सुप्रीम कोर्ट ने जैन समुदाय के पर्यूषण पर्व के दौरान मुंबई में मांस की बिक्री पर प्रतिबंध के फैसले पर रोक लगाने के बंबई हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका पर विचार से गुरुवार को इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि किसी का गला पकड़ कर कोई प्रतिबंध लागू नहीं करवाया जा सकता है। किसी वर्ग विशेष पर कुछ भी थोपा नहीं जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ के पीठ ने कहा कि सहिष्णुता की भावना होनी चाहिए और कुछ भी किसी वर्ग विशेष पर थोपा नहीं जाना चाहिए। पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश को काफी विस्तृत बताते हुए कहा कि सिर्फ पर्व के मौके पर पशुओं के प्रति दया दिखाने की जरूरत नहीं है।
इन टिप्पणियों के साथ ही अदालत ने जैन समुदाय के ट्रस्ट श्रीतपगछिया आत्मकमल लभदिसुरीश्वरजी ज्ञानमंदिर ट्रस्ट को अपनी शिकायत के निदान के लिए बंबई हाई कोर्ट जाने की छूट दे दी। पीठ ने कहा-हम स्पष्ट करते हैं कि हमने इस मामले की मेरिट पर कोई टिप्पणी नहीं की है। याचिकाकर्ता चाहे तो हाई कोर्ट जा सकता है। जो छह महीने के भीतर उनकी याचिका पर फैसला करेगा। याचिका खारिज की जाती है क्योंकि इसे वापस ले लिया गया।
इससे पहले सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के प्रति अनिच्छा व्यक्त की और कहा कि आधा दिन बीत चुका है। पीठ के एक जज ने कबीर का दोहा सुनाते हुए कहा कि अच्छे उपदेश भी दूसरों पर थोपे नहीं जा सकते और लोग वही फसल काटेंगे जो उन्होंने बोई है। अदालत ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि पशुओं के प्रति अहिंसा और दया अच्छी शिक्षा का हिस्सा रहा है और दो दिन मांस की बिक्री पर प्रतिबंध से किसी को कोई नुकसान नहीं होने जा रहा है।
हाई कोर्ट ने 14 सितंबर को जैन समुदाय के पर्यूषण पर्व के दौरान मुंबई में गुरुवार को मांस की बिक्री पर लगाए गए प्रतिबंध पर रोक लगा दी थी। अदालत ने स्पष्ट किया था कि यह रोक मुंबई सीमा क्षेत्र तक सीमित रहेगी और उसने बूचड़खाने में पशुवध पर प्रतिबंध लगाने और बूचड़खानों को बंद रखने के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।