उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सभी दलों की तरफ से सक्रियता बढ़ा दी गयी है। लेकिन इन सब के बीच सीएम योगी आदित्यनाथ को महत्‍वाकांक्षी योजनाओं में से एक पूर्वांचल एक्सप्रेसवे से काफी उम्मीद है। पूर्वांचल एक्सपेसवे का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साल 2018 में किया था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि इसका कितना असर मतदाताओं पर पड़ेगा?

354 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेसवे अभी गाजीपुर से लखनऊ के बीच बन रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री ने इसका विस्तार बलिया तक करने के निर्देश दिए हैं। मौजूदा समय में यह देश का सबसे लंबा एक्सप्रेसवे होगा। पिछले तीन मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल पर अगर नजर डाला जाए तो मायावती जो कि 2012 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही थी ने नोएडा से आगरा तक यमुना एक्सप्रेसवे का निर्माण करवाया था। लखनऊ में अम्बेडकर मेमोरियल पार्क और नोएडा में दलित प्रेरणा स्थल का काम भी उनके कार्यकाल में हुआ था।

मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव ने 2017 में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे, लखनऊ मेट्रो, गोमती रिवर फ्रंट और लखनऊ में जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर जैसी परियोजनाओं का हवाला देते हुए ‘काम बोलता है’ का नारा दिया था। लेकिन उन दोनों ही मुख्यमंत्रियों की वापसी नहीं हो पायी थी।

अब उत्तर प्रदेश में 2022 के चुनावों से पहले, भाजपा के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी खुद की महत्वाकांक्षी परियोजना को पूरा करने और प्रदर्शित करने पर जोर दे रहे हैं। जिसमें सबसे ऊपर लखनऊ से गाजीपुर तक पूर्वांचल एक्सप्रेसवे है जिसे सरकार सितंबर से चालू करने की योजना बना रही है।

योगी सरकार इस साल के अंत तक कानपुर मेट्रो को भी चालू करने का लक्ष्य लेकर चल रही है। जेवर में नोएडा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी योगी अपनी उपलब्धि के रूप में लेकर चुनाव में जा सकते हैं। हालांकि अब तक के राजनीतिक आंकड़ों पर अगर गौर किया जाए तो चुनाव में इस तरह के योजनाओं का बहुत अधिक असर नहीं देखने को मिला है। उत्तर प्रदेश के राजनीतिक जानकारों का मानना रहा है कि राज्य में विकास से अधिक जातिगत समीकरणों का चुनाव पर असर रहा है। राज्य में पिछड़े वर्ग की आबादी 39 फीसदी बतायी जाती है। सवर्ण मतदाताओं का प्रतिशत 18 है। जबकि अनुसूचित जाति की आबादी 25 फीसदी है।