Delhi High Court Slams MCD: दिल्ली हाई कोर्ट ने कर्मचारियों को वेतन के भुगतान में देरी और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने में विफल रहने पर दिल्ली नगर निगम को फटकार लगाई। हाई कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर वेतन-भत्ते नहीं दिए गए तो नगर निकाय को भंग करने का निर्देश दे सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि जब आप कर्मचारियों का भुगतान नहीं कर सकते तो आपसे विकास कार्यों की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जज मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ ने एमसीडी के वकील से कहा, ‘एमसीडी का कहना है कि राज्य सरकार भुगतान करेगी…केंद्र भुगतान करेगा। ये आपके कर्मचारी हैं, न कि आतंकवादी समूहों के कब्जे वाले लोग हैं, जिनके लिए कोई फिरौती देने को तैयार नहीं है। उन्हें वेतन मिलना चाहिए, यह आपका वैधानिक दायित्व है।’
पीठ ने एमसीडी को फटकार लगाते हुए कहा कि यदि आप वेतन नहीं दे सकते, आप सातवें वेतन आयोग को लागू नहीं कर सकते, तो आपसे विकास कार्य करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? कौन सा ठेकेदार आपके लिए काम करेगा? वे वेतन नहीं दे सकते, वे क्या विकास करेंगे। कोर्ट ने इसके लिए निगम को जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। पीठ ने यह भी कहा कि निगम का व्यवहार निराशाजनक है।
कोर्ट ने आगे कहा कि आपको ऐसा लगता है मानो यह कोई दान-पुण्य है जो आप कर रहे हैं। ये वैधानिक बकाया है। हर महीने तो वो आ नहीं सकते। आपको समय पर भुगतान करना होगा। यह इस तरह लंबा नहीं खिंच सकता…खुद को आर्थिक रूप से सक्षम बनाएं। यदि आप नहीं कर सकते, तो आपके पास रुकने का कोई काम नहीं है। इससे कुछ बेहतर सिस्टम सामने आना चाहिए।
उधर, एमसीडी के वकील ने कहा कि निगम एकीकरण के बाद स्थितियों में सुधार हुआ है। जनवरी महीने तक का वेतन और पेंशन का भुगतान किया है। इस पर पीठ ने कहा कि वो इससे बेहतर प्रणाली का इस्तेमाल करें। एमसीडी अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन दे और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करें, नहीं तो अन्य विकल्प पर विचार किया जाएगा। विकल्प के तौर पर निगम को भंग भी किया जा सकता है। इससे पहले निगम अपना पक्ष रखे।
यह देखते हुए कि कर्मचारियों और पेंशनभोगियों द्वारा दायर मामलों का बैच सात सालों से लंबित है। कोर्ट ने कहा कि एमसीडी गरीब लोगों को निशाना बना रही है। आप 10 दिन के भीतर फरवरी महीने भुगतान करिए। कोर्ट ने कहा कि कानून ने केंद्र को एमसीडी को भंग करने का अधिकार दिया है। अब दिल्ली सरकार और एमसीडी एक ही पेज पर हैं। इसलिए निगम के वित्तीय मामलों को सिस्टमेटिक किया जाना चाहिए।