स्मृति ईरानी अमेठी में राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ाने में जुटी हैं। लोकसभा चुनाव में राहुल के मुकाबले शिकस्त के बाद भी उनके हौसले में कमी नहीं आई है। पिछले दो साल से वो नियमित रूप से अमेठी का दौरा कर रही हैं। रविवार को वह फिर अमेठी में थीं। इससे दो दिन पहले ही राहुल अमेठी में थे। आमतौर पर इन दोनों नेताओं का अमेठी दौरा आगे-पीछे होता रहता है।

गांधी परिवार के अमेठी से 40 साल के जुड़ाव में यह पहली बार हो रहा है कि उनका कोई प्रतिद्वंद्वी उनके अपने गढ़ में इस शिद्दत से उन्हें घेरने में जुटा हो। इससे पहले अमेठी में गांधी परिवार को चुनौती देने वाले शरद यादव, कांशीराम, मेनका गांधी, प्रो. भीम सिंह, राजमोहन गांधी और राम विलास वेदांती हार के साथ ही अमेठी को भूल गए थे। स्मृति ने लोकसभा चुनाव के दौरान वायदा किया था कि हारूं या जीतूं अमेठी नहीं छोड़ूंगी। इस चुनाव में उन्हें तीन लाख से ज्यादा वोट मिले थे। मतदान के दिन उन्होंने राहुल को एक एक बूथ पर दौड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। अमेठी में स्मृति की सक्रियता का एक दूसरा पहलू भी है। समर्थक उत्साहित हैं। उन्हें उम्मीद है कि यूपी के विधानसभा चुनाव में स्मृति ईरानी को पार्टी के चेहरे के रूप में आगे कर सकती है। ऐसा न भी हुआ तो इस चुनाव में उनकी बड़ी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।

कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी वाड्रा को आगे करने की चर्चा ने अटकलों के और पंख लगाए हैं। लोकसभा चुनाव में अमेठी में स्मृति और प्रियंका आमने सामने हो चुके हैं। स्मृति की खुशकिस्मती है कि वह हार कर भी केंद्र में एक प्रभावशाली मंत्री हैं। अपनी पार्टी और सरकार में मिले इस महत्व ने स्मृति का काम आसान किया है। वह सत्ता में हैं, इसलिए उनके अमेठी दौरों में उमड़ने वाली भीड़ को कुछ अपने या इलाके के लिए पाने की उम्मीद रहती है।

उधर, राहुल सांसद होने के बाद भी कुछ खास करने की स्थिति में नहीं हैं। केंद्र की सत्ता छिन चुकी है। प्रदेश की सरकार गए ढाई दशक गुजर गए। किसी गैर कांग्रेसी सरकार से अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए कुछ मांगने में उनका कद और परिवार की ठसक आड़े आती हैं। विपक्षी के रूप में वे अमेठी के साथ-साथ किए जा रहे सौतेले व्यवहार के बयान देने के बाद संघर्ष की शुरुआत का मौका नहीं निकाल पाते। गांधी परिवार के सदस्यों को लेकर अब अमेठी में खास उत्सुकता नजर नहीं आती। यहां तक कि प्रियंका भी अब वह पहले जैसी प्रभावशाली नहीं दिखतीं।
लोकसभा चुनाव अभी दूर हैं। अगले साल उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव होने हैं। स्मृति इस चुनाव के बहाने अमेठी में अपनी मेहनत के नतीजे देखना चाहेंगी। इससे राहुल की मुश्किलें बढ़ेंगी। विधानसभा की सीटों के लिहाज से अमेठी में कांग्रेस की चिंताएं पहले भी कम नहीं है। फिलहाल पांच में सिर्फ दो सीटों पर कांग्रेस काबिज है।

तीन सपा के पास हैं। वहां भाजपा भी अब तक पस्त हाल रही है। अकेली गौरीगंज सीट पर पार्टी कुछ चुनौती देने की स्थिति में रही है। लोसकभा चुनाव में हार के बाद भी स्मृति के दमदार प्रदर्शन और उनकी अमेठी में लगातार सक्रियता ने पार्टी के टिकट के दावेदारों को जोश दिया है। स्मृति अमेठी के किसी बंद उद्योग को चालू कराने या फिर नया उद्योग शुरू कराने में अभी तक सफल नहीं हुई है। उलटे उनकी सरकार पर यूपीए के दौर की परियोजनाओं को अमेठी से ले जाने का आरोप है। हालांकि सत्ता में रहते राहुल के निराशाजनक प्रदर्शन के कारण ये विरोध स्मृति को परेशान नहीं कर रहा।

उधर, स्मृति जनधन योजना में 25 हजार लोगों के बीमा, पौध वितरण, त्योहार के मौकों पर हजारों जरूरतमंद महिलाओं को साड़ी वितरण, गरीबों के इलाज,अग्निकांड के इस मौसम में ग्रामीणों के मध्य तत्काल राहत सामग्री वितरण जैसे कार्यक्रमों के जरिए अमेठी में अपनी पैठ बनाने की कोशिशें तेज कर रही हैं। स्मृति के अमेठी के दौरों को मिल रही कवरेज और इससे ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी निकटता के चलते पार्टी के भीतर और बाहर इन अटकलों को बल मिला है कि उन्हें पार्टी विधानसभा चुनाव में आगे कर सकती है।