बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने मोदी सरकार से सवाल पूछा है कि अफगानिस्तान सरकार में मंत्री बनने वालों को क्या अब आतंकी लिस्ट से बाहर करने को भारत मंज़ूरी देगा। उनका कहना है कि सरकार को इस पर नीति स्पष्ट करनी चाहिए। इससे पहले सुब्रमण्यम स्वामी ने अफगानिस्तान संकट पर लोगों को चेताया था। स्वामी ने आशंका जताते हुए कहा कि देश आने वाले समय में तीन मोर्चों पर तालिबान, पाकिस्तान और चीन का सामना करने के लिए तैयार रहे। वह भी अकेले।
अफगानिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मुल्ला हसन अखुंद, उनके दो उपप्रधानमंत्रियों समेत तालिबान की अंतरिम सरकार के कम से कम 14 सदस्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ब्लैक लिस्ट में हैं। इससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता बढ़ गई है। वैश्विक आतंकवादी घोषित सिराजुद्दीन हक्कानी को कार्यवाहक गृहमंत्री बनाया गया है। वहीं सिराजुद्दीन हक्कानी के चाचा खलील हक्कानी को शरणार्थी मामलों का कार्यवाहक मंत्री नामित किया गया है। सिराजुद्दीन के सिर पर पर एक करोड़ अमेरिकी डॉलर का इनाम घोषित है।
कार्यवाहक रक्षामंत्री मल्ला याकूब, कार्यवाहक विदेश मंत्री मुल्ला अमीर खान मुत्ताकी, उपविदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्टेनिकजई भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद 1988 प्रतिबंध समिति के तहत सूचीबद्ध है। इसे तालिबान प्रतिबंध समिति के नाम से भी जाना जाता है।
स्वामी के मुताबिक तालिबान की अंतरिम सरकार के कम से कम 14 सदस्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ब्लैक लिस्ट में हैं। अफगानिस्तान के 33 सदस्यीय मंत्रिमंडल में चार ऐसे नेता शामिल हैं जो ‘तालिबान फाइव’ में शामिल थे। उन्हें गुआंतानामो जेल में रखा गया था। उनमें मुल्ला मोहम्मद फाजिल (उप रक्षामंत्री), खैरूल्लाह खैरख्वा (सूचना एवं संस्कृति मंत्री), मुल्ला नूरुल्लाह नूरी (सीमा एवं जनजातीय विषयक मंत्री) और मुल्ला अब्दुल हक वासिक (खुफिया निदेशक) शामिल हैं। इस समूह के पांचवें सदस्य मोहम्मद नबी उमरी को हाल में पूर्वी खोस्त प्रांत का गवर्नर नियुक्त किया गया।
गौरतलब है कि‘तालिबान फाइव’ नेताओं को 2014 में ओबामा प्रशासन ने रिहा किया था। फाजिल और नूरी पर 1998 में शिया हजारा, ताजिक और उज्बेक समुदायों के नरसंहार का आदेश देने का आरोप है। मंगलवार को घोषित सारे मंत्री पहले से ही स्थापित तालिबान नेता हैं। उन्होंने 2001 से अमेरिकी नीत गठबंधन सेना के विरूद्ध लड़ाई लड़ी। अंतरिम मंत्रिमंडल में किसी महिला को भी जगह नहीं मिली है।
उधर, अफगानिस्तान में नई अंतरिम सरकार को “नई बोतल में पुरानी शराब” करार देते हुए, पूर्व भारतीय राजनयिकों ने बुधवार को कहा कि काबुल में गठित कैबिनेट ने तालिबान 2.0 को लेकर मिथकों को दूर कर दिया है। उनका कहना है कि अफगानिस्तान की नई सरकार पर पाकिस्तान की पुख्ता छाप है जो कि है भारत के लिए चिंता का विषय है। पूर्व विदेश मंत्री के नटवर सिंह, पूर्व राजनयिक मीरा शंकर, अनिल वाधवा और विष्णु प्रकाश ने कहा कि नई सरकार में चरमपंथी तत्व हैं। भारत को अपने वेट एंड वॉच के नजरिए पर रहना चाहिए।
