खरी-खरी: कांग्रेस के भविष्य के सामने मजबूत चट्टान बनी भारतीय जनता पार्टी का ढांचा भी सामंती ही है। लेकिन वहां इतने बेलौस अंदाज में नहीं कि अपने खत्म होने की खबर पर भी कोई हलचल न हो। आपके सामने की पार्टी ने पिछले कुछ सालों में इतने साहसी फैसले किए, राजनीति में रहने की एक उम्र तक तय कर दी। कुछ अपवादों को छोड़ कर उस पर भरपूर अमल भी कर लिया। जो लोग उस हद में आते गए हर तरह के दबाव से परे हो सबको सेवानिवृत्ति दी गई। भाजपा ने नेतृत्व की एक नई पौध तैयार की और उसी को स्थापित किया।
सचिन पायलट के लाए भूकम्प ने इतिहास का खंडहर बनी पार्टी को एक बार फिर से झकझोर दिया है। लेकिन, क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि पार्टी के मलबे पर भी चैन की नींद सो रहीं सोनिया गांधी इस भूकम्प के बाद जागेंगी? अब नहीं तो कब वाला ब्रह्म सवाल क्या वे सुन पा रही हैं?
सोनिया गांधी आज भी कांग्रेस की दरकी दीवार पर लिखी इबारत पढ़ना नहीं चाह रही हैं। अगर पढ़ भी लिया है तो समझना नहीं चाह रही हैं। हम इस अध्याय को शुरू करते हैं 2005 में हरियाणा विधानसभा चुनाव से। कांग्रेस ने भजनलाल को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश कर उनकी अगुआई में चुनाव लड़ा। भजनलाल को भाव देने का माहौल बनाने के बाद रोहतक से सांसद भूपिंदर सिंह हुड्डा को भी चुनाव के मैदान में उतार दिया। जब मुख्यमंत्री बनाने का मौका आया तो हुड्डा की ताजपोशी कर दी गई।
भजनलाल को मुख्यमंत्री नहीं बना जनमत से बेपरवाही का दौर शुरू हो चुका था। उस वक्त बेपरवाही का दौर इसलिए चला क्योंकि केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। भजनलाल जैसे लोग जाते भी कहां, तो दो साल तक पार्टी में अस्तित्व के लिए संघर्ष के बाद अपनी अलग पार्टी बना ली। केंद्र में कांग्रेस की सरकार और जनमत विभाग आपके हाथ था तो जनता ने हुड्डा को स्वीकार भी कर लिया।
अब बदली स्थिति में भी कांग्रेस 2005 में ही अटकी है। उस वक्त के कांग्रेसी नेता आज उम्र के 70 से 80 के दौर में हैं, लेकिन कांग्रेस की राजनीति उनके ही कब्जे में है। अब भी आपने यही माहौल रचा था कि राजस्थान में युवा पायलट तो मध्यप्रदेश में सिंधिया को कमान मिलेगी। लेकिन ऐन मौके पर बुजुर्गों ने पलटी मार कहा कि अभी तो हम जवान हैं और एक तरफ गहलोत तो दूसरी तरफ कमलनाथ ने कब्जा कर लिया।
राहुल की अगुआई में बनी युवा तिकड़ी बुजुर्गों के इस राजनीतिक बचकानेपन को देखती रह गई। ये बुजुर्ग न तो बदली पीढ़ी, बदली राजनीति को समझ पाए और ये भी भूल गए कि अब दिल्ली दरबार उनका नहीं है।
2019 के लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ कर एलान कर दिया कि न तो मैं और न मेरे परिवार का कोई सदस्य इस पद को संभालेगा। इसके बावजूद सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष का पद संभाल कर अपने बेटे को ही खारिज कर देती हैं।
हालांकि यह उन्होंने पुत्रमोह में ही किया, लेकिन वे महाभारत का संदेश भूल जाती हैं। भारत की सभ्यता-संस्कृति में पुत्रमोह का प्रतीक धृतराष्ट्र हैं जो यह नहीं देख पाते हैं कि उसके बेटे के लिए अच्छा क्या है। सोनिया गांधी ने कांग्रेस की अंतरिम कमान संभाल पार्टी को और पीछे धकेल दिया।
सोनिया गांधी ने कांग्रेस को बुजुर्ग वृत्त से बाहर आने दिया होता तो आज भी पार्टी में वही चेहरे नजर नहीं आते, कम से कम दिल्ली में सब बदल दिए जाते। जब आपने अध्यक्ष पद स्वीकार कर ही लिया तो उसके बाद भी आप में ये माद्दा नहीं था कि अपनी टीम बनाकर पार्टी को चलाएं। आपने टीम राहुल की ही रहने दी। उन्हीं नाकाम नेताओं का विस्तार हो गया 2019 के चुनावी हार के बाद भी। जो लोग पार्टी की हार के लिए जिम्मेदार थे उन्हें ही उतार दिया उस जनमत के निर्माण में जो आपसे बहुत दूर चला गया है।
आम लोगों के बीच पार्टी की छवि टेलीविजन चैनलों पर उसके प्रवक्ता ही बनाते हैं, अखबारों में बयान देते हैं। लोग उनमें पार्टी का चेहरा देखते हैं। जिन्हें लोगों ने चुनावी मैदान, टीवी की बहसों से लेकर कागजी कथ्य से खारिज कर दिया उनमें से एक भी किरदार बदला नहीं गया।
अपने वंशवाद को ही लेकर आज तक कोई अच्छा जवाब नहीं खोज पाए, सिवा इसके कि ये वो देश है जहां राजा का बेटा राजा बनता है। राहुल गांधी अध्यक्ष न रहकर भी अध्यक्ष बने रहे क्योंकि आप में बदलाव का माद्दा नहीं था। आप सब लोगों को खुश करने में लगी रहीं लेकिन सब आपसे नाराज ही होते चले गए।
कांग्रेस के भविष्य के सामने मजबूत चट्टान बनी भारतीय जनता पार्टी का ढांचा भी सामंती ही है। लेकिन वहां इतने बेलौस अंदाज में नहीं कि अपने खत्म होने की खबर पर भी कोई हलचल न हो। आपके सामने की पार्टी ने पिछले कुछ सालों में इतने साहसी फैसले किए, राजनीति में रहने की एक उम्र तक तय कर दी।
कुछ अपवादों को छोड़ कर उस पर भरपूर अमल भी कर लिया। जो लोग उस हद में आते गए हर तरह के दबाव से परे हो सबको सेवानिवृत्ति दी गई। भाजपा ने नेतृत्व की एक नई पौध तैयार की और उसी को स्थापित किया।
सोनिया जी से अनुरोध है कि आप जरा खंडहर की धूल झटक अतीत में घूम आइए। वहां आपको पार्टी के पुरखे कामराज मिलेंगे। उन्होंने अपने सहित सबके इस्तीफों से पार्टी को पूरी तरह बदल दिया था। आपके सामने इंदिरा गांधी भी हैं जिन्होंने बैंकों के राष्ट्रीयकरण से लेकर पाकिस्तान के दो टुकड़े करने के फैसलों में वक्त नहीं लगाया।
आज के दौर में कांग्रेस का यह हाल है कि पार्टी की बैठक में कोई युवा घुस जाए तो उसे लगेगा कि गलती से मैं किसी वृद्धाश्रम में घुस गया हूं। आप अगर अब भी नहीं जागेंगी, फिर तो गर्त में जाने के बाद एक थी कांग्रेस की कहानी में सोई मिलेंगी। अपने ही कारणों से जीता हुआ चुनाव हारने का इतिहास बना भविष्य के भावी पन्नों से बेदखल तो हो ही रही हैं।