वो डाल डाल, ये पात पात। वो निंदर निंदर ये मंदिर मंदिर। कालाराम मंदिर, आंध्र मंदिर, केरल मंदिर, तमिल मंदिर। ‘मंदिर अधूरा तो शास्त्रानुसार प्राण प्रतिष्ठा अधूरी।’ ‘अधूरा था सोमनाथ तो भी की गई प्राण प्रतिष्ठा। मंदिर का गर्भगृह पूरा और शास्त्रानुसार तो काहे न होवे प्राण प्रतिष्ठा! 22 जनवरी को ही होगी प्राण प्रतिष्ठा।’ ‘शंकराचार्यों का बहिष्कार, फिर भी प्राणप्रतिष्ठा?’

‘जो शुरू से मंदिर विरोधी रहे वे शास्त्री बने जा रहे हैं। पहले कहते थे राम नहीं, फिर कहने लगे ‘तारीख बताओ’ जब प्राण प्रतिष्ठा की तारीख बता दी तो कहते हैं : मंदिर को मोदीजी ने अपना बना लिया है।’ ‘ये रहे राम विरोधी धर्मविरोधी सनातन विरोधी।’ ‘राम सबके। हमारे भी राम। अयोध्या मन करेगा तब आएंगे। तारीख नहीं बताएंगे।’

‘हाय! ये रहे मौसमी भक्त। हम रहे असली भक्त। पब्लिक सब जानती है।’ एक विपक्षी दल : ‘हम करेंगे हर मंगलवार हनुमान चालीसा का पाठ और सुदरकांड का पाठ! ये देखो हम कर रहे चालीसा का पाठ। सियावर रामचंद्र की जय!’तीसरे विघ्न संतोषी का उवाच : ‘ये तो सत्ता दल का छोटा रिचार्ज है।’एक एंकर चिंतित : ‘हाय! कहीं कांग्रेस की छवि एंटी हिंदू तो नहीं हो रही?’

एक सर्वे : हो रही है इसीलिए वे दूसरे मंदिरों में जा रहे हैं। जब से रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की बात चली है तबसे हर अभक्त व सेकूलर रामभक्त हो चला है!’राम जी की लीला न्यारी! कहीं से डेढ़ हजार किलो का लड्डू आ रहा है तो कहीं से कई मन की गोबर की बनी अगरबत्ती आ रही है तो कहीं से कोई ‘मन’ का ताला कई ‘मन’ की चाबी के साथ आ रहा है। रामलला के विग्रह की परिक्रमा कराई जा चुकी है। वे मंदिर के गर्भगृह में हैं, उनकी आंखों पर विधिनुसार पीत वस्त्र की पट्टिका बंधी है।

कई चैनल राम लला के जन्मस्थान से जुड़े इतिहास को बताते रहते हैं कि साढ़े पांच सौ बरस पहले बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने मंदिर तोड़ मस्जिद बनाई थी। किस किस तरह से मंदिर के ‘रिक्लेम’ करने के संघर्ष चले। फिर राजीव ने मंदिर के ताले तुड़वाए, रामलला विरजवाए। फिर आडवाणी की रथयात्रा का समस्तीपुर में लालू द्वारा अरेस्ट किया जाना। फिर कारसेवकों का बाबरी ढांचे को ढहाना।

उनपर गोली चलवाना व बाल ठाकरे का कथन कि अगर तोड़ने वाले शिवसैनिक हैं तो मुझे उन पर गर्व है। शिवसेना का उद्धव गुट इस लाइन से हटने का जवाब नहीं दे पाता। हर चैनल व उनके कई कई कैमरे अयोध्या में। तरह तरह के साधु। जितने भक्त उतने कवि राम की महिमा में कविताएं सुनाते। वहीं पर मंच से बहसें, हर बहस ‘किंतु-परंतु वादी’ रक्षात्मक और वही तर्क वही इतिहास रिपीट कि कब कितनों ने शहादत दी। कोठारी बंधुओं की शहादत कि उनके घरवाले गर्वित।

और फिर विपक्ष का भाजपा पर फिर ‘श्रेय’ लूटने का आरोप और भाजपा प्रवक्ताओं का जवाब कि मंदिर को एजंडा हमेशा बनाया। विपक्ष आक्रामक कि प्राण प्रतिष्ठा साधु संत, शंकराचार्य करते तो ठीक था। प्रधानमंत्री कौन होते हैं ऐसा करने वाले? जवाब में दो अंग्रेजीभाषी गुरु जी कई चैनलों को बताते हुए कि प्रधानमंत्री का प्राण प्रतिष्ठा करना सर्वथा शास्त्र सम्मत। सब कुछ ‘आगमों’ के अनुसार हो रहा है। सनातन धर्म में विग्रह में प्राण प्रतिष्ठा करने की अनेक विधियां हैं। यह सब उन्हीं विधियों के अनुसार हो रहा है।

एक चैनल अयोघ्या के उस सूर्यवंशी परिवार को दिखा रहा है, जिसके राजा गजराज सिंह ने ‘मीर बाकी’ से मंदिर बचाने के लिए युद्ध किया व शहीद हुए। तब से उस परिवार के लोगों ने मंदिर बनने तक ‘नंगे पांव’ रहने और ‘पगड़ी न पहनने’ की कसम खाई। मंदिर बना है तो पगड़ी व चप्पल पहन रहे हैं।

हर बहस में विपक्ष का ‘राग’ रहता है कि महंगाई, बेरोजगारी। और सत्ता पक्ष का जवाब रहता है, आंकड़े देखिए। महंगाई दर पहले से कम है और विकास है तो रोजगार भी है। अयोध्या का चौतरफा विकास हुआ है। इस विकास से रोजगार भी बढ़ा है। हर रोज सुबह से शाम तक चैनलों में जाने कितनी बार मंदिर, अयोध्या, सरयू और उसके तट और इतनी बार जै श्रीराम का जयघोष होता है कि आप ऊबने लगते हैं। भक्तिभाव की अति हो रही है। हर बड़े उत्सव में यही होता है।

सारी बहसें ‘रिपीट’ हैं। वही वही हाय हाय और वही वही वाह! एक सर्वेकार कहता है कि मंदिर से चुनाव में खास फर्क नहीं आने का तो दूसरा कहता है कि भक्ति एक इमोशनल केमिस्ट्री है, जो विपक्ष के गणितबाजी पर भारी पड़ सकती है। इस बीच, कर्नाटक के कांग्रेसी नेता कह उठते हैं कि अयोध्या मंदिर में उनको दो खिलौने जैसे दिखे थे। भक्त तुरत चीखते हैं कि सनातन का अपमान करने वालों को जनता माफ नहीं करने वाली। लेकिन एक भक्त प्रवक्ता हर बहस में, बिना प्रसंग के पूरा ‘हनुमान चालीसा’ सुनाकर ही दम लेती हैं। सुननेवाले चकित हो रहते हैं कि हर बहस में ‘चालीसा पाठ’ क्या तुक?

रामलला के मंदिर और प्राण प्रतिष्ठा समारोह के अवसर ने राम के घोर विरोधियों को भी राम का नाम लेने पर विवश कर दिया है। यह है रामलला के समकालीन नेरेटिव का जादू, रामकथा का जादू। चैनल एक ओर निंदकों के बहुत से ‘किंतु परंतु’ के साथ उनके ‘रूठने मटकने’ को बताते हैं तो दूसरी ओर प्राण प्रतिष्ठा के लिए यजमान के लिए जरूरी ग्यारह दिन का कठोर उपवास करते सिर्फ नारियल पानी पीते और दरी पर सोते प्रधानमंत्री मोदी नजर आते हैं।

आप ही बताएं, समकालीन छवि युद्ध में एक ‘तपस्वी जैसी’ छवि भारी पड़नी है या एक ‘न्याययात्री’ की छवि! हर रोज सुबह से शाम तक चैनलों में जाने कितनी बार मंदिर, अयोध्या, सरयू और उसके तट और इतनी बार जै श्रीराम का जयघोष होता है कि आप ऊबने लगते हैं। भक्तिभाव की अति हो रही है। हर बड़े उत्सव में यही होता है।