अगले कुछ दिनों में हम अपने देश की आजादी की सालगिरह मनाएंगे। यह दिवस हमारे लिए सिर्फ एक समारोह ही नहीं है, बल्कि गुलामी से मुक्ति का एक राष्ट्रीय त्योहार है। देश की आजादी के संघर्ष में प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद कहा जाता था, की बड़ी भूमिका रही है। इस शहर ने आजादी से पहले और आजादी के बाद कई महापुरुषों और शीर्ष राजनेताओं को जन्म दिया है। अंग्रेजी काल में क्रांतिकारी नेताओं के पास आज की तरह मोटर कारें नहीं होती थीं, तब वह बग्धियों से चलते थे। पुराने इलाहाबाद के त्रिपौलिया क्षेत्र में पंडित जवाहर लाल नेहरू, हरिवंश राय बच्चन, मदन मोहन मालवीय जैसे नेताओं का पुराना आवास था। तब बग्घियों की सवारी कर ये नेता शहर का दौरा किया करते थे। सिविल लाइंस क्षेत्र में अंग्रेज रहा करते थे। वहां आम लोगों के जाने पर मनाही थी। पास में लोकनाथ मोहल्ले में रबड़ी-जलेबी के खाने वालों और अखाड़ेबाजों का मजमा लगता था।
क्रांतिकारी नेता करते थे बग्घी की सवारी
इलाहाबाद शहर के इसी मोहल्ले से जुड़ा एक बड़ा रोचक किस्सा है। जिस समय आजादी के लिए जंग चल रही थी, उस समय इलाहाबाद में एक और जंग चल रही थी। दरअसल यहां के चौधरी महादेव प्रसाद खाने-खिलाने के बड़े शौकीन रहे हैं। वह अक्सर अपने यहां आने वालों को बड़ा ईनाम देते थे, लेकिन शर्त यह थी कि उसे उनकी ओर से दी गई भरपूर मिठाइयां खानी होती थी। जो जितनी मिठाइयां खाता था, उसे उतना बड़ा ईनाम मिलता था। इस जंग में पंडित नेहरू भी बग्घी में सवार होकर कई बार उनकी मिठाइयां खाने गये थे। चौधरी महादेव प्रसाद विद्वान और शिक्षाविद् थे। चौधरी महादेव प्रसाद के नाम से ही एक बड़ा डिग्री कालेज है। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संबद्ध है।
प्रयागराज (इलाहाबाद) में ही आजादी की लड़ाई के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का मुख्यालय था। इसका नाम स्वराज भवन है। इसी के बगल स्थित आनंद भवन पंडित जवाहर लाल नेहरू का आवास था। इसी भवन में बैठकर महात्मा गांधी, राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल, पंडित जवाहर लाल नेहरू, आचार्य कृपलानी, पुरुषोत्तम दास टंडन, मदन मोहन मालवीय, मौलवी लियाकत अली खान, इंदिरा गांधी जैसे नेताओं ने देश को गुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ कई रणनीतियां बनाई थीं। यहीं पर तीन बार कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन हुए थे। पहला अधिवेशन 1888, दूसरा अधिवेशन 1892 और तीसरा 1910 में हुआ था। पहले अधिवेशन की अध्यक्षता जॉर्ज यूल ने की थी, दूसरे अधिवेशन की अध्यक्षता व्योमेश चंद्र बनर्जी और तीसरे अधिवेशन की अध्यक्षता सर विलियम बेडरबर्न ने की थी।
इसी शहर के ‘मिंटो पार्क’ में में महाराना विक्टोरिया का मशहूर घोषणा पत्र तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कैनिंग ने पढ़ा था। इसके बाद से ही ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन खत्म होकर महारानी का शासन शुरू हुआ था।
महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी 1931 को ब्रिटिश पुलिस अध्यक्ष नॉट बाबर और पुलिस अधिकारी विशेश्वर सिंह से मुकाबला करते हुए कई पुलिस वालों को मार गिराया था। इसके अलावा कई अन्य को गंभीर रूप से घायल कर दिया, लेकिन वे खुद जीते जी पकड़े नहीं गये। अंतिम गोली बचने पर उन्होंने खुद को वहीं पर शहीद कर लिया। चंद्रशेखर हमेशा आजाद रहे, इसीलिए उनका नाम चंद्रशेखर आजाद पड़ा।