इस हफ्ते अफगानिस्तान में कई जगह तालिबान को पीछे धकेल रही अफगानी सेना ने मारे गए कई के पहचान पत्र बरामद किए, पता चला कि पाकिस्तानी सेना के अफसर लड़ रहे हैं। मुठभेड़ में पाकिस्तानी सेना के अफसर भी ढेर हुए हैं। इन लड़ाकों के पास से पाकिस्तानी सेना के पहचान पत्र मिले हैं। अफगानी फौजों ने अमेरिकी मदद से तालिबानियों के कब्जे वाले कई गांव खाली कराए हैं। ताजा घटनाक्रम से अब यह साफ हो गया है कि तालिबानियों की हिंसा में पाकिस्तानी लड़ाके भी बराबरी से शामिल हैं। ऐसे में अफगानिस्तान में भारत की चुनौती बढ़ने के संकेत हैं। अफगानिस्तान में भारत की 22 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत वाली परियोजनाएं चल रही हैं।
जो जानकारियां आ रही हैं, उनके मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय मदद और अमेरिकी वायुसेना के अभियानों की बदौलत अफगानी सैन्य बलों ने राजमार्गों के करीब के गांवों को तालिबानी कब्जे से छुड़ा लिया है। हेरात में भारतीय मदद से बने सलमा बांध पर हुए एक हमले को भी नाकाम किया है। दरअसल, अफगानिस्तान भारत की सुरक्षा की दृष्टि से हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है। अफगानिस्तान में अस्थिरता बढ़ने पर जिहादी और कट्टरपंथी समूह कश्मीर में सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में भारत की रणनीति रही है कि अफगानिस्तान की उस राजनीतिक सत्ता से नजदीकी रखी जाए, जो वहां के कट्टरपंथी समूहों को काबू में रख सके। इसके अलावा ईरान जैसे देशों के साथ व्यापारिक लिहाज से भी अफगानिस्तान भारत के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है।
अफगानी सेना का कहना है कि मारे गए लोगों में से एक की पहचान पाकिस्तानी सेना के अफसर जावेद के रूप में की गई है। जावेद के पास लोगार, पकीता और पकतिया में तालिबानियों के लड़ाकों की कमान थी। अफगानिस्तान के गजनी, तकहार, कंधार, हेलमैंड और बघलान समेत 20 प्रांतों में तालिबानियों को पीछे धकेला गया है और सभी जगहों से इसी तरह की सूचनाएं मिली हैं। अफगान सेना के मु ताबिक, मयमाना-अकीना, हैरातन-काबुल-तोरखाम, स्पिन बोल्डक-कंधार सिटी-लश्करगा और इस्लाम कला-हेरात हाईवे पर दोबारा कब्जा हो गया है। मजार-ए-शरीफ, जलालाबाद, कंधार सिटी, हेरात समेत कई शहरों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। सबसे ज्यादा 81 तालिबानी शिबरगान में मारे गए हैं।
अफगान में तालिबानियों को मिल रहा पाकिस्तान का समर्थन अब गोपनीय नहीं है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने कुछ दिनों पहले खुल कर कहा था कि तालिबान कोई सैन्य संगठन नहीं हैं, बल्कि वे आम नागरिक हैं। पाकिस्तान की सीमा पर 30 लाख ऐसे शरणार्थी हैं। इमरान ने कहा कि शरणाथी हैं, उनमें ज्यादातर पश्तून हैं।
एक अमेरिकी टीवी इंटरव्यू में इमरान से जब पूछा गया कि पाकिस्तान में तालिबानियों के सुरक्षित पनाहगाह हैं इस पर उन्होंने कहा- ये सुरक्षित पनाहगाह कहां हैं 11 सितंबर 2001 में न्यूयॉर्क में जो कुछ हुआ, उससे पाकिस्तान का कुछ लेना-देना नहीं था। इसके बावजूद अफगानिस्तान में अमेरिकी जंग में हजारों पाकिस्तानियों ने अपनी जान गंवाई। उनका कहना है कि अमेरिका और तालिबान की लड़ाई में 70 हजार से ज्यादा पाकिस्तानी नागरिकों की मौत चुकी है। अफगानिस्तान में चल रहे युद्ध से पाकिस्तान को 150 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। इमरान ने कहा कि अमेरिका ने तालिबान के साथ ठीक नहीं किया और सब गड़बड़ कर दिया।
अधर में परियोजनाएं
अफगानिस्तान में तालिबान की गतिविधियां और उसे पाकिस्तान का खुलकर समर्थन भारत के लिए चिंता का विषय हो गया है। पिछले 20 साल में भारत ने अफगानिस्तान में करीब 22 हजार करोड़ रुपए का निवेश किया है। 1996 से 2001 के बीच जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था, तब भारत ने अफगानिस्तान से संबंध तोड़ लिए थे। भारत कुछ परियोजनाएं हैं- अफगानिस्तान के हेरात में 42 मेगावाट की पनबिजली परियोजना सलमा बांध, अफगानिस्तान की संसद, 218 किलोमीटर लंबी कई राजमार्ग परियोजनाएं।