जर्मनी यूरोप में सत्ता का नया केंद्र बनना चाहता है। दूसरी ओर, भारत सामरिक-रणनीतिक मामलों में एक और मजबूत खिड़की खोलना चाहता है। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज के भारत दौरे से उस दिशा में मजबूत नींव पड़ी है। शोल्ज जी20 की बैठक में भी पहुंचेंगे। बतौर चांसलर शोल्ज की यह पहली भारत यात्रा थी।
दरअसल, भारत के साथ जर्मनी के संबंधों में पहले के मुकाबले तेजी के साथ बदलवा आया है। जर्मनी बदल रहा है। अपने देश में विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा की नीति का वह नया ढांचा तैयार कर रहा है। आज का जर्मनी दुनिया में अहम भूमिका निभाना चाहता है। यूक्रेन संकट ने यूरोप में जर्मनी की भूमिका बढ़ा दी है। इस मुद्दे पर दुनिया के नेता भारत से मध्यस्थता की उम्मीद कर रहे हैं। ऐसे में जर्मनी ने भारत के साथ आत्मीयता को सामरिक और रणनीतिक जामा पहनाने की कवायद शुरू की है।
बदलते दौर में भारत और जर्मनी
शोल्ज ने अपने दौरे से कुछ ही दिन पहले दिसंबर में ही वहां की विदेश मंत्री को भेजा था। उन्होंने सामरिक और रणनीतिक मुद्दों पर कुछ प्रस्ताव भारत को सौंपे। इसमें अहम है पनडुब्बी निर्माण का करार। भारतीय नौसेना की 11 पनडुब्बियां 20 साल से भी ज्यादा पुरानी हो चुकी हैं। भारत के साथ 5.2 अरब के पनडुब्बी निर्माण करार की दौड़ में पारंपरिक आपूर्तिकर्ता रूस भी है।
शोल्ज ने अपनी ओर से भारत के साथ मिलकर छह पनडुब्बियां नौसेना के लिए बनाने की पेशकश की है। दरअसल, भारत हथियारों के लिए अब भी रूस पर बहुत ज्यादा निर्भर है। पश्चिमी देश भारत की इस निर्भरता को कम करने के साथ साथ अरबों डालर का कारोबार करना चाहते हैं। अभी भारतीय नौसेना के पास 16 पारंपरिक पनडुब्बियां हैं। इनमें से 11 बहुत पुरानी हो चुकी हैं। देश के पास दो परमाणु चालित पनडुब्बियां भी हैं।
क्या है परियोजना
भारत कई दशकों से विदेशी हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार रहा है। अब इस स्थिति को बदलने की तैयारी की जा रही है। सरकार चाहती है कि भारत अपनी जरूरतों के ज्यादातर हथियार देश में बनाए। इसके लिए विदेशी साझेदारों की मदद ली जा रही है। जर्मन कंपनी थाइसेनक्रुप मरीन सिस्टम ( टीकेएमएस) ने भारतीय पनडुब्बी परियोजना के लिए दावेदारी पेश की है। अब तक दो ही अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने दावेदारी पेश की है। विदेशी पनडुब्बी निर्माता कंपनी को एक भारतीय कंपनी के साथ साझेदारी कर भारत में ही ये पनडुब्बियां बनानी होंगी।
भारत की शर्त
भारत ने यह शर्त रखी है कि विदेशी कंपनी को ‘फ्यूल बेस्ड एअर इंडिपेंडेंट प्रापल्शन’ (एआइपी) की बेहद जटिल तकनीक भी हस्तांतरित करनी होगी। इस शर्त की वजह से ज्यादातर विदेशी कंपनियों ने अपनी दावेदारी पेश नहीं की है। पिछले साल मई में नरेंद्र मोदी की पेरिस यात्रा से ठीक पहले फ्रांस की एक नौसैन्य निर्माता कंपनी ने परियोजना से अपना नाम वापस ले लिया।
कंपनी ने कहा कि वह 2021 में भारत सरकार द्वारा तय की गई शर्तों को पूरा करने में असमर्थ है। रूस के रोसोबोरोनएक्सपोर्ट और स्पेन का नावंतिया ग्रुप भी दौड़ से बाहर हो चुके हैं। अब दौड़ में जर्मन कंपनी टीकेएमएस और दक्षिण कोरिया की देवू शिपबिल्डिंग एंड सबमरीन इंजनियरिंग कंपनी ही बचे हैं। टीकेएमएस हाल ही में नार्वे के साथ मिलकर ऐसी छह पनडुब्बियां बनाने का करार कर चुकी है।
यूक्रेन का मुद्दा
जर्मनी के चांसलर ने अपने भारत दौरे के पहले दिन भारत और जर्मनी के संबंधों के और मजबूत होने की उम्मीद जताई। उन्होंने ने कहा, भारत और जर्मनी के बीच पहले से बहुत अच्छे रिश्ते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि हम इस रिश्ते को और मजबूत करेंगे और हम उन सभी विषयों पर चर्चा करेंगे जो हमारे देशों के विकास के लिए प्रासंगिक तो हैं ही और दुनिया में शांति के लिए भी जरूरी हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, विश्व की दो बड़ी लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाओं के बीच बढ़ता सहयोग दोनों देशों की जनता के लिए तो लाभकारी है ही, आज के तनाव-ग्रस्त विश्व में सकारात्मक संदेश भी जाता है। मोदी ने यूक्रेन युद्ध का जिक्र किया और कहा कि यूक्रेन संकट ने उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों पर असर डाला है।
युद्ध को खत्म करने के लिए बातचीत और कूटनीति की अहमियत ओर जोर डालते उन्होंने कहा कि भारत किसी भी शांति योजना का समर्थन करेगा। शोल्ज ने अपने संबोधन को यूक्रेन युद्ध पर केंद्रित रखा और कहा कि युद्ध के परिणामों की वजह से दुनिया कष्ट भोग रही है। भारत के पास इस साल जी20 की अध्यक्षता है, जो एक मुश्किल समय में एक बहुत जिम्मेदाराना काम है। इस विषय में जो भी किए जाने की जरूरत है भारत उसका पूरी तरह से पालन करेगा।
समय की मांग
जर्मनी चाहता है कि भारत के साथ घनिष्ठ संबंध हों। विश्व स्तर पर एक समूह है, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की बात करता है। इसमें जर्मनी, जापान, भारत और ब्राजील हैं। हमेशा से इन चारों देशों की मांग बदलाव की रही है। वैश्विक आर्थिक मंच पर भारत की भूमिका बढ़ रही है। भारत वैश्विक निवेश का केंद्र बनता जा रहा है।
भारत एक महत्त्वपूर्ण व्यापार साझेदार के रूप में देखा जा रहा है। अगर हम वैश्विक संदर्भ को देखें तो इस समय जर्मनी यूरोपियन यूनियन के केंद्र में है। रूस उसे प्रतिद्वंद्वी मान रहा है। चीन के साथ हिंद-प्रशांत में भी जर्मनी को यूरोपियन संघ ने रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण बताया है।
क्या कहते हैं जानकार
जर्मनी का अपना चिंतन है, विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर वो बदल रहा है। कुछ समय से जर्मनी ने भारत के साथ आत्मीयता बढ़ाने की कोशिश की है। रणनीतिक रूप से वह संबंधों को प्रगाढ़ करने का आग्रही है। इन उद्देश्यों को लेकर वह भारत की तरफ बहुत ज्यादा तवज्जो दे रहा है।
- अमर सिन्हा, विदेश मंत्रालय में पूर्व सचिव (आर्थिक संबंध)
जर्मनी अगले साल करीब 100 बिलियन डालर रणनीतिक योजनाओं पर खर्च करेगा। वह मजबूत सामरिक संबंध विकसित करने के उद्देश्य से भारत के साथ संधि करना चाहता है। यूक्रेन संकट के बाद जर्मनी खुद को नए यूरोपीय ताकत के रूप में देख रहा है।
- जावेद अशरफ, फ्रांस में भारत के पूर्व राजदूत
