यूपी में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज होने लगी है। पर अमेठी के कांग्रेसियों की गर्मजोशी अभी नहीं बढ़ी है। हालांकि, इस बार प्रियंका के सक्रिय होने से उनकी उम्मीदें बढ़ी हैं। लेकिन, स्थानीय स्तर पर नेतृत्व की कमी के चलते न केवल कार्यकर्ता, बल्कि नेता भी घर बैठे हैं।
रायबरेली सांसद सोनिया गांधी के प्रतिनिधि केएल शर्मा बयानों से उत्साह बढ़ाने की कोशिश जरूर करते हैं। उनका कहना है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अमेठी और रायबरेली की सभी दस सीटों पर कब्जा करेगी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर थी। लेकिन रायबरेली में कांग्रेस के दो विधायक चुने गए थे। अब तो कांग्रेस के अच्छे दिन आने वाले हैं। लेकिन, अमेठी ब्लॉक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष बृजेंद्र शुक्ल का दर्द कुछ अलग ही कहानी बयां करता है। उनका कहना है कि राहुल गांधी की हार के बाद से अमेठी में अब कोई बड़ा कांग्रेसी चेहरा या जिम्मेदार नेता नहीं है। अमेठी में गांधी परिवार के समर्थकों की आज भी कमी नहीं है। लेकिन कार्यकर्ताओं को संभालने वाले नहीं हैं। निराश कांग्रेसी घर बैठे हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, 2017 में अमेठी में कांग्रेस को बेहद कम वोट मिले थे। पार्टी उम्मीदवार अमीता सिंंह चौथे नंबर पर पहुंच गई थीं। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी की हार ने तो कांग्रेसियों की सारी उम्मीदें खत्म कर दीं। यहां देखें 2017 अमेठी विधानसभा चुनाव में विभिन्न उम्मीदवारों को मिले वोटों की संख्या:

उत्तर प्रदेश में हुए सभी विधानसभा चुनावों की बात करें तो 1951 से 2017 के दौरान कुल 17 चुनाव हुए। इनमें से आठ बार अमेठी में कांग्रेस (1980 में इंदिरा कांग्रेस के संजय सिंह सहित) के विधायक बने। लेकिन, इस दौरान विधायकों के नाम देखने से यह संकेत भी मिलता है कि लोगों ने पार्टी के बजाय चेहरे को प्रमुखता दी है। नीचे देखें, अमेठी के अब तक के सभी विधायकों की सूची:

अब बात करते हैं लोकसभा चुनावों की। 1967 से 2019 के बीच अमेठी में लोकसभा के 16 चुनाव हुए। इनमें केवल तीन बार ही ऐसा हुआ कि गैर कांग्रेसी नेता चुनाव जीता। 2019 में भी राहुल गांधी को चार लाख से ज्यादा लोगों ने वोट दिया था। स्मृति ईरानी ने उन्हें करीब 55 हजार वोटों से हराया था।
राजीव गांधी यहां से सबसे ज्यादा समय तक सांसद रहे। 30 साल पहले 21 मई 1991 को उनकी हत्या हो गई थी। तब भी राजीव गांधी अमेठी के सांसद थे। अब स्मृति ईरानी हैं। राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार कर वापस लौट चुके हैं। लेकिन राजीव गांधी को चाहने वालों की तादाद आज भी यहां काफी है। 1981 की विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी को पायलट की नौकरी छोड़वा कर राजनीति में लाया गया था। तभी वह अमेठी के सांसद चुने गए थे। इसके बाद 1991 तक अमेठी के सांसद थे।
इस बीच वे देश के प्रधानमंत्री बने तो अमेठी की तस्वीर बदलने की काफी कोशिश की। अमेठी के पुराने लोग याद करते हैं और बताते हैं कि राजीव गांधी के कार्यकाल में अमेठी को विकास से जोड़ने के लिए पांच सौ भी ज्यादा कल-कारखाने लगवाए गए थे। इसके बाद अमेठी में बुजुर्गों को शिक्षा से जोड़ने के लिए प्रौढ़ शिक्षा, महिलाओं को रोजगार के लिए हाथ का चरखा, छोटे बच्चों के लिए आंगनबाड़ी, युवाओं के लिए अनौपचारिक शिक्षा, निर्धन बच्चों के लिए नवोदय विद्यालय, पंचायती राज योजना, विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी, किसानों की बंजर भूमि को उपजाऊ जमीन बनाने के लिए ऊसर सुधार योजना जैसी कई योजनाएं भी शुरू कराई गई थीं।
1991 में राजीव गांधी की मौत के बाद से अमेठी में संचालित विकास की योजनाएं छू मंतर हो गईं। बाद में कैप्टन सतीश शर्मा, सोनिया गांधी, राहुल गांधी अमेठी के सांसद चुने गए, लेकिन योजनाएं लाने की रफ्तार नहीं लौटा पाए। कैप्टन सतीश शर्मा और राहुल गांधी दोनों को अमेठी में हार का सामना करना पड़ा।
इस बार प्रियंका गांधी सक्रिय हैं। उनकी वजह से स्थानीय नेताओं में भी उम्मीद जगी है। वे मानते हैं कि अमेठी और रायबरेली में कार्यकताओं की कमी नहीं है। उन्हें जगाने का समय आ गया है। स्थानीय कांग्रेस प्रवक्ता अनिल सिंह को यहां तक उम्मीद है कि कांग्रेस की वापसी के लिए सीनियर नेता भी चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। पिछले महीने प्रियंका जब रायबरेली गई थीं तो कुछ समय के लिए अमेठी के तिलोई में भी एक गांव गई थीं। कई नेता तो प्रियंका गांधी के भी चुनाव लड़ने की आस लगाए बैठे हैं। ऐसी आस से जीत की प्यास कहां तक बुझ पाएगी, यह तो अभी देखना बाकी है।