नफरत की प्रतियोगिता चालू आहे: एक कहता है ‘ये औरंगजेब की औलाद’… तो तुरंत जवाब आता है…‘गोडसे की औलाद कौन हैं?’ फिर दोनों की भिडंत! फिर एक चैनल का एक ‘सर्वे’ कि पीएम ‘सर्वाधिक लोकप्रिय’ और विपक्षी प्रवक्ताओं की हाय हाय। पक्षी कहें कि हमारे पास ‘पीएम’, तुम्हारे पास क्या, तो जवाब आता कि हमारे पास ‘मुद्दे’ हैं! फिर एक रविवार तीन-तीन रैलियां लाइव! एक रैली कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष की ‘गोंडा’ वाली, दूसरी पायलट की ‘दौसा’ वाली और तीसरी केजरीवाल की दिल्ली के रामलीला मैदान वाली! कुश्ती संघ के पूर्वअध्यक्ष ने शेरो-शायरी का सहारा लिया, तो पायलट ने संकेतों में ताल ठोकी और अपने केजरीवाल जी ने ‘एक राजा की कहानी’ के बहाने राजनीतिक कटाक्ष के कुछ नए कीर्तिमान स्थापित किए! फिर एक दिन चैनलों में गाजियाबाद से आनलाइन ‘गेमिंग’ (जुआ) के जरिए ‘धर्मांतरण’ कराने वाले ‘शाहनवाज’ के पकड़े जाने की कहानी छाई रही। फिर एक-एक कर ऐसी कई कहानियां आती रहीं। एक पक्षी नेता: यह ‘लवजिहाद’ है। एक चैनल: यह ‘गेम जिहाद’ है!

ऐसी ही एक खबर के बाद, एक हीरो एक विज्ञापन में आनलाइन ‘गेम’ खेलने के लिए प्रोत्साहित करते हुए धीमे से कहता रहता है कि इसमें रिस्क है! ध्यान से खेलें! जब चैनल ‘आनलाइन जुआ खेलना’ सिखाएं तो फिर ‘जुआ जिहाद’ भी क्यों न हो? फिर, एक दिन ‘एमपी’ में ‘नरम हिंदू दर्शन’! पहले ‘नर्मदा मैया’ की ‘आरती’, फिर ‘हनुमान जी’ की एक बड़ी ‘गदा’ और फिर ‘छत्तीसगढ़’ में दस हजार भक्तों द्वारा ‘हनुमान चालीसा’ का सामूहिक पाठ! और एक खबर कि ‘बजरंग दल’ की टक्कर में एमपी में एक ‘बजरंग सेना’ भी बनी! यानी ‘गरम’ के जवाब में ‘नरम’! फिर कई चैनलों पर इस ‘नरम गरम’ पर ले दे होती रही। ‘गरम हिंदू’ कहें कि ये नरम हिंदू ‘चुनावी हिंदू’ हैं, ‘मौसमी हिंदू’ हैं। ‘नरम’ कहें कि हम जोड़ने वाले हैं, तोड़ने वाले नहीं!

‘वन टू वन फाइट’ तो भाजपा की ‘हवा टाइट…’!

‘विपक्ष की एकता’ की ‘पटना’ वाली ‘डुगडुगी’ विपक्ष में ‘जोश’ बनाए रखती है। सारी लड़ाई ‘परसेप्शन’ की है और सरजी इसे बनाए रखते हैं। इसीलिए एक दिन कह देते हैं कि समय से पहले चुनाव हो सकते हैं… एक दो दिन छोड़ वे इसे दोहरा देते हैं। चैनल चर्चा में व्यस्त हो जाते हैं: जोश बनाए रखने के लिए कई नुस्खे हैं, जैसे एक यह कि ‘वन टू वन फाइट’ तो भाजपा की ‘हवा टाइट…’! जवाब में पक्षी कहते: यह सब भ्रष्टाचार को बचाने के लिए एक हो रहे हैं। एक एंकर एक दिन हिसाब लगाता रहा कि अगर ये ये, यहां यहां, ऐसा करें तो जीत पक्की… कल्पना का ‘मनमोदक’ जितना बड़ा चाहो बनाओ और खाओ!

कि फिर एक शाम एक चैनल द्वारा बंगाल सरकार की ओबीसी आरक्षण नीति का खुलासा कि बंगाल सरकार ने अपने ओबीसी का कोटा भी ‘रोहिंग्याओं’ और ‘बांग्लादेशियों’ को दे डाला! लेकिन वाह रे सरकार के प्रवक्ता कि जवाब देने की जगह सवाल करने लगते हैं कि ये बताओ कि भाजपा सरकार में कितने मुसलिम हैं? फिर एक दिन एक चैनल पर एक ‘सर्वे’ के बहाने ‘एमपी’ के प्रख्यात ‘मामा जी’ के शासन के खिलाफ मौजूद ‘सत्ता विरोधी लहर’ पर चर्चा होती दिखी। मध्य प्रदेश भी कर्नाटक के रास्ते जाते दिखा! फिर मिर्जापुर से नफरत की एक बेहद डरावनी खबर: ‘बोलेरो’ के चालक ने एक सवारी को सिर्फ इसलिए कार से उतार कर कुचल कर मार डाला क्योंकि उसने ‘मोदी योगी’ की ‘तारीफ’ की।

कि एक बार फिर ‘जैक डोरसी’ एक चैनल पर बोलते दिखे कि किसान आंदोलन के दौरान ‘ट्विटर’ पर सरकार का दबाव था कि आंदोलन को न दिखाओ या फिर अपना दफ्तर बंद कराओ। इस पर विपक्षी करते रहे हाय हाय कि तानाशाही तानाशाही कि लोकतंत्र खतरे में… एक पक्षी प्रवक्ता ने इस ‘अरबपति वाम क्रांतिकारी’ को कस के ठोका कि यह शुद्ध झूठ बेचता है। इस जैक से ये तो पूछो कि यह किसका ‘जैक’ है? किससे सुपारी ली है! फिर एक दिन एक नफरत जी बोल उठे कि हिटलर हैं ईदी अमीन… फिर एक विपक्ष विलाप कि तानाशाह है तानाशाह है तानाशाह है और जवाब में एक पक्षी प्रवक्ता का यह सवाल कि हिटलर होता तो क्या आप बोल पाते?

डोरसी ऐसे ही छूट जाता? फिर एक दिन खबर कि राष्ट्रपति बाइडेन ने प्रधानमंत्री को ‘पारिवारिक भोज’ पर बुलाया… भक्तों ने की जय जय!विश्वगुरु! विश्वगुरु! वाह! फिर कई चैनलों पर बंगाल के पंचायती चुनावों के दौरान हिंसा के लोमहर्षक दृश्य। हर तरफ बम ही बम! हिंसा को देख केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग, लेकिन सरकारी प्रवक्ता की एक ही लाइन कि कहां है हिंसा? फिर एक दिन तमिलनाडु के एक मंत्री पर ‘ईडी’ की कार्रवाई और मंत्री का विलाप! एक तमिल नेता कहिन कि ये केंद्र की बदलेखोरी है, जबकि वही कुछ बरस पहले कहे थे कि यह बड़ा भ्रष्टाचारी! एक चर्चक चहका: लो दक्षिण में भी एक ‘वाशिंग मशीन’ लग गई!

इसके बाद हर चैनल पर दो तीन दिन सिर्फ ‘बिपरजाय तूफान’ ही सबसे बड़ी खबर था। डेढ़ सौ किमी की रफ्तार से चलने वाली हवाओं से बचने के लिए एक चैनल के बुरी तरह भीगे एक रिपोर्टर ने सड़क पर घुटनों के बल बैठ कर रिपोर्टिंग की। एंकर उसे ‘जांबाज’ कहते रहे। अगर उसे कुछ हो जाता तो क्या होता? फिर एक दिन कर्नाटक सरकार ने ‘धर्मांतरण विरोधी कानून’ और ‘पाठ्यपुस्तकों’ से ‘हेडगेवार’ का पाठ हटाने का एलान किया, मानो कहते हों कि ‘तुम बनाओ हम मिटाएं’(फिर ‘हम बनाएं तुम मिटाना’)

फिर एक दिन खबर कि ‘नेहरू मेमोरियल’ का नाम ‘प्रधनमंत्री संग्रहालय’ किया! इसे कहते हैं बदले का बदला यानी बदला और बदला! और फिर अंत में एक गोला कि ‘विधि आयोग’ ने ‘समान नागरिक संहिता’ कानून की प्रक्रिया शुरू की। सुझाव मांगे!