गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रहे हार्दिक पटेल का कहना है कि उनके साथ जो कुछ हुआ उसके बारे में रोजाना वो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को मैसेज करते थे। मेरी आदत है मैसेज बॉक्स को साफ करने की। अगर राहुल और प्रियंका के फोन में वो मैसेज हैं तो वो दिखाएं सच सामने आ जाएगा।
ध्यान रहे कि इस साल के आखिर में गुजरात विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। लेकिन 6 महीने पहले ही वहां उथल-पुथल शुरू हो गई है। पाटीदार आंदोलन से निकले नेता और गुजरात के युवा चेहरे हार्दिक पटेल ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। हार्दिक गुजरात कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर थे। इस्तीफे के बाद हार्दिक गांधी परिवार पर जमकर बरसे।
उनका कहना था कि मुझे लगा कि राहुल गांधी हमें समझेंगे, मदद करेंगे। मैंने राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी इसी वजह से ज्वाइन की थी। लेकिन उसके बाद लोकल लीडर्स ने उन्हें परेशान किया। मेरे इस्तीफा देने के 5-7 दिन पहले राहुल गांधी दाहोद में एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए थे। उनको 15-20 दिन पहले से ही सारी कहानी पता थी। मुझे उम्मीद थी कि राहुल 5 मिनट का वक्त निकालकर बात करेंगे। राहुल गांधी मेरे लिए 5 मिनट का समय भी नहीं निकाल सके। बात अगर कर ली होती तो आज ये नौबत ना आती।
हार्दिक का कहना था कि अगर किसी को पद दिए जाने के बाद जिम्मेदारी निभाने का मौका ही नहीं मिलेगा तो फिर वो क्या करेगा। मुझे पौने दो साल तक कार्यकारी अध्यक्ष बनाए रखा, लेकिन आज तक मेरी जिम्मेदारी तय नहीं की। मेरे जिम्मे कोई काम नहीं सौंपा गया। कार्यकारी अध्यक्ष की फोटो पोस्टर्स में तक नहीं लगाते। कोविड में जब मेरे पिता की मौत हुई तो कांग्रेस राज्य इकाई को नेता मेरे घर भी नहीं आए।
उनका कहना था कि चिंतन शिविर में जो घोषणाएं हुईं वो पहले भी हो चुकी हैं। लेकिन अपनी सुविधा के हिसाब से नेतृत्व नियमों को तोड़ता मरोड़ता रहता है। उनका कहना था कि कांग्रेस पार्टी पिछले 10 साल में कोई ऐसा बड़ा आंदोलन नहीं कर पाई, जिसमें कोई कांग्रेस का नेता 10 दिन जेल गया हो। कांग्रेस को इस बात की चिंता और चिंतन करने की जरूरत है।
पाटीदार नेता का कहना था कि कांग्रेस अपनी गलती नहीं सुधारेगी तो लोग उसे विपक्ष में भी देखना पसंद नहीं करेंगे। अमित शाह और नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं को गाली देने भर से काम नहीं चलेगा। उनका कहना था कि कांग्रेस से जब कोई नेता छोड़कर जा रहा है तो शीर्ष नेतृत्व उसे समझाना ही नहीं चाह रहा है। हाईकमान के आसपास कुछ लोग हैं, जो बताते रहते हैं कि उसके छोड़ने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।