Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने विधानसभा स्पीकर की शक्तियों को लेकर 2016 के नबाम रेबिया फैसले पर पुनर्विचार से जुड़ी याचिका को सुनने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस मामले में पुनर्विचार के लिए तत्काल 7 जजों की संविधान पीठ की गठन की जरूरत नहीं है। अदालत का कहना है कि नबाम रेबिया के फैसले को सात-न्यायाधीशों की बेंच को भेजा जाना चाहिए या नहीं, यह केवल महाराष्ट्र राजनीति मामले की सुनवाई के साथ ही तय किया जा सकता है। इसकी सुनवाई अब 21 फरवरी को होगी।

नबाम रेबिया केस

नबाम रेबिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि विधानसभा के अध्यक्ष विधान सभा के सदस्यों (विधायकों) के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही शुरू नहीं कर सकते हैं। महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट की शुरुआत शिवसेना के दो गुटों में विभाजित होने से हुई थी। एक का नेतृत्व ठाकरे ने किया और दूसरे का नेतृत्व शिंदे कर रहे थे। जिन्होंने पार्टी के बंटवारे के बाद भाजपा के सहयोग से राज्य में अपनी सरकार बनाई थी।

राज्य में विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) के चुनाव के दौरान मतदान करते समय पार्टी व्हिप के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए शिंदे गुट के बागी विधायकों को तत्कालीन डिप्टी स्पीकर से अयोग्यता नोटिस प्राप्त हुए थे। सुप्रीम कोर्ट में इस ही मामले को लेकर याचिका दायर की गयी थी कि विद्रोही सदस्यों को अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए।

27 जून, 2022 को, कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर द्वारा भेजे गए अयोग्यता नोटिस पर जवाब दाखिल करने के लिए समय बढ़ाकर 12 जुलाई तक शिंदे और उनके बागी विधायकों के समूह को अंतरिम राहत दी थी। इसके बाद कोर्ट ने 29 जून को तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा बुलाए गए फ्लोर टेस्ट को हरी झंडी दे दी थी। इसके कारण ठाकरे सरकार गिर गई थी।

क्या बोले कपिल सिब्बल ?

मंगलवार को कोर्ट में उद्धव गुट की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने विरोध जताते हुए कहा था कि कुछ राज्यों से संबंधित चुनाव मामलों पर निर्णय लेने में न्यायालय को वर्षों लग जाते हैं जबकि यही अन्य राज्यों के लिए ऐसे मामलों पर चर्चा करने के लिए रोज बैठ जाते हैं। बुधवार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या अयोग्यता की कार्यवाही शुरू करने के लिए डिप्टी स्पीकर की शक्ति के संबंध में नबाम रेबिया में उसकी संविधान पीठ के फैसले को पांच-न्यायाधीशों की एक और बेंच द्वारा बदला जा सकता है। जिसके बाद कोर्ट ने इस फैसले को सुरक्षित रखा था।