West Bengal Assembly Elections: कभी पीएम मोदी स्कूटी के नाम पर ताना मारते हैं तो कभी मिथुन दा कोबरा बनकर धमकाते हैं। मगर पश्चिम बंगाल की राजनीतिक का मौजूदा सच तो ये है कि अपनी कमजोरियों और ममता बनर्जी की ताकत से बीजेपी के रणनीतिकार दिल ही दिल में घबरा रहे हैं। ऐसे में हम आपको बीजेपी बीजेपी के सामने मौजूद उन पांच बड़ी चुनौतियों से रूबरू करवा रहे हैं, जिनकी वजह से बीजेपी के विरोधी ताल ठोंककर कह रहे हैं बंगाल में खेला होबे।
व्हीलचेयर पर दीदीः व्हीलचेयर पर सवार होकर अपनी टूटी टांग पर बंगाल का लोकतंत्र बचाने का भारी भरकम बोझा डालकर जब ममता दीदी कोलकाता की सड़कों पर उतरीं तो बीजेपी के रणनीतिकारों के चेहरों पर चिंता की लकीरें साफ नज़र आने लगीं, चिंता कि कहीं मां-माटी और मानुष की दीवानी बंगाल की जनता अपनी ज़ख्मी बेटी को सहानुभूति का वोट ना दे दे और चुनावी बाज़ी पूरी तरह से एक तरफा ना हो जाए। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि बीजेपी का ये डर गलत भी नहीं है, क्योंकि ममता के एक्सीडेंट का मज़ाक बनाकर बंगाली मानुष की नाराजगी तो पार्टी के कुछ नेता पहले ही मोल ले चुके हैं।
बंगाली ‘भद्रपुरुष’ की कमीः बंगाली भद्रपुरुष यानि मुख्यमंत्री के लिए एक अदद अच्छे बंगाली चेहरे की तलाश। बीजेपी अगर सत्ता में आती है तो कौन बनेगा मुख्यमंत्री। ये वो सवाल है जिसे बीजेपी फिलहाल टालना चाहती है, मगर ये टालमटोल पार्टी को चुनावों में भारी भी पड़ सकती है, क्योंकि मुकुल रॉय, शुभेंदु अधिकारी, बाबुल सुप्रियो और दिलीप घोष सरीखे बहुत से नाम हैं, जो दिल ही दिल में सीएम बनने का सपना पाले हुए हैं, मगर इनमें से किसी के अंदर वो करिश्माई जनाधार नहीं है, जो ममता बनर्जी का मुकाबला कर सके। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर मोदी के चेहरे पर बीजेपी लोकसभा चुनावों में अपनी नैया पार लगा सकती है तो यही काम टीएमसी ममता के चेहरे पर क्यों नहीं कर सकती।
‘काडर’ की किचकिचः इस बात में कोई शक नहीं है कि पिछले दो-तीन सालों में बंगाल में बीजेपी का संगठन मजबूत हुआ है। 2017 में मुकुल रॉय के शामिल होने के बाद संघ और भाजपा के पुराने काडर के अलावा बड़ी तादाद में तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट दलों का काडर भी टूट कर बीजेपी में आया है। अब चुनाव के ऐन पहले अनेकता में एकता का यही फॉर्मूला पार्टी के गले की हड्डी भी बन सकता है, क्योंकि टिकट बंटवारे को लेकर नाराजगी खुलकर सामने आने लगी है। पार्टी में शामिल हुए दूसरे दलों के नेता अब पार्टी छोड़ने लगे हैं।
कैसे सधेगा ‘दक्षिण बंगाल’?: बंगाल विधानसभा की कुल 294 सीटों में से 167 दक्षिण बंगाल से आती हैं यानिकि कुल राज्य का कुल 56.8 फीसदी वोट शेयर और ये वो इलाका है, जहां बीजेपी की मौजूदगी नहीं के बराबर है। लोकसभा चुनावों में भी पार्टी को यहां कुछ खास कामयाबी नहीं मिली थी। ऐसे में यक्ष प्रश्न ये है कि दक्खिन का किला फतेह किये बिना आखिरी जीत कैसे हासिल कर पाएगी बीजेपी।
बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गईः पेट्रोल-डीज़ल समेत खाने पीने के दाम आसमान पर हैं। जनता महंगाई का रोना रो रही है। अगर कुछ कसर बाकी रह गई थी तो राकेश टिकैत ने बंगाल में पहुंचकर उसे भी पूरा कर दिया है, ऐसे में सवाल ये भी है कि बीजेपी इस नाराज़गी का सामना कैसे करेगी, क्योंकि राज्य चाहे कोई भी हो, महंगाई की मार तो हर जगह बराबर पड़ी है। ये वे पांच चुनौतियां हैं, जिनसे पार पा लेने के बाद बीजेपी को बंगाल में राज करने से कोई नहीं रोक सकता, मगर खुद बीजेपी आलाकमान को भी मालूम है कि ऐसा करना आसान हरगिज नहीं है।