योगी आदित्यनाथ पर मंडराया संकट अब खत्म हो चुका है, आरएसएस ने उनका समर्थन कर उन्हें और ताकतवर बना दिया है। सीबीआई की निष्पक्षता पर सुप्रीम कोर्ट ने फिर सवाल उठाया है, उसे “पिंजरे में बंद तोते” जैसी छवि से निकलने की सलाह दी। हरियाणा में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से गठबंधन को लेकर नाराजगी जताई, लोकसभा चुनाव में सक्रियता की कमी बताई और विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ने का निर्णय किया। भाजपा ने गोपाल कांडा से गठबंधन न कर लोकलाज का ध्यान रखा, हालांकि अतीत में कांडा का समर्थन लिया था। भाजपा के नए अध्यक्ष की घोषणा आरएसएस की सहमति से होगी, लेकिन फिलहाल यह निर्णय टल गया है।

संकट खत्म

योगी आदित्यनाथ पर मंडरा रहे संकट के बादल कब के छंट चुके हैं। उनकी कुर्सी को हिलाने की कोशिश करने वाले उनके दोनों उपमुख्यमंत्री अब उनका महिमामंडन कर रहे हैं। जाहिर है कि इन दोनों उपमुख्यमंत्रियों ने जो कुछ भी उठापटक की थी, उसके पीछे बेशक आलाकमान की शह थी। आलाकमान से योगी की पटरी पिछले कई साल से नहीं बैठ पा रही। पर आरएसएस ने कवच बनकर न केवल योगी की कुर्सी बचा दी बल्कि उन्हें और ज्यादा ताकतवर बना दिया। केजरीवाल ने तो लोकसभा चुनाव से पहले ही कह दिया था कि भाजपा का बहुमत आया तो योगी को हटा दिया जाएगा। बहरहाल अब तो योगी दिल्ली और आलाकमान की कतई परवाह नहीं कर रहे। अपने चहेते आइपीएस प्रशांत कुमार को सूबे का पुलिस महानिदेशक बनाकर ही माने। हालांकि उत्तर प्रदेश में 12 आइपीएस अधिकारी उनसे वरिष्ठ हैं। अब तो सर्वाधिक वेतनमान भी प्रशांत कुमार को ही दे दिया है। कायदे से सूबे का नियमित डीजीपी गृहमंत्रालय और यूपीएससी की स्वीकृति से बन सकता है। पर गृहमंत्रालय के पत्रों का योगी जवाब ही नहीं दे रहे। मुकुल गोयल के बाद अब तक चार कार्यवाहक डीजीपी उन्होंने नियुक्त कर दिए। कानून-व्यवस्था चूंकि राज्य का विषय है सो केंद्र ज्यादा दखल दे नहीं सकता। हां, इतना जरूर है कि कार्यवाहक डीजीपी को कोई सेवा विस्तार नहीं मिल सकता।

तोते पर तंज

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) की स्वायत्तता पर सवाल उठते रहे हैं। तभी तो 2013 में कोयला घोटाले के मामले में तबके सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा को सुप्रीम कोर्ट ने जमकर फटकर लगाई थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ की तुलना पिंजरे में बंद तोते से की थी। यानी वह तोता जो मालिक के इशारे पर ही बोलता है। कोयला घोटाले की जांच की स्थिति रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करने से पहले मंत्री को दिखाने पर यह तोहमत झेली थी सिन्हा ने। पर 11 साल बाद भी कुछ नहीं बदला। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने फिर सीबीआइ को लताड़ते हुए कहा कि उसे पिंजरे में बंद तोते की धारणा को दूर करना चाहिए। केजरीवाल को जमानत देने वाली पीठ में शामिल न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां ने साफ कहा कि सीबीआइ को न सिर्फ निष्पक्ष होना चाहिए बल्कि दिखना भी चाहिए। सीबीआइ ने केजरीवाल के मामले की जांच निष्पक्षता से नहीं की।

दिल्ली का दर्द हरियाणा में

दिल्ली में लोकसभा चुनाव में हार का साया हरियाणा में हावी रहा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि लोकसभा चुनाव में साथ रहते हुए भी आम आदमी पार्टी के नेता कांग्रेस के नेताओं की तरह सक्रिय नजर नहीं आए। कांग्रेस के नेता व कार्यकर्ता लोकसभा चुनाव में छोटी- छोटी सभाओं तक में गए थे, लेकिन जब गठबंधन की सीट पर राहुल गांधी समेत अन्य नेताओं की सभाएं हुई थी, उस समय संबंधित सीटों पर कांग्रेस के कार्यकर्ता ही नजर आए थे। इसकी नाराजगी की वजह से शुरुआत से ही कोई नहीं चाहता था कि आगे भी गठबंधन जारी रहे। कांग्रेस नेताओं का दावा है कि इस चुनाव में पार्टी मजबूती से हरियाणा में सरकार बना रहीं है, इसलिए अकेले चलने में भलाई है।

लोक से लाज

बदनामी के डर से भाजपा ने आखिर गोपाल गोयल कांडा को गच्चा दे दिया। उनके साथ चुनावी गठबंधन नहीं किया। कांडा की अपनी हरियाणा लोकहित पार्टी है। भाजपा ने उनकी सीट सिरसा पर अपना उम्मीदवार उतार दिया तो कांडा ने भी अभय चौटाला की पार्टी इनेलोद से गठबंधन करने में देर नहीं लगाई। इनेलोद का बसपा से पहले ही गठबंधन है। कांडा को पाठक भूले नहीं होंगे। वही हैं कांडा जो भूपिंदर सिंह हुड्डा की सरकार में 2009 में मंत्री बन गए थे। सिरसा से निर्दलीय जीते थे पहली बार विधानसभा चुनाव। उनकी अपनी एमडीएलआर विमानसेवा की विमान परिचारिका गीतिका शर्मा ने 2012 में दिल्ली में खुदकुशी की थी। चिट्ठी लिखकर कांडा पर अपना यौन शोषण करने और मानसिक उत्पीड़न करने का आरोप भी लगाया था। दिल्ली पुलिस ने कांडा को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। मंत्रिपद से इस्तीफा तो देना ही पड़ा था, विमानसेवा भी बंद हो गई थी। एक साल बाद गीतिका की मां ने भी खुदकुशी कर ली थी। लेकिन कांडा पर फर्क नहीं पड़ा। जमानत पर छूटने के बाद उसने 2014 का चुनाव फिर लड़ा पर हार का सामना करना पड़ा। भाग्य ने साथ दिया और 2019 में वह अपनी पार्टी एचएलपी से सिरसा से ही चुनाव जीत गया। मनोहर लाल खट्टर ने पूरे साढ़े चार साल तक कांडा का समर्थन लेकर अपनी सरकार चलाई तब बदनामी का डर नहीं लगा। गठबंधन की बारी आई तब अचानक ख्याल आया लोकलाज का।

उत्तराधिकारी का इंतजार बढ़ा

उम्मीद लगाई जा रही थी कि आरएसएस की बैठक के बाद भाजपा के नए अध्यक्ष का फैसला हो जाएगा। पर केरल में तीन दिन चली इस बैठक को खत्म हुए तो एक हफ्ते से भी ज्यादा वक्त बीत चुका है। फिर भी जेपी नड्डा के उत्तराधिकारी के नाम का एलान नहीं हो पाया। इतना तो अब साफ हो ही चुका है कि नए अध्यक्ष का फैसला अब भाजपा का शिखर नेतृत्व अपने आप नहीं कर पाएगा। आरएसएस की सहमति लेनी होगी। नड्डा 2019 में अमित शाह के गृहमंत्री बनाए जाने के बाद पार्टी के अध्यक्ष बने थे। भाजपा अध्यक्ष का कार्यकाल यों तीन साल का होता है। पर जेपी नड्डा को तो पूरे पांच साल हो गए हैं पार्टी का नेतृत्व करते। चूंकि उन्हें दोबारा अध्यक्ष नहीं बनाया जाना था, इसीलिए केंद्र में मंत्रिपद दिया गया। लोकसभा चुनाव में भाजपा के बहुमत नहीं आने पर पार्टी अध्यक्ष को लेकर सवाल उठे थे। सांगठनिक स्तर पर भी एक कद्दावर अध्यक्ष की जरूरत पार्टी के लोग लंबे समय से महसूस कर रहे हैं। पर अब लगता है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का फैसला मुश्किल होगा।