भारत में पिछले पांच सालों में हर साल गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाक रूप से हाई टेंपरेचर के औसतन छह दिन दर्ज किए गए। इस बात की जानकारी सोमवार को छपी एक स्टडी में सामने आई है। अमेरिका में मौजूद साइंटिस्ट और कम्युनिकेटर्स के एक ग्रुप की तरफ से की गई स्टडी में कहा गया है कि 90 पर्सेंट देशो और क्षेत्रों में ऐसे दिनों की संख्या दोगुनी हो गई है।

रिसर्चर्स ने प्रेग्नेंसी हीट रिस्क डे में बढ़ोतरी का पता लगाने के लिए 2020 से 2024 तक 247 देशों और क्षेत्रों और 940 शहरों में डेली टेंपरेचर का विश्लेषण किया। रिसर्चर्स ने कहा कि इस समय के दौरान भारत में हर साल औसतन छह ज्यादा खतरनाक रहे। इस स्टडी में यह भी कहा गया है कि जलवायु में बदलाव की वजह से भारत में 2020-2024 के दौरान गर्भावस्था में प्रेग्नेंसी हीट रिस्क डे की औसत वार्षिक संख्या में लगभग एक तिहाई की बढ़ोतरी हुई है। यह कुल 19 दिनों में से छह दिन और बढ़ गए हैं।

सिक्किम में जलवायु परिवर्तन की वजह से प्रेग्नेंसी हीट रिस्क डे की संख्या सबसे ज्यादा 32 दर्ज की गई।। गोवा में यह 24 और केरल में 18 दर्ज किए गए। पणजी में पिछले पांच सालों में हर एक साल प्रेग्नेंसी हीट रिस्क डे की सबसे ज्यादा औसत संख्या 39 देखी गई। इसके बाद तिरुवनंतपुरम में ऐसे 36 दिन रहे। मुंबई में 2020-2024 के दौरान जलवायु परिवर्तन की वजह से प्रेग्नेंसी हीट रिस्क डे 26 देखे गए।

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किन जगहों पर ज्यादा रही संख्या

चेन्नई, बेंगलुरु और पुणे में भी पिछले पांच सालों में जलवायु परिवर्तन के कारण प्रेग्नेंसी हीट रिस्क डे वाले सात दिन दर्ज किए गए। स्टडी के मुताबिक, लगभग एक तिहाई देशों में हर साल गर्भावस्था में गर्मी के जोखिम वाले खतरनाक दिनों की संख्या एक महीने के बराबर रही। यह संख्या उस जगह पर ज्यादा बढ़ी जहां पर स्वास्थ्य सेवाओं पर पहुंच बहुत ज्यादा नहीं थी। इसमें कैरिबियन, मध्य और दक्षिण अमेरिका, प्रशांत द्वीप समूह का नाम शामिल है। इस रिसर्च में यह बात भी सामने आई है कि ज्यादा टेंपरेंचर की वजह से हाईपर टेंशन, डायबिटीज, हॉस्पिटल में एडमिट होना, स्टील बर्थ और प्री टर्म बर्थ जैसा जोखिम बढ़ जाता है। इसकी वजह से बच्चों के स्वास्थ्य पर पूरी जिंदगी असर पड़ सकता है।

जलवायु परिवर्तन से बढ़ रही गर्मी

ज्यादा गर्मी अब दुनिया भर में गर्भवती लोगों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक खतरों में से एक है। जलवायु परिवर्तन के कारण ज्यादा गर्मी बढ़ रही है और दुनिया भर में स्वस्थ गर्भधारण की संभावनाएं कम हो रही हैं, खास तौर पर उन जगहों पर जहां पहले से ही देखभाल की पहुंच मुश्किल है। अगर हम जीवाश्म ईंधन जलाना बंद नहीं करते और जलवायु परिवर्तन से तुरंत नहीं निपटते तो मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव और भी ज्यादा बदतर होगा। क्या शिक्षा प्रणाली बच्चों को बना रही है प्रकृति से बेगाना?