योगेश कुमार गोयल

अलग-अलग भंगिमा में ‘सेल्फी’ लेकर सोशल मीडिया पर डालने का शगल न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। खासकर नौजवान एक अच्छी ‘सेल्फी’ के लिए कुछ भी करने को तत्पर दिखते हैं। तमाम नियम-कायदों की अनदेखी करते हुए कहीं वे चलती ट्रेन के आगे ‘सेल्फी’ लेने के लिए जान जोखिम में डालते दिखते हैं, तो कहीं अन्य खतरनाक जगहों पर।

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में नववर्ष पर अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ सिरसी प्रपात पर पिकनिक मनाने गया एक युवक ‘सेल्फी’ लेते हुए मौत की नींद सो गया। वह ऊंचाई पर चढ़कर सेल्फी के लिए भंगिमा बना रहा था कि अचानक पैर फिसलने से खाई में सिर के बल जा गिरा। मध्यप्रदेश के दमोह जिले के सिद्ध क्षेत्र में एक जनवरी को कुछ दोस्तों के साथ पिकनिक मनाने गया पच्चीस साल का एक युवक भी सेल्फी लेते समय संतुलन बिगड़ने से एक पहाड़ी से नीचे गहराई में जा गिरा, जिसका शव पुलिस को पत्थरों के बीच मिला।

उत्तराखंड के खटीमा में शारदा नहर में सेल्फी लेते समय एक युवक नहर में गिर गया, जिसे बचाने के लिए नहर में कूदा उसका चचेरा भाई पानी के तेज बहाव में बह गया, जबकि नहर में गिरा युवक पेड़ की टहनी पकड़ कर बच गया। हरियाणा के रोहतक में सत्रह साल की एक किशोरी सेल्फी लेते हुए पुल से नीचे गिर गई। किशोरी स्कूटी से पुल पर आई थी और वहां सेल्फी ले रही थी कि अचानक उसका संतुलन बिगड़ा और वह पुल से नीचे गिर गई। वह गंभीर रूप से घायल हो गई।

इटली के वेनिस में भी 14 दिसंबर को सेल्फी के चक्कर में एक गोंडोला बोट पलट गई और पर्यटकों का पूरा समूह वेनिस नहर में गिर गया था। दरअसल, जब गोंडोलियर एक पुल के नीचे से गुजर रहा था तो उसने नाव पर बैठे लोगों से स्थिर रहने को कहा था। लोग उस समय सेल्फी ले रहे थे और उन्होंने गोंडोलियर की बातों को नजरअंदाज कर दिया। चेतावनी के बावजूद सेल्फी लेते लोगों का सारा भार एक तरफ हो गया और नाव बेहद ठंडी नहर में पलट गई।

रेल की पटरियों या जोखिम वाली जगहों पर सेल्फी खींचते हुए जान गंवा देने के बार-बार सामने आ रहे दर्दनाक मामले सवाल खड़े करते हैं कि आखिर जागरूकता अभियानों के बावजूद युवा वर्ग पर सेल्फी का ऐसा जुनून क्यों सवार हो रहा है, जो उनकी जान पर भारी पड़ रहा है। क्यों कई बार खतरनाक करतब करते हुए जोखिम भरी स्थितियों में सेल्फी लेते हुए युवा अपनी जान दांव पर लगा रहे हैं।

चिंता की बात है कि सेल्फी लेते हुए जान गंवा देना अब दुनिया भर में दुर्घटनाओं की एक श्रेणी में शामिल हो चुका है। हालांकि सेल्फी के प्रति युवा वर्ग में बढ़ते जुनून के मद्देनजर कुछ राज्यों में इस पर अंकुश लगाने के उपाय किए गए हैं। युवा वर्ग में नए और खतरनाक स्थानों पर सेल्फी लेने की बढ़ती होड़ तथा ऐसी घटनाओं की निरंतर बढ़ती संख्या से चिंतित केंद्र सरकार द्वारा सुरक्षा के लिहाज से तमाम राज्य सरकारों को पर्यटन केंद्रों पर ऐसे हादसों के प्रति संवेदनशील स्थानों की पहचान करने, वहां सुरक्षा संकेत लगाने और ज्यादा खतरे वाली जगहों पर बाड़ लगाने जैसे उपाय करने की सलाह दी गई थी, लेकिन उसके बावजूद लगातार सेल्फी से युवाओं की मौतों के मामले चिंता पैदा करते हैं।

आइआइटी दिल्ली में सहायक प्रोफेसर और ‘मी, माइसेल्फ ऐंड माइ किल्फी’ नामक पुस्तक के सह-लेखक पोन्नूरंगम कुमारगुरु का कहना है कि भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां सेल्फी के दौरान कई लोगों की मौत आम है। ऐसी अधिकांश मौतें पहाड़ी से गिरने, पानी में डूबने या ट्रेन से कटने के कारण होती हैं। उनका कहना है कि स्मार्टफोन और इंटरनेट की बढ़ती पहुंच तथा फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे माध्यमों पर अपनी अनूठी सेल्फी डालने की ललक ही युवाओं को खतरे से खेलने के लिए प्रेरित करती है।

नई दिल्ली स्थित एम्स तथा आइआइटी कानपुर के शोधकर्ताओं द्वारा अखबारों में छपी खबरों के आधार पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक अक्तूबर 2011 से नवंबर 2017 के बीच दुनिया भर में सेल्फी लेने के दौरान 259 मौतें हुईं, जिनमें से 158 मौतें भारत में हुई थीं। हालांकि ‘जर्नल आफ फेमिली मेडिसिन ऐंड प्राइमरी केयर’ में छपी इस रपट में यह भी कहा गया है कि ऐसी घटनाओं में मौतों का आंकड़ा ज्यादा हो सकता है, क्योंकि दूरदराज के इलाकों में होने वाली ऐसी मौतों की खबरें सामने नहीं आतीं।

आश्चर्य की बात है कि तमाम जागरूकता अभियानों और खतरे का भान होने के बावजूद युवाओं पर खतरों से खेलकर सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर चस्पां करने का ऐसा जुनून सवार रहता है कि तेज रफ्तार में सामने से आती ट्रेन की सीटी सुनने पर भी वे पटरी से नहीं हटते और जान गंवा बैठते हैं। एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि सबसे अधिक सेल्फी महिलाएं लेती हैं और सबसे खतरनाक जगहों पर सेल्फी लेने के मामले में युवा सबसे आगे रहते हैं। इस अध्ययन के अनुसार सेल्फी लेने के दौरान जितने भी लोगों की मौत हुई, उनमें युवाओं की संख्या करीब तीन-चौथाई है, जिनकी मौतों का कारण पानी में डूबना, ट्रेन की टक्कर, ऊंचाई से गिरना और अन्य दुर्घटनाएं हैं।

सेल्फी ‘स्मार्टफोन’ की क्रांतिकारी तकनीक की देन है, जिसमें सामने लगे कैमरे की सबसे अहम भूमिका होती है। गूगल सर्वे के मुताबिक स्मार्टफोन के इस दौर में युवक-युवतियां अब प्रतिदिन औसतन ग्यारह घंटे फोन पर बिताते और दिनभर में औसतन चौदह सेल्फी लेते हैं। युवाओं में सेल्फी के बढ़ते जुनून को लेकर चिकित्सकों का कहना है कि अधिक सेल्फी लेने से चेहरे पर झुर्रियां जल्दी आती हैं।

सेल्फी के बढ़ते जुनून को इसी से समझा जा सकता है कि दुनिया भर में प्रतिदिन 9.4 करोड़ से भी ज्यादा सेल्फी ली जाती है। चिंता की बात है कि युवाओं में खतरनाक जगहों और स्थितियों में सेल्फी को लेकर दीवानगी बढ़ रही है और भारत अब ‘सेल्फी डेथ कंट्री’ बनता जा रहा है। दरअसल, ‘शेयर, लाइक और कमेंट’ की अजीबोगरीब चाहत में युवाओं को खतरनाक जगहों पर सेल्फी लेने और फिर उसे तुरंत सोशल साइटों पर डालने की इतनी जल्दी होती है कि एक लापरवाही में बदल जाती है और ऐसे युवा अक्सर या तो किसी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं या मौत के मुंह में समा जाते हैं। ऐसे में पूरी दुनिया के समक्ष चिंता का विषय यही है कि युवाओं में सेल्फी के इस बढ़ते जुनून को रोका कैसे जाए?

माना कि रोजमर्रा की एकरस जिंदगी में नयापन या मनोरंजन मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी होता है और सेल्फी का शौक भी बुरा नहीं माना जा सकता, लेकिन यह उस हद तक न हो, जहां जिंदगी ही मुसीबत में घिर जाए। ऐसी सेल्फी या ऐसा जानलेवा रोमांच किस काम का कि अपनी उस तस्वीर को जिंदगी में दोबारा कभी देखने के लिए ही न बचें।

सेल्फी’ की सनक युवाओं को कुंठा और हीनभावना का शिकार भी बना रही है। इस सनक को दुनिया भर में ‘सोशल मीडिया’ ने बढ़ावा दिया है। मनोचिकित्सकों ने ‘सेल्फी’ को एक मनोरोग मान लिया है। उनके मुताबिक ‘सेल्फीसाइटिस’ एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति ‘सेल्फी’ लेकर सोशल मीडिया पर नहीं डालता तो उसे बेचैनी होने लगती है। इस सनक का लोगों के रिश्तों पर भी असर पड़ रहा है।