शरद पवार का महाराष्ट्र की राजनीति में क्या कद है, ये पूरा देश जानता है और मानता है। छह दशक का सियासी करियर, चार बार मुख्यमंत्री पद और 10 साल तक केंद्र में कृषि मंत्री रहे शरद पवार ने वो सब कुछ हासिल किया है, जो महाराष्ट्र का नेता सपने में सोच सकते हैं। सिर्फ पीएम पद को छोड़कर वो भारतीय की सियासत की तकरीबन हर ऊंचाई छू चुके हैं।

महाराष्ट्र की सियासत में विभिन्न दलों के नेता भी यह मानते हैं कि अपने विशाल राजनीतिक अनुभव, प्रशासनिक क्षमताओं और राजनीतिक नेटवर्किंग की वजह से कभी शरद पवार प्रधानमंत्री पद के योग्य थे। हालांकि महाराष्ट्र में उनकी ताकत ने दिल्ली को उन्हें ऊंचे पद पर बैठाने से रोक दिया। हाल ही में दिल्ली में महाराष्ट्र और राजस्थान के नेताओं से बातचीत में पीएम नरेंद्र मोदी ने उल्लेख किया कि कैसे कांग्रेस ने शरद पवार की आकांक्षाओं को खत्म कर दिया। कांग्रेस के परिवारवाद पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सियासत गांधी परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है।

बताया जा रहा है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा, “स्वार्थ साधने और वंशवाद की राजनीति को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कई बड़े नेताओं की आकांक्षाओं की हत्या कर दी। नतीजा ये हुआ कि प्रणब मुखर्जी और शरद पवार जैसे सक्षम नेता कभी पीएम नहीं बन सके।”

पीएम ने क्यों माना पवार में पीएम बनने की क्षमता?

पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा शरद पवार की पीएम बनने की क्षमता को स्पष्ट रूप से स्वीकार करना महाराष्ट्र बीजेपी के लिए आश्चर्य की बात थी। बीजेपी के एक नेता ने बताया कि पीएम मोदी ने पवार के बारे में जो भी कहा वह सही है। उनके बयान से यह भी पता चलता है कि कैसे कांग्रेस पार्टी की वंशवाद की राजनीति ने सक्षम नेताओं के सियासी करियर और महत्वकाक्षाओं को खत्म कर दिया।

बीजेपी नेता ने आगे कहा कि पवार को पीएम मेटिरियल कहकर पीएम मोदी बताना चाहते थे कि कैसे कांग्रेस द्वारा मराठा लीडर के साथ गलत किया गया। पीएम मोदी की इस टिप्पणी ने अजित पवार गुट को अपने पाले में लाने की बीजेपी की रणनीति को भी सही ठहरा दिया। हालांकि बीजेपी के नेता यह स्पष्ट नहीं कर सके कि अगर पीएम मोदी के मन में शरद पवार के प्रति इतनी श्रद्धा है तो बीजेपी ने एनसीपी को क्यों तोड़ दिया?

अजित गुट को लेकर क्यों नरम हैं पवार?

आज 83 साल की उम्र में भी शरद पवार राज्यसभा सदस्य हैं। अजित पवार करीब 36 विधायकों के गुट को लेकर बीजेपी सरकार में शामिल हो गए हैं। हालांकि अपने ज्यादातर विधायकों और सांसदों के प्रेशर के बाद भी शरद पवार कहते हैं कि वो बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे। उद्धव ठाकरे के विपरीत, शरद पवार को शायद लगता है कि अजीत पवार गुट के साथ उनके नरम रुख से 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद भविष्य में NCP को एकजुट रखने में मदद मिलेगी।

दूसरी तरफ बीजेपी भी अजित पवार की जमकर तारीफ कर रही है। पिछले हफ्ते ही अपनी पुणे यात्रा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि अजित दादा अब सही जगह पर आ गए हैं। उन्हें पहले ही यहां आ जाना चाहिए था।

क्या है बीजेपी की रणनीति?

भले ही उद्धव गुट NCP पर “दोहरे मानदंड” के लिए बीजेपी पर हमलावर हो लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह द्वारा शरद पवार परिवार की प्रशंसा के पीछे संभवतः NCP और उसके समर्थकों की गुडविल हासिल करना है। हो सकता है कि बीजेपी की बड़ी रणनीति के पीछे लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता को विफल करने का मकसद हो।

यूपी की 80 लोकसभा के बाद महाराष्ट्र में 48 लोकसभा सीटें हैं। यह राज्य भी सीटों की दृष्टि से बीजेपी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पीएम मोदी तीसरी बार पीएम बनें, इसके लिए केंद्रीय नेतृत्व ने महाराष्ट्र के नेताओं को सभी 48 सीटें जीतने का लक्ष्य भी दिया है। बीजेपी में एक पॉलिटिकल मैनेजर कहते हैं कि हम शरद पवार को नाराज नहीं कर सकते क्योंकि उनमें अभी भी सहानुभूति जगाने और माहौल बिगाड़ने की क्षमता है।

आखिरी समय में भी गेम बदल सकते हैं पवार!

राज्य में बीजेपी नेता अभी भी शरद पवार की 2019 की सतारा इलेक्शन रैली को याद रैली करते हैं जिसने जनता का मूड चेंज कर दिया है था। इस रैली में बारिश में भाषण देते शरद पवार की तस्वीरों ने न सिर्फ एनसीपी को सतारा लोकसभा जीतने में मदद की थी बल्कि 6 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी को प्रभावित किया था। निश्चित ही बीजेपी ऐसे में शरद पवार को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती है।