पैसे को सबसे ऊपर बताते हुए देशभक्ति को अपने साथ नत्थी करवा लिया है। लेकिन इस बार देश की खातिर नागरिकों ने पैसे की भक्ति करने से इनकार कर दिया।
मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: दिल पर पड़त निशान
बेबाक बोल के पिछले स्तंभ में हमने कहा था कि जब जनार्दन अपना पक्ष चुन लेते हैं तो जनता के समकक्ष हो जाते हैं। पाकिस्तान से जीत का खिताब तो मिल गया लेकिन बीसीसीआइ की धन-पिपाशा ने क्रिकेट खिलाड़ियों का खुदा सरीखा खिताब सुपुर्द-ए-खाक करवा दिया। सरकार समर्थकों ने शोर मचाया कि आपरेशन सिंदूर जारी है, भारतीय टीम ने पाकिस्तान की टीम से हाथ नहीं मिला कर एक और बदला लिया।
जनता जवाब में पूछ रही है कि जब ऐसे ही बदला लेना था तो सेना की शहादत क्यों दी? भारतीय टीम के कप्तान ने भले ही पाकिस्तान से हाथ नहीं मिलाया लेकिन अगर आज वे पूरी शृंखला का खिताब जीत कर भी लौटेंगे तो देश की जनता उन्हें भगवान मान कर उनसे हाथ मिलाने के लिए लालायित नहीं होगी। जनता पूछेगी कि क्या पाकिस्तान की विज्ञापन कंपनियों को इस मैच से कमाई नहीं हुई होगी?
इसका जवाब सब जानते हैं। जिस मैच के कारण पाकिस्तान में भी पैसे बने वहां के मैदान पर आपने पहलगाम के शहीदों को लाकर उनका अपमान ही किया। शहीदों के परिवारों से जाकर पूछिए कि क्या वे आपका अवसरवादी समर्पण चाहते हैं? उन सैनिकों के परिवारों से पूछिए जिनके अपने युद्ध जैसे हालात में शहीद हुए।
आप सिर्फ अपना बाजार बचाने के लिए खेलने गए थे। आपको इस जीत को अपनी क्रिकेट संस्था की धन-पिपाशा को ही समर्पित करना चाहिए था। अंतरराष्ट्रीय मामलों में कूटनीति कमरतोड़ राजनीतिक मेहनत मांगती है। फिर भी आपको लगता है कि बस अब खेल के मैदान में हाथ नहीं मिला कर आप मैदान मार लेंगे। इसके बाद भारतीय टीम एक अनावश्यक विवाद में भी आ चुकी है।
मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: लगी सवालों की झड़ी है
इस बार तो आपकी देशभक्ति आपके सिर ही है। सफाई से लेकर पढ़ाई तक में देशभक्ति का तड़का लगा कर आप सोच रहे हैं कि बीसीसीआइ के लिए देशभक्ति थोड़ी देर दर्शक दीर्घा में इंतजार कर लेगी। पाकिस्तान को भी मैच से कमाई करवा कर बस हाथ नहीं मिलाने को आपरेशन सिंदूर-द्वितीय सरीखा करार दिया जाएगा। लेकिन इस बार देशभक्ति को दीर्घा में बैठे देख कर लोग दर्शक से नागरिक बन गए हैं।
नागरिकों ने बीसीसीआइ को देश की सेना का पर्यायवाची मानने से इनकार कर दिया है। आप बाजार हैं, सालों भर जिस देश के साथ मन हो उस देश के साथ मैच खेलिए, पैसे कमाइए। अनुरोध है, अपने बाजार में देश के शहीदों को मत लाइए। बीसीसीसाइ को शायद पता होगा, देश की सेना का बड़ा हिस्सा अग्निवीरों का है जो बहुत कम समय की नौकरी और वेतन पर देश के लिए जान कुर्बान करने को तैयार है। कम से कम अपने धनवीरों को देश के अग्निवीरों के समक्ष खड़ा मत कीजिए।
देश के नागरिकों की देशभक्ति को अपनी दर्शक-दीर्घा में मत बिठाइए। कहीं कल को अंतरराष्ट्रीय दबाव में हाथ मिलाने से इनकार के बजाए गले ही न मिलना पड़ जाए। पैसों के सामने समर्पित आपका हाल देख कर बस यही कहा जा सकता है-चल देशभक्ति घर आपने, रैन भई चहुं देस।