बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन के खिलाफ रेप की एक शिकायत पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था।
न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने निचली अदालत के समक्ष सभी लंबित कार्यवाही पर भी रोक लगा दी और तर्क दिया कि मामले पर विचार किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में शाहनवाज हुसैन ने कहा था कि उच्च न्यायालय के आदेश से उनके बेदाग करियर और प्रतिष्ठा को “अपूरणीय क्षति” होगी।
कोर्ट में यह तर्क दिया गया कि शाहनवाज हुसैन के खिलाफ शिकायत “झूठी, तुच्छ और दुर्भावनापूर्ण” थी और प्रतिशोध के इरादे से आरोप लगाया गया था। शाहनवाज हुसैन की ओर से कहा गया कि शिकायतकर्ता ने पहले भी फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भाजपा नेता को बदनाम किया था।
सुप्रीम कोर्ट में शाहनवाज हुसैन का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय इस धारणा पर आगे बढ़ा कि जांच का एकमात्र तरीका एफआईआर का पंजीकरण है, मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि यह कानून का गलत इस्तेमाल था। उन्होंने दावा किया कि आरोप केवल शाहनवाज हुसैन के भाई पर लगाए गए थे। 2013 में शिकायतकर्ता ने दावा किया कि उसने शादी की आड़ में उसके साथ बलात्कार किया। हालांकि शिकायत चार साल बाद 2018 में दर्ज की गई थी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले हफ्ते भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में पूर्ण अनिच्छा के लिए दिल्ली पुलिस की आलोचना करते हुए रेप का केस दर्ज करने को कहा था। इसके साथ ही कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से कहा था कि तीन महीने के भीतर बलात्कार के आरोपों की जांच पूरी करें।
2018 में दिल्ली की एक महिला ने निचली अदालत का दरवाजा खटखटाकर शाहनवाज हुसैन के खिलाफ बलात्कार के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की थी। एक मजिस्ट्रेट अदालत ने 7 जुलाई 2018 को शाहनवाज हुसैन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देते हुए कहा था कि महिला की शिकायत में एक संज्ञेय अपराध बनाया गया है।