UP Politics: उत्तर प्रदेश की सियासत में अगले कुछ महीने अहम होने वाले हैं। लोकसभा चुनाव में नंबर एक बनने वाली समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साथ उसके पीडीए गठबंधन का उपचुनाव में टेस्ट होगा। वहीं लोकसभा में बड़ा झटका झेल चुकी बीजेपी के लिए भी यह उपचुनाव अहम है। इसके लिए सभी जमकर चुनाव प्रचार कर रही है। वहीं दिलचस्प बात यह है कि कल तक यूपी की सियासत हाशिए पर दिखने वाली कांग्रेस आज दस सीटों होने वाले उपचुनावों को लेकर पूरी ताकत झोंक रही है।

दरअसल, कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 10 रिक्त विधानसभा सीटों के लिए निर्धारित उपचुनावों में आश्चर्यजनक तेजी दिखा रही है। लोकसभा में कांग्रेस से साथ गठबंधन करने वाली सपा, कांग्रेस दो से ज़्यादा सीटें साझा करने को तैयार नहीं है। 10 सीटों में से पांच पर 2022 में सपा ने जीत दर्ज की थी और एक सीट उसके तत्कालीन सहयोगी रालोद ने जीती थी। कांग्रेस, जिसके पास पूरे यूपी विधानसभा में सिर्फ़ दो सीटें हैं, वह भी 10 सीटों पर जोर लगा रही है।

कांग्रेस ने जमीन पर एक्टिव किया संगठन

पार्टी ने स्थानीय जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए न केवल राज्य के नेताओं बल्कि राज्य के प्रभारी चार एआईसीसी सचिवों और पांच नवनिर्वाचित सांसदों को भी जमीनी स्तर पर लामबंदी के लिए शामिल किया है। इससे पहले, कांग्रेस ने 10 सीटों के लिए पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की थी।

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उपचुनाव के चुनाव कैंपेन में शामिल नेताओं में कांग्रेस उत्तर प्रदेश प्रमुख अजय राय, कांग्रेस विधायक दल की नेता आराधना मिश्रा, एआईसीसी सचिव धीरज गूजर, तौकीर आलम, नीलांशु चतुर्वेदी और सत्य नारायण पटेल, और सांसद उज्ज्वल रमण सिंह , इमरान मसूद, केएल शर्मा, राकेश राठौर और तनुज पुनिया शामिल हैं।

सपा के कदमोें पर चल रही कांग्रेस

कांग्रेस सपा के कदमों पर क्यों चल रही हैं, इसको लेकर वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि ये उपचुनाव पार्टी के लिए 2027 के विधानसभा चुनावों की गति निर्धारित करेंगे, और इसलिए हम चार सीटों से कम पर समझौता करने को तैयार नहीं हैं। लेकिन हम सभी 10 सीटों पर गंभीरता से तैयारी कर रहे हैं क्योंकि इससे हमें संभावित उम्मीदवारों की पहचान करने में मदद मिलेगी, जो हमारे सहयोगियों के पास निर्वाचन क्षेत्र जाने पर भी मदद कर सकते हैं।

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सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस की मुख्य मांग 2022 में BJP , निषाद पार्टी और RLD द्वारा जीती गई सीटों पर उपचुनाव लड़ने की है। कांग्रेस के नेताओं ने स्वीकार किया कि लोकसभा चुनाव में जमीनी स्तर पर लामबंदी के लिए कांग्रेस सपा पर निर्भर थी, लेकिन उनका कहना है कि नतीजों के बाद पार्टी में काफी उत्साह है और वह किसी भी स्थिति के लिए अपने नेटवर्क को फिर से खड़ा करना चाहती है।

दबाव की राजनीति कर रही कांग्रेस

पार्टी के एक नेता के अनुसार कि हम चार सीटों से कम पर सहमत नहीं होंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम अकेले ही चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस की गतिविधियों पर पैनी नज़र रखने वाले सपा नेताओं को लगता है कि यह सब “दबाव की रणनीति” है। उन्हें यह भी यकीन है कि गठबंधन किसी भी कीमत पर होगा। एक सपा नेता ने कहा है कि कितने पर वो आने वाला समय बताएगा। बीजेपी के साथ आने के बाद से सपा और कांग्रेस की स्थिति मजबूत बनी हुई है, लेकिन कांग्रेस हाल ही में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में सपा के लिए टिकट सुनिश्चित करने में विफल रही।