Shibu Soren Critical: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नेता शिबू सोरेन वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं और उनकी हालत गंभीर है। न्यूज एजेंसी PTI ने शनिवार को सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी।
रिपोर्ट के अनुसार, वह एक महीने से ज्यादा समय से दिल्ली के श्री गंगा राम अस्पताल में भर्ती हैं। उन्हें जून के आखिरी हफ्ते में किडनी संबंधी समस्या के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
81 वर्षीय शिबू सोरेन लंबे समय से अस्पताल में नियमित उपचार ले रहे हैं। 24 जून को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अस्पताल पहुंचकर उनका हाल जाना था। उन्होंने कहा था कि उन्हें हाल ही में यहां भर्ती कराया गया था, इसलिए हम उनसे मिलने आए थे। उनकी स्वास्थ्य समस्याओं की जांच की जा रही है।
बता दें, शिबू सोरेन ने 38 वर्षों तक झारखंड मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व किया है और उन्हें पार्टी के संस्थापक संरक्षक के रूप में जाना जाता है। इस बीच, पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन को ब्रेन स्ट्रोक के बाद दिल्ली के अपोलो अस्पताल ले जाया गया।
शिबू सोरेन ने 18 साल की उम्र में संथाल नवयुवक संघ का गठन किया था। 1972 में, सोरेन ने बंगाली मार्क्सवादी ट्रेड यूनियन नेता एके रॉय और कुर्मी-महतो नेता बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झामुमो का गठन किया और इसके महासचिव बने।
राजनीतिक करियर की शुरुआत
सोरेन 1977 में अपना पहला लोकसभा चुनाव हार गये थे, लेकिन बाद में 1980 में दुमका से पहली बार लोकसभा के लिए चुने गये। इसके बाद वे 1989, 1991 और 1996 में भी लोकसभा के लिए चुने गए। वह 2002 में राज्यसभा के लिए चुने गए, लेकिन उसी वर्ष लोकसभा उपचुनाव में ड्यूमा सीट जीतने के बाद उन्होंने अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया।
मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल से इस्तीफा
2004 में पुनः निर्वाचित होने के बाद सोरेन मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय कोयला मंत्री थे, लेकिन 30 साल पुराने चिरुडीह मामले में उनके नाम गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद उन्हें इस्तीफा देने का निर्देश दिया गया।
‘वोटर लिस्ट में मेरा नाम नहीं- तेजस्वी’; चुनाव आयोग ने कर दिया फैक्ट चेक, कहा- 416वें नंबर पर देखिए
गिरफ्तारी वारंट के बाद वह भूमिगत हो गए, क्योंकि 23 जनवरी 1975 को 10 लोगों की हत्या के आरोप में 69 अन्य लोगों के साथ उन्हें भी मुख्य आरोपी पाया गया। सोरेन ने जुलाई 2004 में इस्तीफा दे दिया था और न्यायिक हिरासत के दौरान जेल में रहने के बाद उन्हें जमानत मिल गई थी। 8 सितम्बर 2004 को जमानत पर रिहा होने के बाद उन्हें पुनः मंत्रिमंडल में शामिल किया गया तथा 27 नवम्बर 2004 को उन्हें कोयला मंत्रालय वापस दे दिया गया।
कारावास और बरी
28 नवम्बर 2006 को उन्हें अपने पूर्व निजी सचिव शशिनाथ झा के अपहरण और हत्या से जुड़े 12 वर्ष पुराने मामले में दोषी पाया गया। आरोप लगाया गया कि झा को 22 मई 1994 को दिल्ली के धौला कुआं से अगवा कर लिया गया और रांची में उनकी हत्या कर दी गई। सीबीआई के आरोपपत्र के अनुसार, झा की हत्या का कारण जुलाई 1993 में नरसिम्हा राव सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस और झामुमो के बीच हुए समझौते के बारे में उनकी जानकारी थी।
आरोपपत्र के अनुसार, झा को अवैध लेनदेन के बारे में सब पता था और उसने सोरेन से अपना हिस्सा मांगा था। उनकी जमानत याचिका खारिज होने के बाद, 5 दिसंबर 2006 को सोरेन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 25 जून 2007 को जब सोरेन को दुमका जेल ले जाया जा रहा था, तो उनके काफिले पर बम फेंके गए, जिसमें उनकी जान लेने की कोशिश की गई।