उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिले के बाढ़ग्रस्त धराली में आपदा पीड़ितों की तलाश के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का हवाई सर्वे कर स्थिति का जायजा लिया और इस बीच, प्रधानमंत्री मोदी ने फोन पर उनसे बातचीत कर स्थिति की जानकारी ली। उत्तराखंड सरकार द्वारा जारी प्रेस रिलीज के अनुसार, बाढ़ में चार लोगों की मौत हो गयी जबकि विभिन्न एजेंसियों द्वारा चलाए जा रहे बचाव अभियान में 150 से अधिक लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है।
इस सबके बीच बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर उत्तराखंड में बाढ़, बादल फटने और भूस्खलन की घटनाएं बढ़ती क्यों जा रही हैं। दरअसल, धराली जो मंगलवार को अचानक आई बाढ़ और लैंडस्लाइड का केंद्र था, भागीरथी ईको-सेंसिटिव जोन में स्थित है और विशेषज्ञों का मानना है कि नदी के आसपास मैदानों पर निर्माण जैसी अनियमित गतिविधियों ने इस आपदा को और भी गंभीर बना दिया।
क्या मानव निर्मित कारण हैं आपदा के लिए जिम्मेदार?
भागीरथी ईको-सेंसिटिव जोन गंगोत्री और उत्तरकाशी शहर के बीच 4,157 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है। यह क्षेत्र केंद्र सरकार की प्रमुख चार धाम बारहमासी राजमार्ग परियोजना के निर्माण के कारण सुर्खियों में रहा है, जिसे पारिस्थितिक खतरों के कारण कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, हालांकि बाद में इसे सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी थी। बीएसईजेड निगरानी समिति के दो सदस्यों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि समिति के सदस्य नियमित रूप से इरेगुलर डेवलेपमेंट के मुद्दों को उठाते रहते हैं।
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गंगा आह्वान नामक एक गैर-लाभकारी संस्था की भागीरथी ईएसजेड निगरानी समिति की सदस्य मल्लिका भनोट ने कहा, “यह एक प्राकृतिक घटना है जो मानव निर्मित कारणों से आपदा में बदल गई है। छोटी सहायक नदियों और नालों के किनारे अनियंत्रित निर्माण से निचले इलाकों में तबाही मचती है। अगर बीईएसजेड अधिसूचना को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए तो बाढ़ के मैदानों में निर्माण को नियंत्रित किया जा सकेगा और इन प्राकृतिक घटनाओं की स्थिति में आपदाओं को रोका जा सकेगा।”
धरासू-गंगोत्री खंड को चौड़ा करने पर आपत्ति
पिछले साल, भनोट और ईएसजेड निगरानी समिति के अन्य स्वतंत्र सदस्यों ने उत्तरकाशी के झाला गांव में एक हेलीपैड के निर्माण पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने उत्तरकाशी शहर के पास, गंगा के किनारे, मनेरी, जामक में बहुमंजिला होटलों, अवैध संरचनाओं पर भी आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा कि ये संरचनाएं ईएसजेड मानदंडों का उल्लंघन करती हैं और क्षेत्र की सुरक्षा से समझौता करती हैं। इस क्षेत्र से गुजरने वाली चार धाम परियोजना के खंड को लेकर भी कुछ समस्याएं रही हैं। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय और सीमा सड़क संगठन ने धरासू-गंगोत्री खंड को चौड़ा करने का कार्य शुरू किया है और धराली इसी मार्ग पर पड़ता है।
चार धाम परियोजना का गहन मूल्यांकन करने वाली सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “धरासू से गंगोत्री तक के मार्ग पर भटवारी ब्लॉक का मुख्यालय स्थित है। यहां ढलान समय के साथ खिसक रही है और वैज्ञानिकों ने इस पर स्टडी और रिसर्च पेपर पब्लिश किए हैं। हमने कहा था कि सड़क चौड़ीकरण की सिफ़ारिश नहीं की गई थी और अधिकारियों को इसे न छूने की सलाह दी थी।”
चोपड़ा ने कहा, हर्षिल का रास्ता संकरा है, इसे चौड़ा करने के बजाय, हमने सुझाव दिया कि चट्टान को आधी सुरंग के आकार का बनाया जाए। हमने चौड़ीकरण पर कई सख्त शर्तें लगाईं, हमने इसे बिल्कुल भी चौड़ा न करने की सलाह दी और अगर किया भी जाए तो सख्त शर्तों के साथ।”
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विशेषज्ञ बोले- उत्तरकाशी में अचानक आई बाढ़ का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के आंकड़े बताते हैं कि न तो उत्तरकाशी और न ही आसपास के जिलों में असामान्य रूप से अत्यधिक बारिश हुई बल्कि मंगलवार को सांकरी में सबसे अधिक 43 मिमी बारिश दर्ज की गई। मलबे और मिट्टी के धंसने के बारे में बताते हुए, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में भूस्खलन मामलों की वरिष्ठ सलाहकार, दीपाली जिंदल ने कहा, “वीडियो देखने से ऐसा लग रहा है कि यह एक मडस्लाइड है, एक प्रकार की लैंडस्लाइड जिसमें मिट्टी और मलबा तेज़ी से बहता है। इसका कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है लेकिन यह आपदा स्थल के ऊपर, खीर गंगा नदी के जलग्रहण क्षेत्र में, बादल फटने जैसी घटना या शायद किसी बर्फ से जमी झील के फटने से आई बाढ़ के कारण हुआ हो सकता है। हालांकि, इसकी पुष्टि जांच के बाद ही हो पाएगी।”
वहीं, आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने कहा, “पिछले तीन दिनों से उत्तराखंड और कई अन्य राज्यों में भारी बारिश हो रही है। जब ऐसी कोई घटना होती है, तो इसका कारण लगातार हो रही बारिश भी हो सकती है।” पढ़ें- उत्तराखंड में पहले भी आ चुकी है तबाही, जानें कब-कब फटे बादल