आज 2023 का आखिरी दिन है और निजी तौर पर मुझे खुशी है कि ये साल बीत गया है। इतनी अशांति, इतने युद्ध, इतनी नफरत, इतनी हिंसा देखी है पूरे विश्व ने पिछले 12 महीनों में कि ऐसा लगता है जैसे लहू के रंग में इस साल को याद करेंगे इतिहासकार। दूसरे विश्व युद्ध के बाद शायद ये पहला साल ऐसा गुजरा है जिसमें तीसरे विश्व युद्ध की संभावनाएं दिखने लग गई हैं। दुनिया के इस अशांति के माहौल को अगर ध्यान में रख कर हम अपने देश के बारे में सोचें तो ऐसा लगता है कि भारत के लिए ये साल अच्छा रहा है। अभी तक दुनिया की तूफानों से हम बचे रहे हैं।
मोदी सरकार को फूंक-फूंक के कदम रखने जरूर पड़े हैं लेकिन काफी सफलता से हमने रूस और यूक्रेन दोनों से दोस्ती बनाए रखी है और इजराइल और फिलिस्तीन के साथ भी रिश्ते कायम रखे हैं बिना किसी का पक्ष लिए। इजराइल पर हुए बर्बर जिहादी हमले के फौरन बाद हमारे प्रधानमंत्री ने इस हमले की स्पष्ट शब्दों में निंदा की और फिर जब उनके दोस्त नेतन्याहू ने बर्बरता से गाजा पर बदला लिया। तब भारत ने गाजा में चल रही बेरहम बमबारी की भी निंदा की और गाजा के लोगों के लिए राहत का सामान भेजा।
विपक्ष के कई नेताओं की राय में हमको फिलिस्तीन का पक्ष डट कर लेना चाहिए था, जिनमें सोनिया गांधी और उनकी बेटी की आवाज सबसे ऊंची सुनने को मिली, लेकिन मैं उनसे सहमत नहीं हूं। हमको कभी नहीं भूलना चाहिए कि गाजा में जो हो रहा है वो ना होता अगर हमास ने सात अक्तूबर को आतंक ना फैलाया होता। इजराइल में घुसकर और अगर हमास ने युद्ध से पहले ही सारे बंदियों को रिहा किया होता। ये भी नहीं भूलना चाहिए हमें कि हमास एक आतंकवादी संस्था है, जो शांति में नहीं अराजकता में विश्वास रखता है।
रही बात देश के अंदरूनी हालत की तो मुझे अजीब लगा कि अपने इस नए भारत में वही पुरानी समस्याएं देखने को मिली हैं। वही जातिवाद के झगड़े, वही मंदिर-मस्जिद की बातें, वही हिंदुत्व और जिहाद की लड़ाइयां। गए साल के अंतिम दिनों में जो चुनाव हुए राज्यों में और जिनमें भारतीय जनता पार्टी ने शान से जीत हासिल की मोदी को आगे रख कर उनमें मोदी को हराने के लिए विपक्ष ने जाति जनगणना को मतदाताओं के सामने रखा हथियार बना कर, लेकिन ये हथियार काम ना आया।
मैंने जब कोशिश की इस बात को कहने कि ‘नए भारत’ में जातियों के आधार पे आरक्षण समाप्त कर देना चाहिए तो मेरे पीछे पड़ गए दलितों के ठेकेदार। मैंने शुरू में इनको समझाने का प्रयास किया कि मैं पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण के खिलाफ हूं दलितों के आरक्षण की नहीं, लेकिन और गालियां खानी पड़ीं। सोशल मीडिया पर मेरे निजी जीवन के बारे में झूठ सहना पड़ा और ऊपर से दलितों के ठेकेदारों ने मुझे अपनी तस्वीरें भेजीं शानदार कपड़े, महंगे गहनों से सजे हुए जैसे कि मैं उनमें से हूं जो दलितों को हमेशा फटे हाल, नंगे पांव देखना चाहती हूं।
मुझे मालूम पड़ा इस झगड़े से कि इस ‘अमृतकाल’ में हमारी सोच वही है जो दशकों पहले हुआ करती थी। अभी भी अगर राजनेता लोगों को बांटते हैं जाति-मजहब के आधार पर तो इसलिए कि वो जानते हैं कि यही तरीका है मतदाताओं के वोट हासिल करने का। नरेंद्र मोदी ने कह दिया है कि उनकी नजरों में सिर्फ चार जातियां हैं- गरीब, नौजवान, महिलाएं और किसान। अच्छी बात है ये, लेकिन उनको वोट लोकसभा चुनावों में मिलेगा वही पुरानी मुद्दे उठा कर। विकास और तरक्की की बातें करके नहीं।
साल के अंतिम सप्ताह में राम मंदिर के उद्घाटन का सिलसिला शुरू हुआ और ‘सेक्युलर’ राजनेता भी राम मंदिर जाने की बातें करने लगे। मार्क्सवादी राजनेताओं के अलावा सबने माना कि चाहे उनकी विचारधारा सेक्युलर हों या नहीं रामलला के इस मंदिर को अपनी राजनीतिक वार्ता में लाना ही पड़ेगा वरना सारा श्रेय जाएगा मोदी को, जो पहले से ही अगले साल के आम चुनावों की दौड़ में सबसे आगे हैं। जाति-मजहब की बातें क्यों ना हों उनके ‘नए भारत’ में जब आम भारतवासी इन बातों को ध्यान में रख कर वोट करते हों?
मैंने अभी से शुरू कर दिए हैं वो दौरे जो अक्सर करती हूं लोकसभा चुनावों से पहले और जिनमें हवा किस तरफ है जानने की कोशिश करती हूं। लोग मोदी के नाम पर वोट देना चाहते हैं, इसलिए कि उनको लगता है कि मोदी ने देश के लिए अच्छा काम किया है और उनको कई किस्म के लाभ मिले हैं उनकी समाज कल्याण योजनाओं से। उनसे जब सवाल और किए मैंने तो मालूम हुआ है कि उनको जी20 का सम्मेलन बहुत अच्छा लगा, क्योंकि उनको दिखा कि पहली बार विश्व के सबसे बड़े राजनेता भारत आए हैं।
उनको धारा 370 के हटाए जाने से खुशी हुई है और उनको ये भी दिखता है कि मोदी को चुनौती देनेवाला अभी तक कोई राजनेता नहीं दिखा है। राहुल गांधी के बारे में जब भी पूछा है मैंने तो जवाब यही मिला है कि मोदी के सामने वो बहुत छोटे दिखते हैं बावजूद इसके कि फिर चल पड़े हैं एक नई यात्रा करने। रही बात विपक्ष के इंडिया गठबंधन की तो कहना जरूरी है कि अभी तक आसार नहीं दिखे हैं जिनसे लगे कि आनेवाले लोक सभा चुनाव में इस गठबंधन का कोई नेता दिल्ली की गद्दी तक पहुंच सके। खैर, नया साल कल से शुरू हो रहा है सो आपको 2024 के लिए शुभकामनाएं।