नए साल के इस पहले हफ्ते में ही साबित हो गया है कि राम मंदिर बड़ा मुद्दा बनने वाला है आने वाले लोकसभा चुनावों में। इसलिए मैं अगर राहुल गांधी के सलाहकारों में होती तो उनको सलाह देती कि यात्रा पर फिर से निकलना है तो अयोध्या से शुरू करो रामराज्य का नारा देकर, ताकि मंदिर बनवाने का सारा श्रेय नरेंद्र मोदी को ना जाए। यहां आपको याद कराना चाहती हूं कि वर्ष 1989 के चुनाव में राजीव गांधी ने ऐसा किया था इस बात को ध्यान में रखकर कि सदियों पुराने इस विवाद में उन्होंने निजी दखल देकर मंदिर के दरवाजे खुलवाए थे।

अयोध्या में मंदिर की भूमि पूजा करवाने और राम राज्य का वादा करने के बावजूद राजीव चुनाव हार गए थे। हो सकता है इसलिए हारे थे कि मतदाताओं को विश्वास नहीं दिला सके कि वे भी असली रामभक्त हैं और अपना वादा पूरा करके रहेंगे। क्या राहुल गांधी ने इसलिए तय किया है अयोध्या से दूर रहना जब प्रधानमंत्री अयोध्या जाएंगे रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करने? क्या इस लिए अपनी नई यात्रा की शुरुआत करने जा रहे हैं मणिपुर से? मेरा मानना है कि राहुल गांधी के सलाहकारों की राजनीतिक समझ इतनी कमजोर है कि देश की नब्ज तक पहुंच नहीं सकते।

इस नब्ज पर उंगली रखने के लिए न तो आम सभाओं में जाने की जरूरत है और न ही ग्रामीण भारत के दौरे करने की। सोशल मीडिया पर ही दस मिनट बिताने का काम किया होता पिछले सप्ताह तो पता लग गया होता कि आम देशवासी कितने खुश हैं कि भव्य राम मंदिर का निर्माण तकरीबन पूरा हो गया है अयोध्या में। इतना बड़ा मुद्दा बन गया है यह मंदिर कि मैं जब भी एक्स, इंस्टाग्राम या सोशल मीडिया पर या किसी जगह जाती हूं, इन दिनों मुझे राम भजन सुनाई देते हैं और रोशनियों से चमकते अयोध्या की तस्वीरें देखने को मिलती हैं। जिस दिन प्रधानमंत्री गए थे अयोध्या नए एअरपोर्ट और रेलवे स्टेशन का उद्घाटन करने उस दिन ऐसा लगा कि दुनिया में उनके इस दौरे के अलावा कुछ हो ही नहीं रहा है। मोदी ने अपने इस दौरे का पूरा लाभ उठाया यह जानते हुए कि उस दिन का हर पल सुर्खियों में रहेगा और ऐसा हुआ भी।

मेरे एक विदेशी दोस्त फिलहाल मुंबई आए हुए हैं और खुद राजनीतिज्ञ होने के नाते बहुत गौर से देख रहे हैं राम मंदिर से जुड़ी हर खबर को। उन्होंने मुझे कहा, ‘भई मानना पड़ेगा कि नरेंद्र मोदी की राजनीतिक समझ बहुत तेज है। इनको अगले लोकसभा चुनाव में चुनौती देना मुश्किल होगा’। मेरे अंग्रेज दोस्त की यह बात सुनने के बाद इत्तफाक से राहुल गांधी के खास सलाहकार सैम पित्रोदा का मैंने टीवी पर इंटरव्यू देखा, जिसमें उन्होंने कहा कि उनको सख्त तकलीफ हो रही है यह देख कर कि पूरे सप्ताह सिर्फ धर्म-मजहब की बातें ही सुर्खियों में रही हैं।

इस बात को सुनने के बाद लगा मुझे कि एक बार फिर इस सलाहकार ने अपना मुंह खोल कर राहुल गांधी का नुकसान किया है, भला नहीं। याद कीजिए किस तरह पिछले आम चुनाव के समय जब उनको 1984 में सिखों के कत्ले-आम के बारे में पूछा गया था तो उनका जवाब था ‘हुआ तो हुआ’। बाद में उन्होंने कोशिश की इस बात से भागने की यह कह कर कि उनकी हिंदी कमजोर है, लेकिन जो नुकसान होना था वह हुआ तो हुआ। कांग्रेस पार्टी की तथाकथित ‘सिक्यूलरिज्म’ पर गहरी चोट पहुंच चुकी थी। याद दिला दिया था गांधी परिवार के इस खास सलाहकार और दोस्त ने कि कांग्रेस ने जिन राजनीतिक विचारों के सहारे अपना अस्तित्व बनाया है वे खोखले हैं। धर्मनिरपेक्षता की बातें उस राजनीतिक दल के लोग कैसे कर सकते हैं, जिसके कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में तीन हजार से ज्यादा सिखों को बर्बरता से मारा था?

राहुल गांधी आजकल कहते फिर रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी से उनकी लड़ाई विचारधारा की लड़ाई है, राजनीतिक नहीं। लेकिन उनकी विचारधारा क्या है समझना मुश्किल है। उधर नरेंद्र मोदी हैं, जिन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी विचारधारा का आधार है भारत को एक विकसित देश बनाना 2047 तक। लेकिन इस विकसित भारत में वे पूरी कोशिश करेंगे कि भारत के लोग अपनी पुरानी संस्कृति, अपना सनातन धर्म, अपनी विरासत ना भूल जाएं। अयोध्या में रामलला के ‘भव्य’ मंदिर से वे देश के नौजवानों को याद दिलाना चाहते हैं कि प्राचीन भारत की गाथा क्या है। ऐसा करने से अगर उन पर राजनीति में आस्था को मिलाने का आरोप लगता है तो उनको स्वीकार है।

आने वाले लोकसभा चुनावों में भगवान राम सबसे बड़ा मुद्दा बन चुके हैं। जो विपक्षी राजनेता सोचते हैं कि उनके बारे में उल्टी-सीधी बातें कह सकते हैं उनको समझना होगा जल्द ही। ऐसा कहना कि प्रभु राम ने वनवास में रहते हुए शिकार किया था और मांसाहारी बन गए थे- ठीक नहीं। उनको सोच समझ कर अपनी बात रखनी चाहिए। वर्तमान स्थिति यह है कि जैसे राम भगवान वापस लौट कर आ गए हों सदियों की लंबी वनवास के बाद और उनको लौटने में सबसे ज्यादा सहायता की है नरेंद्र मोदी ने। मेरे अंग्रेज दोस्त ने ठीक पहचाना कि जितनी समझ मोदी को है राजनीति की शायद ही किसी दूसरे राजनेता की होगी।

जैसे-जैसे लोकसभा के चुनाव पास आने लगेंगे, वैसे वैसे मोदी अपने आपको प्रभु राम के साथ जोड़ने की पूरी कोशिश करेंगे और इससे उनको राजनीतिक लाभ तो मिलेगा ही, साथ में आम भारतीयों की आस्था के रक्षक भी साबित हो जाएंगे। जो लोग चुनौती देना चाहते हैं मोदी को उनको समझदारी से आगे बढ़ना होगा। इधर-उधर की बातें करना बंद करनी होंगी।