प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र में NDA सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है। केंद्र ने इसमें कहा है कि सजायाफ्ता नेता के ताउम्र चुनाव लड़ने पर रोक नहीं लगनी चाहिए।
दरअसल, सरकार ने यह बात उस जनहित याचिका का विरोध करते हुए कही, जिसमें गंभीर अपराधों में सजायाफ्ता राजनेताओं के ताउम्र चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग उठाई गई थी।
मौजूदा समय में किसी मामले में दोषी पाए गए राजनेता को सजा सुनाए जाने के बाद से छह साल तक के लिए डिस्क्वालिफाइड यानी अयोग्य मान लिया जाता है। और, सरल भाषा में कहें तो सजा के ऐलान से इस छह साल की समयावधि तक ऐसा नेता चुनाव नहीं लड़ सकता है।
चंद साल पहले भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने इस बैन को हटाने का समर्थन किया था। जस्टिस एनवी रमना के नेतृत्व वाली बेंच ने केंद्र से उस एप्लीकेशन पर जवाब मांगा था, जिसे वकील और याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दाखिल किया था। उन्होंने याचिका में आरपीए के कई हिस्सों (दोषी पाए जाने पर नेताओं को अयोग्य ठहराने से संबंधित) पर सवाल दागे थे।
[अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट ‘The Print’ की रिपोर्ट के मुताबिक, उपाध्याय ने तर्क दिया था कि राजनेता भी जन सेवक हैं। ऐसे में उनके साथ अलग किस्म का बर्ताव न हो।