मां का दूध शिशु के लिए अमृत होता है और यह उसके शारीरिक व मानसिक विकास के लिए बहुत जरूरी होता है। इसी बात को लोगों तक पहुंचाने के लिए विश्व स्तनपान सप्ताह (1 से 7 अगस्त) के मौके पर कई जगह जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए। इस मौके पर विशेषज्ञों ने कहा कि स्तनपान को बढ़ावा देने व इसको लेकर तमाम तरह की भ्रांतियों को दूर करने के लिए कई स्तर पर जागरूकता बढ़ाए जाने की दरकार है।

जच्चा-बच्चा के लिए स्तनपान की अहमियत पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और हार्ट केयर फाउंडेशन ने वेबकास्ट करवाया, जिसमें डॉक्टरों और आम लोगों को शिक्षित किया। इस मौके पर बताया गया कि भारत में हर साल 16.5 लाख बच्चों की मौत ऐसी बीमारी से होती है जो स्तनपान के जरिए आसानी से रोकी जा सकती है। लोप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ विशाखा मुंजाल ने कहा कि प्रीमैच्योर बेबी (समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चे) हर तरह से अलग होते हैं। स्वस्थ शिशुओं की तुलना में प्रीमैच्योर बच्चों को अधिक देखभाल की जरूरत होती है। मां को अपने बच्चे की देखभाल करने के तरीकों से जागरूक होने की जरूरत होती है।

उन्होंने कहा कि प्रीमैच्योर बेबी का सबसे महत्त्वपूर्ण आहार है मां का दूध। यह उन्हें पोषित करने और संक्रमण से लड़ने में मदद करता है। इन्फैंट फॉर्मूले (डिब्बा बंद दूध) की तुलना में मां के दूध को शिशु आसानी से पचा सकता है। मां के दूध में पोषक तत्व होते हैं, जो शिशु को विकसित होने और मजबूत बनाने में मदद करते हैं। डॉ मुंजाल ने शिशु को स्तनपान कराने के कुछ तरीके भी साझा किए। शिशु के जन्म के 24 घंटों के अंदर जितनी जल्दी संभव हो स्तनपान शुरू कर दिया जाना चाहिए। ब्रेस्ट से पहली बार निकलने वाले दूध में कोलोस्ट्रम होता है। यह पोषक तत्वों से भरपूर और गाढ़ा दूध होता है, जो शिशु के विकास में सहायक होता है। मां को अपने शिशु को दिन भर में छह से आठ बार स्तनपान कराना चाहिए। यह ऐसा तरल पदार्थ है, जिसमें उचित मात्रा और अनुपात में पौष्टिक तत्व होते हैं, जिससे बच्चे को संतुलित आहार मिलता है।

विश्व स्तनपान सप्ताह के मौके पर आइएमए के मानद महासचिव डॉ केके अग्रवाल ने कहा कि मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोगों की जिम्मेदारी है कि वे स्तनपान के बारे में जागरूकता फैलाएं और कामकाज के बेहतर कानून की पैरवी करें ताकि माएं बच्चों को दो साल तक अच्छी तरह से स्तनपान करवा सकें। उन्होंने कहा कि नई मांओं को मातृत्व अवकाश का लाभ जरूर दिया जाना चाहिए। मैक्स अस्पताल के डॉ नवीन प्रकाश गुप्ता ने कहा कि मां के स्तन से जो पहला दूध निकलता है उसे नष्ट नहीं करना चाहिए। इसमें रोगप्रतिरोधक तत्व होते हैं जो बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर नवजात की आंतों और श्वसन प्रणाली को मजबूत बनाते हैं। स्तनपान मां और बच्चे दोनों के ही लिए बेहद अहम है। इसे जन्म के पहले घंटे में ही शुरू कर दिया जाना चाहिए और अगले छह महीनों तक केवल स्तनपान ही कराना चाहिए। इसके बाद सहयोगी आहार के साथ-साथ दो साल तक स्तनपान जारी रखना चाहिए।

अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि जिन बच्चों को कृत्रिम तरीके से आहार दिया जाता है उनमें निमोनिया, गैस्ट्रो, कान में संक्रमण और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं होने की संभावना ज्यादा होती है। स्तनपान करने वाले बच्चे टीकाकरण को भी बेहतर तरीके से अपनाते हैं। स्तनपान करने वाले बच्चों के दिमाग का विकास तेजी से होता है। मां का दूध नवजात की आंतों को सुरक्षा प्रदान करता है जिसके बिना इसकी दीवारों में सूजन हो सकती है, न पचने वाले प्रोटीन तत्व लीक हो सकते हैं और एलर्जी हो सकती है।
स्तनपान न करने वाले बच्चों में बड़े होने पर मोटापा की संभावना भी ज्यादा होती है। स्तनपान से बच्चों में डाउन सिंड्रोम से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है। स्तनपान मां का तनाव कम करता है और लंबे समय तक स्तनपान कराने से मां में टाइप टू डायबिटीज, अंडेदानी या स्तन कैंसर होने का खतरा भी कम हो जाता है।