Uttarkashi Rescue Operation: उत्तरकाशी सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने की प्रक्रिया अभी भी जारी है। आधिकारिक बयान के मुताबिक, अगर कोई बीच में व्यवधान पैदा नहीं हुआ तो 3-4 घंटे में मजदूरों को बाहर निकाल लिया जाएगा। इस पूरे ऑपरेशन के दौरान अमेरिकी ऑगर मशीन ने सुर्खियां बंटोरीं। अगर हम यह कहें कि इसके बिना रेस्क्यू ऑपरेशन बेहद लंबा और कठिन होता तो यह बिल्कुल भी गलत नहीं होगा।
ऑगर मशीन ने 46.8 मीटर तक किया ड्रिल
ऑगर मशीन ने उत्तरकाशी में दिन-रात ड्रिलिंग का काम किया। एक वक्त ऐसा भी आया कि ऑगर ड्रिलिंग मशीन में तकनीकी खराबी आ गई। जिसके बाद काम को रोकना पड़ा, लेकिन तब तक ऑगर मशीन सिल्कयारा सुरंग में 46.8 मीटर तक ड्रिल कर चुकी थी। इसके बाद मैन्यूअल तरीके से ड्रिलिंग की गई, लेकिन इस दौरान ऑगर मशीन द्वारा ही पाइप को पुश करने का काम किया गया।
ऑगर मशीन के पार्टस फंसने पर अटक गईं थी देश की सांसें-
जिस वक्त ऑगर मशीन के पार्ट्स पाइप में फंस गए थे, उस वक्त एक पल के लिए देश की सांसें अटक गई थीं। लोग सोचने लगे थे कि अब आगे का रास्ता कैसे तय किया जाएगा, लेकिन इस काम में जुटी तमाम एजेंसियों के कर्मचारियों और अधिकारियों ने हार नहीं मानी। ऑगर मशीन के ब्लेड को काटने के लिए हैदराबाद से प्लाज्मा कटर को एयरलिफ्ट करके लाया गया। जिसने बाद ऑगर मशीन के पार्ट्स को पाइप से काटकर निकाला गया।
कैसे काम करती है ऑगर मशीन?
सिल्कयारा टनल में अब जो ऑगर ड्रिलिंग मशीन काम कर रही है, वो अमेरिकी ऑगर मशीन है, जिसे वायुसेना के तीन परिवहन विमानों ने दिल्ली से एयरलिफ्ट करके देहरादून तक पहुंचाया गया था। वहां से सड़क के रास्ते ये पहुंचाई गई। ये मशीन 05 मीटर प्रति घंटे के हिसाब से टनल में जमा मलबे को ड्रिल कर सकती है। यानी 10 घंटे में 50 मीटर तक खुदाई कर लेगी। पहली ड्रिलिंग मशीन बहुत धीमी थी और तकनीकी समस्याएं पैदा हो रही थीं। इस ऑगर मशीन को इंजीनियरिंग होरीजोंटल ऑगर ड्रिलिंग मशीन कहा जाता है। ये मशीन केवल चट्टानों और मलबे में केवल गड्ढ़ा ही नहीं करती, बल्कि उसमें अंदर जाकर और जगह बनाती है और इसके घुमावदार ब्लेड मलबे को वहां से बाहर भी निकालते हैं। इसे बरमा भी कहते हैं।
सरकार ने रैट होल माइनर्स का लिया सहारा-
इसके बाद भारत सरकार ने इस काम में रैट होल माइनर्स को लगाया है। रैट होल माइनर्स ऐसी स्थिति में किसी भी और टीम के मुकाबले ज्यादा बेहतर तरीके से काम करते हैं। यही वजह है कि इनके आने के बाद मजदूरों के सुरक्षित और जल्दी निकलने की संभावना काफी बढ़ गई है। ऑगर ड्रिलिंग मशीन के टूटे हुए हिस्सों को मलबे से हटाने के बाद एक सीमित स्थान में हाथ से उपकरणों का इस्तेमाल करके ड्रिलिंग के अंतिम चरण को पूरा करने के लिए 12 ‘रैट-होल’ खनन विशेषज्ञों को बुलाया गया था। ‘रैट-होल’ खनन विशेषज्ञों ने 24 घंटे से भी कम समय में 10 मीटर की खुदाई करके अभूतपूर्व काम किया।
रैट होल माइनर्स माइनिंग की एक खास प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल पहले उत्तर-पूर्वी भारत जनजातीय लोग करते थे। भारत के मेघालय या दूसरे उत्तर-पूर्वी इलाक में छोटी खदानों से खनिजों को निकालने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था। इसके साथ ही इस तकनीक की मदद से कभी-कभी टनल में या सुरंग में फंसे लोगों को निकालने का भी इस्तेमाल किया जाता है।
कैसे की जाती है रैट होल माइनिंग?
रैट होल माइनिंग के लिए किसी बड़ी मशीन का इस्तेमाल नहीं होता, बल्कि इसके लिए रैट होल माइनर्स हाथ के औजारों का इस्तेमाल करते हैं। वो धीरे-धीरे एक पतली सुरंग खोदते हैं और उसका मलबा बाहर निकालते जाते हैं। ये बिल्कुल वैसा ही होता है जैसे चूहे अपना बिल बनाते हैं।
रैट होल माइनर्स कौन?
रैट होल माइनर्स भारत के उत्तर-पूर्वी इलाकों में रहने वाले वो जनजातिय लोग होत हैं, जो छोटी सुरंगों की मदद से खदान के अंदर से खनिजों को बाहर निकालते हैं। खासतौर से मेघालय, जोवाई और चेरापूंजी में इस समुदाय के लोग रहते हैं। ये पतले होते हैं, ताकि पतली सुरंगों में आराम से घुस सकें। आज इन्हीं की मदद से उत्तरकाशी के टनल में फंसे मजदूरों को निकालने का काम किया जा रहा है।
बता दें, चारधाम यात्रा मार्ग पर बन रही सुरंग का एक हिस्सा 12 नवंबर को ढह गया था जिससे 41 श्रमिक उसमें फंस गए थे। उन्हें बाहर निकालने की कोशिश लगातार जारी है। रेस्क्यू ऑपरेशन का आज 17वां दिन है। उम्मीद है कि टनल में फंसे हुए मजदूर आज बाहर निकाल लिए जाएंगे।