भारत और चीन में लद्दाख की गलवान घाटी में हुई खूनी झड़प के बीच पूर्व सैन्य अफसर लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेकेतकर ने बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने कहा है कि UPA सरकार ने चीन से समझौते में ‘मौजूदा’ शब्द जोड़ने नहीं दिया था। ऐसा इसलिए हुआ था, क्योंकि चीन की तरफ से इस शब्द पर आपत्ति जताई गई थी। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल ने इसके अलावा कांग्रेस काल के दो बाबुओं के नाम भी लिए।

गुरुवार को अंग्रेजी न्यूज चैनल ‘Times Now’ पर एक डिबेट के दौरान उन्होंने बताया, “मैं 1993 के पीस एंड ट्रैंक्वेरिटी एग्रीमेंट की ड्राफ्टिंग और अन्य मुद्दों से बहुत करीब से जुड़ा था। तब एक ज्वॉइंट वर्किंग ग्रुप था, जो इस पर काम कर रहा था। मैं उस समय सेना मुख्यालय का प्रतिधिनित्व कर रहा था और मैं मिलिट्री ऑपरेशंस में डिप्टी डायरेक्टर जनरल था। जो ड्राफ्ट आया था, उस पर हम ही लोग काम कर रहे थे। जब इस एग्रीमेंट पर साइन हुए थे, तब प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने सीमा मामलों से निपटने के लिए एक्सपर्ट ग्रुप की नियुक्ति की थी। मैं इस दौरान कश्मीर में आतंक संबंधी ऑपरशेंस हैंडल (मेजर जनरल) कर रहा था। मैं सीधे तौर पर तो हिस्सा तो नहीं लेता था, पर मुझसे सलाह ली जाती थी।”

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बकौल लेफ्टिनेंट जनरल शेकेतकर, “1993 और 1996 के एंग्रीमेंट के बीच लिंक है। आपको इनमें समानताएं भी मिलेंगी। उस वक्त आगे के विवादों को रोकना/काबू रखने पर ही सबका जोर था। एग्रीमेंट में हम लाइन ऑफ कंट्रोल के बजाय एक्जिस्टिंग लाइन ऑफ कंट्रोल (मौजूदा) चाहते थे। चीनियों ने इस पर आपत्ति जताई थी, पर हमने राजनयिकों से कहा था- ये अच्छी चीज है। अगर इस शब्द इस्तेमाल होगा, तब चीनियों के पास भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने का कोई स्कोप ही नहीं होगा। पर कुछ कारणों से ऐसा नहीं हुआ था।”

उन्होंने आगे बताया, “डिप्लोमैट अधिक योग्य होते हैं। उनके काम करने के अपने तरीके होते हैं। चर्चा के दौरान सेना प्रमुख ने कह दिया था कि मैं नहीं बदल सकता हूं। मुझे अंग्रेजी ‘सिखाई’ गई थी। डिक्शनरी का हवाला देते हुए बताया गया कि LAC और मौजूदा LAC में क्या अंतर होता है।”

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एंकर नविका कुमार ने इसी दौरान पूर्व जनरल से पूछा कि आपको उस दौरान किसने अंग्रेजी का पाठ पढ़ाया था? उन्होंने जवाब दिया- हम विदेश मंत्रालय के अफसरों के साथ चर्चा कर रहे थे। जयंत दीक्षित विदेश सचिव थे। शिवशंकर मेनन, जो ज्वॉइंट सेक्रेट्री थे। अशोक कांत भी थे लूप में, पर चीनियों ने मौजूदा शब्द के लिए न कर दी। अगर हम उस वक्त इस शब्द के लिए राजी हो गए होते, तब इतना सब होता ही नहीं।

बता दें कि भारत और चीन के बीच LAC (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) को लेकर मई की शुरुआत से विवाद चल रहा है। दोनों देशों के बीच तनातनी इतनी बढ़ गई कि 15-16 जून की दरमियानी रात दोनों मुल्कों के सैनिकों के बीच लद्दाख स्थित गलवान घाटी में एक टेंट हटाने को लेकर खूनी झड़प हुई। इस दौरान देश के 20 जवान शहीद हो गए, जबकि चीन के भी फौजियों को भी नुकसान हुआ है, पर वहां की सरकार ने उनकी मौत और जख्मी होने को लेकर कोई आंकड़े जारी नहीं किए हैं।