Gujarat Congress: गुजरात विधानसभा उपचुनावों के कांग्रेस के शर्मनाक प्रदर्शन के बाद प्रदेश अध्यक्ष शक्ति सिंह गोहिल ने इस्तीफा दे दिया है। कांग्रेस को विसावदर और कडी विधानसभा उपचुनावों हार का सामना करना पड़ा था। शक्ति सिंह गोहिल के इस्तीफे के बाद से अभी तक किसी को गुजरात कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं चुना गया है। इस बीच पार्टी के कई पाटीदार नेताओं ने मांग की है कि उनके समुदाय के किसी नेता को जीपीसीसी का नया प्रमुख बनाया जाए।

कई पूर्व विधायकों और सांसदों सहित कांग्रेस के कम से कम 28 पाटीदार नेताओं ने 1 जुलाई को अहमदाबाद के एक फार्महाउस में मुलाकात की। जिसके बाद पूर्व सांसद विरजी थुम्मर ने अपनी मांग को लेकर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को पत्र लिखा।

सूत्रों ने बताया कि बैठक में निष्कर्ष निकाला गया कि चूंकि कांग्रेस ने गुजरात की राजनीति में पाटीदारों को लंबे समय से दरकिनार किया है, इसलिए जीपीसीसी के शीर्ष पर पाटीदार नेता की नियुक्ति से राज्य में पार्टी की संभावनाओं को बढ़ावा मिलेगा। सूत्रों ने बताया कि कुछ नेताओं ने दावा किया कि पाटीदारों का एक वर्ग सत्तारूढ़ भाजपा से बहुत खुश नहीं है, इसलिए अगर पार्टी किसी पाटीदार चेहरे को अपना नेतृत्व सौंपती है तो वे कांग्रेस में वापस आ सकते हैं।

गुजरात में नरेंद्र मोदी के बाद के दौर में हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दम पर कांग्रेस ने 2017 के विधानसभा चुनावों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया ।

सामान्य श्रेणी में आने वाले पाटीदारों को गुजरात में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली समुदाय माना जाता है, क्योंकि उनकी संख्या बल के साथ-साथ कृषि, व्यापार और शिक्षा सहित कई प्रमुख क्षेत्रों में उनका प्रभुत्व है। यह समुदाय राज्य में भाजपा के समर्थन आधार का मूल आधार है। हालांकि, 2015-17 में पाटीदारों के आंदोलन के दौरान उनका गठबंधन गंभीर तनाव में आ गया था, जिसमें मांग की गई थी कि समुदाय को ओबीसी श्रेणी में रखा जाए और सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण के लाभ बढ़ाए जाएं।

2017 के चुनावों में कांग्रेस ने 182 में से 77 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा की सीटें गिरकर सिर्फ़ 99 रह गईं। हालांकि, 2022 के चुनावों में भाजपा ने पाटीदार समुदाय का समर्थन फिर से हासिल कर लिया और कांग्रेस की 17 सीटों के मुकाबले 156 सीटें जीतकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दर्ज किया। वर्तमान में भाजपा के मुख्यमंत्री पाटीदार चेहरा भूपेंद्र पटेल हैं ।

गुजरात कांग्रेस का नेतृत्व ज़्यादातर ओबीसी नेताओं ने किया है, इसके आखिरी पाटीदार अध्यक्ष सिद्धार्थ पटेल थे, जो पूर्व सीएम स्वर्गीय चिमनभाई पटेल के बेटे हैं, जिन्होंने 2008-10 के दौरान इस पद को संभाला था। इस पद पर सबसे लंबे समय तक बने रहने वाले सबसे बड़े पाटीदार नेता इसके पहले अध्यक्ष सरदार वल्लभभाई पटेल थे, जो 1920 में इसकी स्थापना से लेकर 1946 तक जीपीसीसी के अध्यक्ष रहे।

आखिरी बार किसी पाटीदार नेता ने गुजरात में कांग्रेस में कोई महत्वपूर्ण पद 2018-2021 के दौरान संभाला था, जब परेश धनानी ने कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता के रूप में कार्य किया था।

कांग्रेस के पाटीदार नेताओं की 1 जुलाई को हुई बैठक तीन घंटे तक चली, जिसमें विरजी थुम्मर, पूर्व विधायक ललित वसोया, ललित कथागरा, गीताबेन पटेल और प्रताप दुधात, पूर्व महिला मोर्चा प्रमुख और विरजी थुम्मर की बेटी जेनी थुम्मर समेत कई लोग शामिल हुए। सिद्धार्थ पटेल, परेश धनानी और अशोक अधेवाड़ा जैसे वरिष्ठ पाटीदार नेताओं ने व्यक्तिगत और सामाजिक कारणों से बैठक में भाग नहीं लिया। सूत्रों ने बताया कि राज्य कांग्रेस के 34 पाटीदार नेताओं को निमंत्रण दिया गया था, जिनमें से 28 बैठक में शामिल हुए।

राहुल गांधी को लिखे अपने पत्र में अमरेली के पूर्व सांसद विरजी ने कहा, “हम गुजरात में कांग्रेस की वर्तमान स्थिति और आगामी चुनावों में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन और अधिक समावेशी पार्टी राजनीति के लिए जातिगत समीकरण और संतुलन की आवश्यकता पर चर्चा करने के लिए आपसे मिलने का समय मांग रहे हैं। कृपया हमारा प्रस्ताव स्वीकार करें और हमें जल्द ही बैठक के लिए बुलाएं।

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए विरजी ने कहा कि 1 जुलाई की बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि कांग्रेस पाटीदार समुदाय का समर्थन कैसे वापस पा सकती है, जो पहले पार्टी का एक मजबूत वोट बैंक था। हम इस नतीजे पर पहुंचे कि अगर कांग्रेस किसी पाटीदार नेता को जीपीसीसी प्रमुख नियुक्त करती है, तो समुदाय फिर से पार्टी से जुड़ सकता है। गुजरात में 11% से ज़्यादा पाटीदार मतदाता हैं। पाटीदार आर्थिक रूप से मज़बूत हैं और दूसरी जातियां भी उनका समर्थन करती हैं। समुदाय मौजूदा बीजेपी से बहुत नाखुश है। अगर उनके किसी नेता को जीपीसीसी अध्यक्ष बनाकर समुदाय को सम्मान दिया जाए, तो हमें यकीन है कि वे कांग्रेस में वापस आ जाएंगे।

विरजी ने यह भी कहा, ‘राहुल गांधी को पत्र लिखने से पहले, मैंने गुजरात के लिए एआईसीसी के पर्यवेक्षक मुकुल वासनिक को फोन किया और हमारे समुदाय के नेताओं की बैठक के निष्कर्ष को साझा किया। वासनिक ने कहा कि उन्होंने हमारी बैठक का प्रस्ताव गांधी को भेज दिया है।’

धोराजी के पूर्व विधायक ललित वसोया ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि जीपीसीसी अध्यक्ष का पद अभी खाली पड़ा है और लंबे समय से इसके लिए किसी पाटीदार को नहीं चुना गया है। तो क्यों न हम इस अवसर का लाभ उठाएं और राहुल गांधी के सामने अपनी बात रखें।

परेश धनानी ने कहा कि कांग्रेस को ऐसे नेता को जीपीसीसी प्रमुख नियुक्त करना चाहिए जो पार्टी की विचारधारा से जुड़ा हो। गुजरात में राजनीतिक नेता जातिवाद और सांप्रदायिकता में लिप्त हैं, लेकिन मतदाता उन पर विश्वास नहीं करते हैं। सिद्धार्थभाई पटेल और मेरे कार्यकाल को छोड़कर गुजरात में पाटीदारों को लंबे समय से जीपीसीसी अध्यक्ष और एलओपी (सीएलपी नेता) के पदों से बाहर रखा गया है।

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उन्होंने यह भी कहा कि 2017 के चुनावों में कांग्रेस ने 77 सीटें हासिल कीं, जिसका मुख्य कारण पाटीदार आरक्षण आंदोलन था, जो पूरे राज्य में फैल गया था। पाटीदार भाजपा से नाखुश थे, इसलिए उन्होंने कांग्रेस का समर्थन किया। पाटीदार वोट 106 सीटों पर प्रभावशाली हैं, जिनमें 33 सीटें ऐसी हैं जहां अलग-अलग पार्टियों के पाटीदार उम्मीदवार एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं। अगर किसी पाटीदार को जीपीसीसी प्रमुख बनाया जाता है, तो इससे राज्य के राजनीतिक समीकरण प्रभावित होंगे और कांग्रेस को फायदा होगा।

जेनी थुम्मर ने कहा कि 1 जुलाई की बैठक में कांग्रेस के लिए पाटीदार वोटों को फिर से हासिल करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। उन्होंने कहा कि पार्टी ने 41 डीसीसी प्रमुख नियुक्त किए, जिनमें से सात पाटीदार हैं। हमारी बैठक में उन्हें समर्थन देने और कांग्रेस संगठन को मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा की गई। एक महत्वपूर्ण बिंदु यह था कि पाटीदार जीपीसीसी प्रमुख पार्टी को कैसे मजबूत करेगा। गुजरात कांग्रेस में निराशा का माहौल है। यह निराशा विसावदर और कडी सीट पर आए चुनाव नतीजों से पैदा हुई है। पढ़ें…पूरी खबर।

(इंडियन एक्सप्रेस के लिए कमाल सैयद की रिपोर्ट)